राजस्थान में पिछले साल (2023) दिसंबर में चुनाव जीतने के बाद भाजपा सरकार ने एक चौंकाने वाला फैसला किया और पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया गया। जबकि दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे जैसे कुछ प्रमुख नेताओं को नजरअंदाज कर दिया गया। अब जब सरकार अपना एक साल पूरा करने वाली है, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा कई चुनौतियों से गुजरते हुए नज़र आते हैं।
राजस्थान के लिए निराशजनक रहे हैं पिछले कुछ हफ्ते
राजस्थान में पिछले कुछ हफ़्तों की सुर्खियां काफी निराशाजनक रही हैं। रेप, गैंगरेप और POCSO के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। 90 लाख लाभार्थियों की सामाजिक सुरक्षा पेंशन तीन महीने से ज़्यादा समय से अटकी हुई है। दो लाख से ज़्यादा बेरोज़गार युवा अपने भत्ते का इंतज़ार कर रहे हैं। अप्रैल-जून तिमाही में राजस्थान से होने वाले निर्यात में 38 फीसदी की गिरावट आई है। कृषि एवं आपदा प्रबंधन मंत्री किरोड़ी लाल मीना के इस्तीफे का समाधान चार महीने बाद भी नहीं हो पाया है। जबकि वह खुद यह बात स्वीकार कर चुके हैं कि उन्होंने सीएम भजनलाल शर्मा को इस्तीफा सौंप दिया है।
प्रदेश दशकों में सबसे भारी मानसून का सामना कर रहा है। राज्य के कानून मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे मनीष पटेल को अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किए जाने का मामला काफी उछला है, हालांकि मनीष ने इस्तीफा सौंप दिया था, लेकिन इस पर भी अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है।
राजस्थान के बजट में बिजली, सड़क और पानी पर जोर दिया गया है, जिससे कुछ लोगों को उम्मीद जगी है कि इससे हालात कुछ बेहतर हो सकते हैं, हालांकि, इससे अभी तक कोई फायदा नहीं मिला है। इस बीच मानसून की बारिश के कारण सड़कों की हालत और खराब हो गई है।
बिजली कटौती बढ़ गई है और बिजली बिलों में बदलाव किए गए हैं। 100 यूनिट मुफ्त बिजली के लिए रजिस्ट्रेशन भी बंद कर दिया गया है। यहां तक कि विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी भी विधानसभा के बढ़े हुए बिजली बिल से परेशान हो गए और उन्होंने इसकी जांच के आदेश दिए हैं।
किस परेशानी से गुज़र रहे हैं सीएम भजनलाल?
भजनलाल शर्मा के समर्थक उनका बचाव करते हुए कहते हैं कि वे नेक इरादे वाले और मेहनती इंसान हैं। वे यह भी बताते हैं कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ता होने के नाते उनमें पहले के जैसे नेताओं की तरह अहंकार नहीं है। हालांकि, प्रशासनिक अनुभव के कम होने की वजह से मुख्यमंत्री की शक्तियों का इस्तेमाल करने की उनकी अपनी सीमाएं हैं।
सीएम भजनलाल के लिए परेशानी का सबब यह भी है कि राजस्थान के राजनीतिक हलकों में यह धारणा है कि राज्य को भाजपा की केंद्रीय सरकार और नौकरशाह चला रहे हैं।
पिछले कुछ हफ्तों में प्रदेश सरकार ने नौकरशाही में सबसे बड़ा फेरबदल किया है, जिसकी आलोचना कुछ मामलों में वरिष्ठता की अनदेखी करने और पिछली अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारियों को बनाए रखने के लिए हो रही है।
इस बीच लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन काफी खराब रहा। जहां पार्टी ने 11 सीटें खो दीं और उसे सिर्फ 14 सीटें मिलीं। पिछले दो चुनावों में पार्टी ने सभी 25 सीटें जीती थीं।
जाटों में गुस्से के बावजूद पार्टी ने सतीश पूनिया जैसे जाट चेहरे को ठीक तरह से इस्तेमाल नहीं किया। भाजपा के नए प्रदेश प्रभारी राधा मोहन दास अग्रवाल लगातार विवादित बयान दे रहे हैं, जबकि पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौर ने नए जिलों के विवाद में उतरकर गलत शुरुआत की है। पहले उन्होंने कहा कि सरकार गहलोत द्वारा बनाए गए कई नए जिलों को खत्म कर देगी, फिर यू-टर्न लेते हुए आखिरकार कहा कि जिलों पर टिप्पणी करना उनका काम नहीं है।
भजनलाल शर्मा सरकार ने नए जिलों के निर्माण की समीक्षा के लिए उपमुख्यमंत्री प्रेम चंद बैरवा की अध्यक्षता में एक कैबिनेट उप-समिति गठित की, लेकिन यह इस मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं ले सकी। पिछले हफ्ते सरकार ने बैरवा की जगह शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को पैनल का प्रमुख बना दिया।
विधानसभा में सरकार को जहां कुछ नाराज भाजपा विधायकों का सामना करना पड़ा। एक भाजपा नेता ने अफसोस जताते हुए कहा कि पार्टी ने पिछले एक साल में अपने प्रमुख नेताओं को दरकिनार कर दिया है, जिसका असर विधानसभा मामलों के संचालन पर पड़ा है।
इन गड़बड़ियों के बीच खुद को अनुभवहीन टैग से छुटकारा दिलाने के लिए भजनलाल शर्मा ने 9 से 11 दिसंबर को जयपुर में आयोजित होने वाले निवेश शिखर सम्मेलन की घोषणा की है। सीएम इसे सफल बनाने और नकारात्मक सुर्खियों को छिपाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
एक अन्य भाजपा नेता ने कहा, “अगर हमारे पास ‘कमजोर’ पहचान के बिना एक मजबूत नेता होता, तो वह शायद किरोड़ी लाल को अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए मना सकता था। सवाल यह भी है कि अगर बीजेपी पहले ही भजनलाल शर्मा का नाम सीएम के तौर पर आगे कर देती तो क्या वह आज सत्ता में होती?