कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपना चेहरा अभी से घोषित कर दिया है। गुरुवार (14 जुलाई) को पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि शीला दीक्षित यूपी में कांग्रेस की सीएम पद की उम्मीदवार होंगी। शीला को यह जिम्मेदारी दिए जाने के कयास लंबे समय से लगाए जा रहे थे।
शीला को उम्मीदवार बनाने की ये वजह रही होंगी:
ब्राह्मण चेहरा: यूपी में ब्राह्मण कुल आबादी का करीब 10 फीसदी हैं। ये कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं। ब्राह्मण चेहरा के जरिए उन्हें पार्टी से जोड़ना आसान रहेगा। कांग्रेस के चुनाव प्रचार रणनीतिकार प्रशांत किशोर का भी फार्मूला यही रहा है कि अगर यूपी जीतना है तो ब्राह्मणों में पैठ बनानी होगी। बाबरी विध्वंस के बाद से ही ब्राह्मण कांग्रेस से दूर रहने लगे हैं।हालांकि, लोकनीति सर्वे के अनुसार विधानसभा चुनावों में भाजपा का ब्राह्मण वोट बैंक कम हो रहा है। 2002 (50 प्रतिशत) और 2007 (44प्रतिशत) के बीच इसमें छह प्रतिशत की कमी रही। वहीं 2007 से 2012 (38 प्रतिशत) के बीच छह प्रतिशत की कमी और दर्ज की गई। समाजवादी पार्टी ने 2012 विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बनार्इ। उसे ब्राह्मणों के 19 प्रतिशत मत मिले, वहीं बसपा को 19 प्रतिशत वोट मिले। इन आंकड़ों ने कांग्रेस में उम्मीद जगाई है। कांग्रेस 27 साल से उत्तर प्रदेश में सत्ता से दूर है।
यूपी की बहू: शीला का जन्म कपूरथला (पंजाब) में हुआ है, पर उनकी शादी यूपी में हुई। उनके ससुर उमा शंकर दीक्षित उन्नाव के रहने वाले थे। वह बंगाल के गवर्नर थे। उनके बेटे विनोद दीक्षित से शीला दीक्षित की शादी हुई थी। विनोदी आईएएस थे। जब वह आगरा के डीम थे, तब शीला समाजसेवा में सक्रिय थीं। बाद में वह राजनीति में आ गईं। वह 1984-89 के बीच कन्नौज से सांसद भी रह चुकी हैं। हालांकि, उसके बाद लगातार तीन चुनावों में उन्हें हार का मुंह भी देखना पड़ा।
दिल्ली में लंबा अनुभव: शीला दीक्षित 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रही हैं। उन्हें सरकार चलाने और चुनाव जिताने का लंबा अनुभव रहा है। यूपी में कांग्रेस करीब तीन दशक से सत्ता से दूर है। ऐसे में शीला का अनुभव उसके काम आ सकता है।
ऊंचा राजनीतिक कद: शीला दीक्षित राजनीतिक रूप से काफी ऊंचे कद की हैं। पार्टी में वरिष्ठ भी हैं। ऐसे में गुटबाजी से जूझ रहे यूपी में उनके नाम पर सर्वसहमति बनने के ज्यादा आसार हैं। 15 साल मुख्यमंत्री रहने के अलावा शीला केंद्र की राजीव सरकार में राज्य मंत्री और राज्यपाल की भूमिका भी निभा चुकी हैं।