पंजाब के लुधियाना जिले के छोटे से कस्बे पायल में मुस्लिम महिला गौशाला चला रही हैं। उनकी गौशाला में अभी 33 मवेशी हैं। इस गौशाला को 33 साल की सलमा चलाती हैं। सलमा इस गौशाला में बूढ़े, घायल और आवारा गायों और सांड़ों को लेकर आती हैं। इन्हीं मवेशियों में उनकी दुनिया भी बसती है। मवेशियों की हर बात उन्हें मुंह जुबानी याद है, जैसे पार्वती शर्मिली है। महेश गुस्सैल है और छोटी—छोटी बातों पर ब्रह्मा और विष्णु से लड़ बैठता है। सलमा ने ये गौशाला अगस्त 2007 में शुरू की थी। उन्हें एक घायल सांड मिला और वह उसे घर ले आईं। उसका नाम नंदी रखा गया। जल्दी ही वह एक लावारिस गाय को भी घर ले आईं थीं, जिसका नाम गौरी रखा गया था। जल्दी ही उनके बाड़े को मुस्लिम गौशाला की पहचान मिल गई।
ये गौशाला फिलहाल सलमा ही चला रही हैं। उनके पिता नेक मोहम्मद और मौसी तेजो दोनों को मिलाकर कुल 45,000 रुपये पेंशन मिलती है। कस्बे में उनके अलावा कुछेक मुस्लिम परिवार और रहते हैं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा,”गौशाला को मुस्लिम गौशाला नाम सिर्फ इसीलिए दिया गया है क्योंकि लोग कहते हैं कि,”ये लोग सिर्फ मार-काट सकते हैं। हमारे भीतर भी दिल है। हम भी जानवरों को प्यार करते हैं।”
सलमा 33 साल की हैं, लेकिन अभी भी अविवाहित हैं। वह कहती हैं कि वह सिर्फ उसी इंसान से शादी करेंगी जो उनके साथ गौशाला चलाने के लिए तैयार होगा। सलमा अभी तक कम से कम छह शादी के प्रस्तावों को ठुकरा चुकी हैं। सलमा कहती हैं कि गौशाला चलाने में धर्म का क्या काम है? हम हर चीज सिर्फ गायों के प्रेम के लिए करते हैं। वह कहती हैं,”मैं गायों को किसी देवी की तरह नहीं देखती, लेकिन ऐसे जीव की तरह जरूर देखती हूं जिसे मदद की जरूरत हो। मैं सिर्फ कुरान का अनुसरण करती हूं और अल्लाह की सिखाई बातों को मानती हूं। मेरा धर्म मुझे सिखाता है कि हर जीव की मदद करो, जिसे अल्लाह ने बनाया है और वह बेसहारा है। हम उन्हें पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल करते हैं और जब काम निकल जाता है तब उन्हें छोड़ देते हैं।

गौशाला चलाने में सलमा को कम मुसीबतें नहीं सहनी पड़ती हैं। उनके हिंदू और सिख पड़ोसी गौशाला के गोबर से आने वाली बदबू की शिकायत करते हैं। जबकि उनके मुस्लिम रिश्तेदार उनसे गौशाला बंद करने के लिए कहते हैं। सलमा ने अपनी कई गायों के नाम हिंदू देवी—देवताओं पर रखे हैं। जैसे पार्वती, जगदंबा, दुर्गा, मीरा, सरस्वती, राधा, लक्ष्मी और तुलसी जबकि 2012 के बाद उन्होंने गायों को आशु, जान, गुलबदन, कुमकुम, हनी और बादशाह जैसे नाम दिए हैं।
सलमा के खिलाफ पिछले साल पांच मवेशियों को मौत के बाद जमीन में दबाने के आरोप में रिपोर्ट भी दर्ज हुई थी। सलमा ने मौत के बाद अपनी गायों की खाल उतरवाने से इंकार कर दिया था। उन्होंने अपनी गायों को गड्ढा खुदवाकर अपनी ही जमीन में दबाने का फैसला किया था। सलमा कहती हैं कि मैं अपनी कोशिशों को किसी राजनीति का रंग नहीं देना चाहती हूं। राजनीतिक पार्टियां गाय और धर्म के नाम पर असल मुद्दों जैसे गरीबी और बेरोजगारी से भटकाने की कोशिश करते हैं।