पंजाब में नशे का कारोबार रोकने के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कड़ा रुख अपनाया था। लेकिन अब उनके इसी रुख पर सियासत जोर पकड़ने लगी है। पहले कैप्टन के फैसले का विरोध सरकारी कर्मचारियों ने ये कहकर किया कि सिर्फ सरकारी कर्मचारी ही क्यों डोप टेस्ट करवाएं? सीएम, उनके मंत्री, पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी डोप टेस्ट क्यों नहीं करवाते?
इस विवाद के बाद, पंजाब में आम आदमी पार्टी के उपाध्यक्ष और सुनाम सीट से विधायक अमन अरोड़ा ने गुरुवार (5 जुलाई, 2018) को अपना डोप टेस्ट करवाया। अमन अरोड़ा ने मोहाली के सरकारी अस्पताल में जाकर डोप टेस्ट के लिए अपने खून का नमूना दिया। इसी के साथ अमन अरोड़ा ने ये मांग कर दी है कि सीएम अमरिंदर सिंह भी अपना डोप टेस्ट करवाएं और उसकी रिपोर्ट जनता के साथ साझा करें। अमन अरोड़ा के अलावा पंजाब सरकार के मंत्री और कांग्रेस विधायक तृप्त बाजवा ने भी मोहाली के सरकारी अस्पताल में डोप टेस्ट के लिए खून का नमूना दिया है।
दरअसल सीएम अमरिंदर सिंह ने सोमवार (2 जुलाई) केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर एनडीपीएस एक्ट में मृत्युदंड का विधान करने की मांग की थी। ये सजा नशे के तस्कर और ड्रग पैडलर दोनों पर लागू होने वाला था। इस पत्र को लिखने के एक दिन बाद कैबिनेट की मीटिंग बुलवाई थी। कैप्टन ने पांच घंटे लंबी चली इस मीटिंग में फैसला किया गया था कि सभी सरकारी कर्मचारी और पुलिसकर्मी अपना डोप टेस्ट करवाएंगे। ये टेस्ट किसी भी सरकारी नियुक्ति से पहले भी करवाया जाना तय किया गया था।
We have no objection to dope test.We demand govt notification should also include the CM,ministers,MLAs,Party presidents& their workers.Why should they be excluded?:SK Khehra,Pres,Punjab Civil Secretariat Assoc.on Punjab CM’s announcement of an annual dope test for govt officials pic.twitter.com/jr3M95uKvO
— ANI (@ANI) July 5, 2018
सरकार के प्रवक्ता के मुताबिक, “मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को इस संबंध में काम करने और जरूरी अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए हैं।” प्रवक्ता ने कहा, “मुख्यमंत्री ने भर्ती और पदोन्नति के सभी मामलों में ड्रग्स स्क्रीनिंग को अनिवार्य बनाने के आदेश दिए हैं। इसके साथ वार्षिक मेडिकल जांच के आदेश दिए हैं, जिसके अंतर्गत कुछ कर्मचारियों को उनकी ड्यूटी के हिसाब से जांच करवाना पड़ेगा।” उन्होंने कहा, “पंजाब सरकार के अधीन काम करने वाले सिविल/पुलिस कर्मचारियों के लिए वार्षिक मेडिकल परीक्षण के अंतर्गत डोप टेस्ट को अनिवार्य कर दिया गया है।” अगर कोई सरकारी कर्मचारी डोप टेस्ट में फेल हो जाता है तो पंजाब सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी।
गुरुवार को इस फरमान पर सियासत गरम हो गई। सबसे पहले पंजाब सिविल सचिवालय एसोसिएशन के अध्यक्ष एस के खेहरा ने कहा, “हमें डोप टेस्ट में कोई आपत्ति नहीं हैं, हम मांग करते हैं कि सरकार के नोटिफिकेशन में मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधायकों पार्टी अध्यक्षों और उनके कार्यकर्ताओं का भी नाम हो। आखिर इन्हें क्यों छोड़ा जाना चाहिए।”

बता दें कि पंजाब में नशाखोरी एक व्यापक समस्या हो गई है। राज्य के लाखों युवा ड्रग की चपेट में आकर अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। राज्य में नशाखोरी इस कदर बढ़ गई है कि नशा अब पंजाब में चुनावी मुद्दा भी बन चुका है। इससे पहले पंजाब में विधानसभा चुनावों के वक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने अकाली दल के विधायक विक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ नशे का कारोबार संचालित करने का आरोप लगाया था। इस पर अरविंद केजरीवाल पर मजीठिया ने मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया था। हालांकि बाद में केजरीवाल ने अपने आरोप बेबुनियाद होने की बात कहते हुए मजीठिया से लिखित माफी मांग ली थी।

