अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से वहां के नागरिकों में खौफ का माहौल है। हाल ये है कि लोग किसी भी तरह से वहां से निकलना चाह रहे हैं। लोग तालिबान के खौफ से विदेशों में बेहतर जिंदगी की तलाश में है। यही कारण है कि जहां भी उन्हें उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है, वो उधर दौड़े चले जा रहे हैं।

अफगानिस्तान के आम नागरिकों को सबसे ज्यादा उम्मीद भारत से है। तभी तो जब एक एनजीओ ने जब अफगान छात्रों की मदद करने की घोषणा की, तो उसके पास फोन कॉल्स की बाढ़ आ गई। अफगानिस्तान के साथ-साथ भारत में रह रहे कई अफगानों ने इसके लिए कॉल किया। जिसके बाद पुणे स्थित एनजीओ ‘सरहद’ 1000 अफगानी छात्रों को गोद लेने की योजना बना रहा है। एनजीओ से पुणे के अलावा महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में रहने वाले अफगान लोग भी संपर्क कर रहे हैं।

सरहद के संस्थापक-अध्यक्ष संजय नाहर ने शुक्रवार को इंडियन एक्सप्रेस को बताया- “कुछ दिन पहले हेल्पलाइन शुरू करने के बाद से, हमें अफगानिस्तान के छात्रों, कामकाजी पेशेवरों और नागरिकों के साथ-साथ पुणे और राज्य के अन्य शहरों में रहने वाले लोगों के लगातार फोन आ रहे हैं।”

सरहद ने अफगान छात्रों और वर्तमान में महाराष्ट्र में रह रहे नागरिकों से हेल्पलाइन नंबर 8007066900 पर कॉल या व्हाट्सएप करने की अपील की है। नाहर ने कहा कि जो छात्र भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) से छात्रवृत्ति लेकर भारत आए हैं, उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। “लेकिन जो लोग अपने पैसे पर आए हैं, उनके पास कॉलेज की फीस देने के लिए भी पैसे नहीं है। वे छात्र और कामकाजी पेशेवर जो कोविड के दौरान वापस अफगानिस्तान चले गए थे। वे अब वापस लौटना चाहते हैं, लेकिन उन्हें वीजा की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

कई छात्र पुणे में अपना डिग्री कोर्स पूरा करने के लिए लौटने के लिए तरस रहे हैं। कुछ छात्र अपने परिवार से घर वापस संपर्क करने में सक्षम हुए हैं, जबकि अन्य अपने परिवारों के साथ कोई संपर्क स्थापित नहीं कर पाए हैं। नाहर ने कहा कि अफ़गानों की समस्या यह है कि मुंबई स्थित उनका वाणिज्य दूतावास उन्हें बाहर निकालने के लिए कुछ नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि वे पुणे विश्वविद्यालय के कुलपति से मुलाकात कर उनसे या तो फीस माफ करने या अफगान छात्रों की समस्याओं का कोई समाधान निकालने का अनुरोध करेंगे।

उन्होंने कहा- “अफगानिस्तान उथल-पुथल में है। इसके नागरिक, छात्र और युवा बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और असमंजस और चिंता की स्थिति में हैं। अफगानिस्तान में रहने वाले लोग देश छोड़कर यहां शरण लेना चाहते हैं। ऐसी अस्पष्ट स्थिति में, मुझे लगता है कि हमें अफगान छात्रों और नागरिकों की हर संभव मदद करनी चाहिए। यदि हम या तो कॉलेज के छात्रों की फीस माफ कर देते हैं या उस देश में स्थिति सामान्य होने तक फीस को रोक देते हैं, तो यह दुनिया की नजरों में भारत का कद बढ़ा देगा। हम वीसी से मिलेंगे और एक अनुरोध करेंगे।”

नाहर ने बताया कि उनका एनजीओ पहले कश्मीरी छात्रों को भी गोद ले चुका है। अब वे अफगान छात्रों के लिए अपने प्रयासों को दोहरा सकते हैं। इसके लिए गुरु तेग बहादुर समिति का गठन किया गया है और इसमें मदद के लिए सिख समुदाय आगे आया है।

नाहर ने कहा कि चूंकि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान के अधिग्रहण पर भारत का रुख अभी भी स्पष्ट नहीं है, वे भी असमंजस की स्थिति में हैं। भारत को तालिबान पर अपना रुख घोषित करना चाहिए जो छात्रों और नागरिकों को उनके देश के लिए मदद करेगा। हम मुश्किल में फंसे अफगान छात्रों को गोद लेना चाहते हैं। हमें उम्मीद है कि हमारी सरकार हमें ऐसा करने की अनुमति देगी। हम 1000 अफगान छात्रों को गोद लेने के अपने प्रस्ताव के साथ जल्द ही सरकारी अधिकारियों से मिलेंगे।

सरहद उनकी शिक्षा को जारी रखने के लिए आवश्यक व्यवस्था करने की कोशिश करेगा और केंद्र सरकार की मदद से उनके रिश्तेदारों से संपर्क करेगा। सरहद जरूरतमंद अफगान छात्रों को रोजगार देने का भी प्रयास करेगा। सरहद 2012 से अफगान छात्रों को शैक्षिक मामलों में सक्रिय रूप से मदद कर रहा है।