गुजरात की पावागढ़ शक्तिपीठ में स्थित महाकाली माता के मंदिर के शिखर पर अब सैकड़ों सालों बाद ध्वज लहराएगा। मंदिर के सामने एक दरगाह थी जिसको हटाकर महाकाली मंदिर का पुनर्निमाण किया गया है। इस ऐतिहासिक काम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 जून को अंजाम देंगे।

ट्रस्ट के सेक्रेटरी अशोक पंड्या ने बताया कि ये हम सब का सौभाग्य है। सदियों से हम लोग इंतजार कर रहे थे। हमारी कई पीड़ियों ने इंतजार किया। उन्होंने कहा कि हमारी काली माता में आस्था है, लेकिन जो मंदिर का शिखर है वो खंडित है। इसकी वजह से शिखर के ऊपर हम ध्वजा नहीं चढ़ा सकते थे। आज ऐसी स्थिति बनी कि सद्भावना से मंदिर परिसर का पुनर्निमाण के साथ ही शिखर नया बन चुका है।

पंड्या ने बताया कि सदियों बाद 18 जून को सुबह 9 बजे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां आएंगे और पावागढ़ शक्तिपीठ पर ध्वजा चढ़ाएंगे। वहीं मंदिर के गर्भगृह को स्वर्ण मंडित किया जा रहा है। वहीं दो मंदिर का द्वार है वो चांदी के बने हुए हैं। मंदिर के शिखर पर लगा कलश भी सोने का बना हुआ है। वहीं मंदिर कुल मिलाकर 12 स्वर्ण कलश हैं। जो मंदिर को एक भव्य स्वरूप प्रदान करते हैं। सबसे खास बात जो है वो यह है कि एक ही भक्त परिवार ने मंदिर को डेढ़ किलो सोना दान किया है।

मंदिर का क्यों नहीं हो पा रहा था पुनर्निमाण
अदानशाह पीर की दरगाह के चलते मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं हो पा रहा था। यह दरगाह मंदिर के गर्भगृह के ठीक ऊपर बनी हुई थी। जिसको लेकर कई सालों तक विवाद चला। यह मामला गुजरात हाई कोर्ट में भी गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। लंबी बातचीत के बाद करीब 4 साल पहले एक समझौते के तहत दरगाह को गर्भगृह से हटा कर मंदिर के प्रांगण में ही एक कोने में बना दिया गया और मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू हुआ। इस भव्य महाकाली मंदिर का का गर्भगृह सोने का बना हुआ है और इसके शिखरों और योगशाला पर कुल मिलकर 12 स्वर्ण मंडित कलश लगे हुए हैं।

मुस्लिम सुलतान मोहम्मद बेगड़ो ने मंदिर पर किया था हमला
पावागढ़ पहाड़ियों की तलहटी में चंपानेर नाम की जगह है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री चंपा के नाम पर बसाया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया है। जानकारी के मुताबिक विक्रम संवत 1540 में मुस्लिम सुलतान मोहम्मद बेगड़ो ने इस मंदिर पर हमला किया था। इस मंदिर का पुनर्निर्माण कनकाकृति महाराज दिगंबर भत्रक ने कराया। इस मंदिर को एक जमाने में शत्रुंजय मंदिर कहा जाता था। मंदिर की छत पर मुस्लिमों का एक पवित्र स्थल अदानशाह पीर की दरगाह स्थित थी, जिसे अब प्रांगण के एक कोने में कर दिया गया है। यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

पावागढ़ के रावल राजा की कहानी
वडोदरा से करीब 46 किमी दूर पावागढ़ एक पहाड़ पर स्थित है। यहां की एक ऊंची चोटी पर माता काली विराजमान हैं। धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह स्थल रावल वंश के शासक से भी जुड़ा है और यहां पर कभी उनका राज हुआ करता था। लोक कथाओं के अनुसार एक बार नवरात्र उत्सव के दौरान गरबा में मां काली एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर शामिल हो गई। वहां के राजा ने गरबा करती हुई उस सुंदर स्त्री पर कुदृष्टि डाली, परिणामस्वरूप मां ने उन्हें शाप दे दिया जिसके कारण उसका राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। इसके कुछ वक्त बाद ही मोहमद बेगड़ो ने पावागढ़ को जीत लिया था।

इस जगह का नाम इसलिए पड़ा पावागढ़ –
प्राचीन काल में इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव थी। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ बहुत ज्यादा रहता है, इसलिए इसे पावागढ़ कहते हैं यानी ऐसी जगह जहां पवन (हवा) का वास हमेशा एक जैसा हो उसे कहा जाता है।

मंदिर का महत्व, क्यों बना शक्तिपीठ –
देवी पुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ में शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण माता सती ने योग बल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करते हुए सम्पूर्ण ब्रह्मांड में भटकते रहे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े कर दिये। उस समय माता सती के अंग, वस्त्र तथा आभूषण जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ बन गए। पावागढ़ पर सती का वक्षस्थल गिरा था। जगतजननी के स्तन गिरने के कारण इस जगह को बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहां दक्षिण मुखी काली देवी की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति यानि तांत्रिक पूजा की जाती है।

पावागढ़ का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व
यह मंदिर श्रीराम के समय का है। इसको शत्रुंजय मंदिर’ कहा जाता था। यह भी माना जाता हैं कि मां काली की मूर्ति विश्वामित्र ने ही स्थापित की थी। यहां बहने वाली उन्हीं के नाम पर है विश्वामित्री पड़ा। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम, उनके बेटे लव और कुश के अलावा बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था। यहां पर ऋषि विश्वामित्र ने माता काली की कठोर तपस्या की थी। पावागढ़ पर्वत पर स्थित शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक हैं। पावागढ़ जैन संप्रदाय के लिए भी काफी महत्व रखता है। इस स्थल को वैश्विक संस्था यूनेस्को ने सन 2004 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया।