हाल में राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं। लेकिन इस मामले में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता भी पीछे नहीं है। यहां की हवा में भी तेजी से प्रदूषण का जहर घुलता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2016 की अपनी एक रिपोर्ट में कोलकाता को दिल्ली के बाद देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर करार दिया था। दिवाली के मौके पर इस प्रदूषण में तेजी से वृद्धि हुई है। दीपावली के दो दिनों बाद यहां अमेरिकी कौंसुलेट में प्रदूषण मापने के लिए लगे यंत्र ने महानगर के वायु गुणवत्ता सूचकांक को 420 बताया था जो दिल्ली के बराबर था। पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक पहली नवंबर को महानगर की हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) यानी छोटे कण 2.5 का औसत स्तर 36 था जो सात नवंबर को 500 तक पहुंच गया। पहली नंवबर को औसत पीएम 10.38 था जो सात नवंबर को 209 तक पहुंच गया। जाने-माने पर्यावरणविद् नब दत्ता कहते हैं कि तिपहिया वाहनों में मिट्टी का तेल मिला र्इंधन इस्तेमाल करना महानगर के प्रदूषण की एक प्रमुख वजह है। इसके साथ ही हाल के कुछ वर्षों में यहां खुली जगह सात फीसद सिकुड़ गई है। आबादी के घनत्व के लिहाज से किसी भी महानगर में खुली जगह का अनुपात 25 से 30 फीसदी के बीच होना चाहिए। वे कहते हैं कि वाहनों की तादाद के लिहाज से कोलकाता की सड़कों की लंबाई दिल्ली व चेन्नई के मुकाबले कम है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 2015 में कोलकाता में छोटे कणों यानी 2.5 पीएम का सालाना औसत 52 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था जो वर्ष 2016 में बढ़ कर 74 माइक्रोग्राम तक पहुंच गया। सेंटर फार साइंस एंड इनवायरनमेंट (सीएसई) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2010 से 2013 के बीच हवा में इन छोटे कणों की मौजूदगी में 61 फीसद की वृद्धि हुई। पर्यावरणविदों का कहना है कि कोलकाता में हवा की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान से भी कहीं ज्यादा खराब है। एक पर्यावरणविद् प्रदीप कुमार चोपड़ा कहते हैं कि यह एक खतरनाक स्थिति है। कोलकाता में हवा की गुणवत्ता दिल्ली और दूसरे महानगरों की तुलना में तेजी से खराब हो रही है। इस पर अंकुश लगाने की दिशा में शीघ्र ठोस उपाय किए जाने चाहिए।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर कल्याण रूद्र महानगर की हवा के तेजी से जहरीली होने की कई वजहें मानते हैं। उनका कहना है कि दिवाली के अलावा आसमान में छाए बादल और हवा की गति लगभग नहीं के बराबर होना भी इसके अन्य प्रमुख कारण हैं। जाने-माने पर्यावरणविद् सुभाष दत्त कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की वजह से इस साल पहले के मुकाबले कम पटाखे फोड़े गए हैं। ऐसा नहीं होता तो परिस्थिति और गंभीर हो जाती।
प्रदूषण के बढ़ते स्तर से कई खतरनाक बीमारियां पांव पसार सकती हैं। इनमें सांस, गले, आंख और दिल की बीमारियां शामिल हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि उसने हवा को जहरीली होने से रोकने की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन कुछ चीजें उसके हाथ में नहीं हैं। कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ सुगत हाजरा कहते हैं कि यह समस्या बहुआयामी है। दशकों से किसी भी सरकार या प्रदूषण नियंत्रण एजंसियों ने बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। कोलकाता स्थित चितरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के पूर्व सहायक निदेशक मानस रंजन रे कहते हैं कि वायु प्रदूषण एक साइलेंट किलर है। यह एक राष्ट्रीय समस्या है, जिससे निपटने के लिए तत्काल ठोस उपाय करना जरूरी है।