भारत एलएसी पर सीमा विवाद कम करने के लिए बीजिंग के साथ मिलकर काम कर रहा है। इधर नई दिल्ली ने भी सीमा विवाद को सुलझाने के लिए चार नीतिगत दृष्टिकोण पर काम करने का निर्णय लिया है। इनमें सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी कम करना, अस्थायी रूप से दोनों ओर बफर जोन की पैट्रोलिंग बंद करना, निरंतर निगरानी और संघर्ष बिंदुओं की टोह लेना, और प्रक्रिया पूरी होने तक निचले क्षेत्रों में पर्याप्त सैन्य जवानों की मुस्तैदी शामिल है।
चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी के साथ 5 जुलाई को विशेष प्रतिनिधि स्तरीय वार्ता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोवाल ने एक ब्रीफिंग में यह चार स्तंभ का दृष्टिकोण दिया। बता दें कि इस दृष्टिकोण पर 24 जून से भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र की बैठक और दोनों पक्षों में कोर कमांडरों की 30 जून की बैठक से काम हो रहा था।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनएसए चीफ के अलावा विदेश मंत्री एस जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह इस दृष्टिकोण को अंतिम रूप देने में सहायक थे।
द इंडियन एक्सप्रेस को इसके बारे में जानकारी मिली है-
सार्वजनिक बयानबाजी को कम करें, गतिरोध से सम्मानजनक निकास के लिए दोनों पक्षों को कुछ कूटनीतिक और सहमतिपूर्ण स्थान दिया जाए। अस्थायी रूप से गश्त को निलंबित करें, दोनों तरफ 1.5 किमी की दूरी पर विघटित और पीछे हटें। हालांकि पिछले बयानों के वितरीत गलावन घाटी का मुद्दा नहीं उठाया गया और ना ही वायुमंडल के बारे में बात की।
इसे आत्मविश्वास बनाने के लिए एक अस्थायी उपाय कहा जा रहा है। इसका यह मतलब नहीं है कि दोनों पक्ष अपनी गश्त की सीमा तक गश्त करने के अधिकार को त्याग रहे हैं। दोनों पक्ष कुछ हफ्तों तक गश्त नहीं करने पर सहमत हुए हैं। आक्रामक निगरानी और संघर्ष बिंदुओं और पूरी गतिरोध सीमा की टोह इसमें शामिल है। क्योंकि दोनों पक्षों के बीच विश्वास की कमी के कारण यह आवश्यक हो गया है।
‘भरोसा मत करो, सत्यापित करो।’ गलवान घाटी में 15 जुलाई की घटना के कड़वे अनुभव के बाद नई दिल्ली का यह मंत्र है, जहां चीनी सैनिकों के साथ झड़पों में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। ऐसे में पीछे के क्षेत्रों में सैनिकों को तैनात रखें जब तक कि डिसएंगेजमेंट पूरी तरह से नहीं होता।