इन दिनों यातायात पुलिस सड़कों पर तैनात अपने बीट वाले पुलिसकर्मी को बस स्टाप की फोटो भेजना अनिवार्य कर दिया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वहां सड़क पर कोई रुकावट नहीं है। मसलन ठेला, रेहड़ी, खोमचा, आटो वाले सड़क पर कब्जा तो नहीं किए हैं जिससे आवाजाही बाधित हो रही हो। लेकिन बीट वाले इसका भी तोड़ निकाल ही लेते हैं।
बीते दिनों ऐसा ही माजरा दिखा, होली फैमली अस्पताल (फोटिज-एस्कर्ट हास्पिटल लाल बत्ती ) महारानी बाग की ओर आने वाले बस स्टैंड पर। हुआ यूं कि, दिल्ली पुलिस के एक एसआइ और एक हेड कांस्टेबल के वहां पहुंचते ही गैर कानूनी तौर पर अड्डा जमाए आटो वालों के बीच हलचल मच गई। सब इधर-उधर होने लगे। लेकिन वहां खड़ा पानी वाला, रेहड़ी वाला तटस्थ हैं। फिर पानी वाले और एक रेहड़ी वाले को रास्ता छोड़ने को कहा जाता है।
सब चार-छह कदम आगे पीछे खिसका दिए जाते हैं। फिर एक फोटो खींचा जाता है। फिर दोनों पुलिस वाले अपने अफसरों के बारे में कुछ बुदबुदाते हुए चले जाते हैं। उनके जाते ही आटो, रेहड़ी और पानी वाले फिर अपने पुराने स्थान पर यह कहते हुए आ जाते हैं कि उनको फोटो खींचना था वो हो गया। अब जिसे पानी पीना है आ जाओं! ये रोज का है। पानी पीते हुए राहगीर बोल पड़े- अफसर डाल-डाल बीट वाले पुलिसकर्मी पात-पात ! फोटो से ही काम चल रहा है।
नौकरी का वीडियो
अभी तक बेरोजगारों के लिए ‘नौकरी के लिए आवेदन करें’ जैसे पर्चे छपे मिलते थे। लेकिन दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से आटो व अन्य जगह ‘नौकरी’ के लिए जो विज्ञापन दिख रहे हैं वह थोड़े अलग है। यह पर्चे लगाकर पूछा जा रहा है कि क्या आपको मिली दो लाख में कोई नौकरी। यह पर्चे बेरोजगारों को नौकरी देने के लिए नहीं है, बल्कि उनसे वीडियो लेने के लिए है।
ये पोस्टर हिंदू सेना ने जारी किए हैं। इन पर्चों पर लिखा है कि अगर आपको आम आदमी पार्टी द्वारा दो लाख नौकरियां मिली हैं तो उसका वीडियो दीजिए। वीडियो देने पर इनाम देने का दावा किया जा रहा है। बस स्टाप पर लगे ऐसे ही पर्चे को देखकर एक राहगीर बोल पड़ा, जो यह पर्चे लगा रहा है वह नौकरीपेशा है या बेरोजगार। वह खुद भी अपना वीडियो बनाकर भेज सकता है ताकि उसे इनाम मिल जाए।
शराब और जुगाड़
शराब पीने के लिए क्या-क्या जुगाड़ नहीं लगाते। कभी नोएडा से दिल्ली आते हैं तो कभी ज्यादा पैसे देकर शराब लेते हैं। दिल्ली में तो ऐसे दिन भी दिखे जब लोग शराब सस्ती पाकर उसका कोटा घर में रखने लगे। नोएडा में बेदिल को जानकारी मिली कि यहां शराब दुकानदार कम आमदनी से परेशान हैं। दिल्ली में सस्ती शराब से नोएडा में जैसे ग्राहकों का आकाल पड़ जाता है।
ऐसे में शराब नहीं है, कोटा खत्म या कोई और बहाना बताकर वे शराब को थोड़े ऊंचे दामों में बेचने की कोशिश में लगे रहते हैं। लेकिन यह धंधा भी तभी तक चल पाता है जब तक ग्राहक पैसा नगद दे रहा हो, क्योंकि डिजिटल भुगतान में यह काम नहीं हो सकता। ऐेसे में अब दुकानदारों के जुगाड़ को झटका दे रहे हैं यहां के खरीदार। वे डिजिटल भुगतान से ही शराब खरीदते दिख रहे हैं। हालांकि दुकानदारों की मजबूरी है कि उन्हें शराब दें। वरना वे ज्यादा कमाने के फेर में नियमित बिक्री भी खो देंगे।
पूर्व हुए पुराने
रामलीला मैदान में आयोजित कांग्रेस की महंगाई को लेकर हल्ला बोल रैली में दिल्ली के कांग्रेसियों को ज्यादा मौका नहीं मिला। इनमें कई ऐसे नेता रहे जो पहले बड़े-बड़े पदों पर रहें और अब खाली हैं। पूर्व का तमगा लिए ये नेता दावे कर रहे थे सैकड़ों कार्यकर्ताओं को लाने का लेकिन उनके साथ रैली स्थल पहुंचने वाले ज्यादा नहीं थे। कुछ को इतनी झेंप हुई कि रैली खत्म होने से पहले ही निकल गए।
ऐसे ही एक नेता बेदिल से टकरा गए। बोलने का मौका मिला या नहीं यह पूछने पर बताया कि सौ से ज्यादा कार्यकर्ता को गाड़ी में लाए थे, लेकिन उनको संभालने में ही दिन बीत गया। अब भला इन महाशय को कौन बताए कि, जब मंच पर केंद्रीय नेताओं को जगह मिलनी मुश्किल हो गई तो फिर दिल्ली वाले पूर्व को कौन पूछे।
दलबदल ही हल
बीते महीने दिल्ली में नगर निगम चुनावों की सुगबुगाहट होते ही नेताओं ने पाला बदलने का दौर शुरू कर दिया था। ये नेता एक उम्मीद के साथ पाला बदल रहे थे कि उन्हें टिकट मिलना तय है। पर निगम चुनाव टलने के बाद उनके मंसूबों पर पानी फिर गया है। पार्टी मुख्यालय में आए दिन हजारी लगाने वाले नेता अब दूरी बनाने लगे हैं। इन नेताओं की सक्रियता जिस प्रकार से कम हुई है। उ
सको लेकर पार्टी मुख्यालय में चर्चा है कि दलबदलु नेताओं की ना तो कोई विचारधार होती है और ना ही उनको अपनी क्षेत्र की विकास से कोई लेना देना होता है। वे तो केवल अपने हित के लिए नए-नए ठिकानों की तलाश चुनावी मौसम में करते रहते हैं। जीत जाएं तो उनके लिए बल्ले-बल्ले और हार का सामना करना पड़े तो आगामी चुनाव में फिर से एक नए ठिकाने की तलाश में जुट जाते हैं।
मंसूबों पर पानी
दिल्ली में नगर निगम चुनावों की सुगबुगाहट होते ही नेताओं ने पाला बदलने का दौर शुरू कर दिया था। ये नेता एक उम्मीद के साथ पाला बदल रहे थे कि उन्हें टिकट मिलना तय है। पर निगम चुनाव टलने के बाद उनके मंसूबों पर जैसे पानी फिर गया है। अब तो पाला बदलने वाले पार्टी मुख्यालय से दूर होते दिख रहे हैं। इन नेताओं की सक्रियता ऐसी कम हुई कि पार्टी में चर्चा शुरू हो गई। किसी ने ठीक ही कहा है दलबदलू नेता केवल अपने हित की सोचते हैं। इसलिए उनकी कोई विचारधारा नहीं होती। अपने विचारों पर अमल करना और उसी पर चलना ही उनका पहला मानक होता है।
-बेदिल