पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के भाई और परिवार की जमीन नीलाम हो गयी है, जिसे खरीदने के लिए लोगों ने खूब बोली लगाई है। इस 13 बीघा जमीन का आधार मूल्य 39 लाख 6 हजार रुपये रखा गया था पर जमीन एक करोड़ 38 लाख 16 हजार रुपये से ज्यादा में नीलाम हुई। नीलामी का यह पैसा केंद्रीय गृह मंत्रालय के शत्रु संपत्ति अभिरक्षक विभाग के खाते में जमा होगा। यह उत्तर प्रदेश में जमीन का आखिरी टुकड़ा है जो पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के पूर्वजों का है।
गांव की बस्ती से एक किलोमीटर दूर यह 13 बीघे जमीन कोताना में अब तक बेची गई जमीन के अन्य टुकड़ों से अलग है। बड़ौत के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट अमर वर्मा ने कहा कि जमीन सीधे तौर पर मुशर्रफ की नहीं है। वर्मा ने कहा, “उनके पिता सैयद मुशर्रफुद्दीन और मां जरीन बेगम दिल्ली जाने से पहले कोताना में रहे, जहां मुशर्रफ का जन्म हुआ था।”
दिल्ली में उनका परिवार दरियागंज की नेहर वली हवेली, गोलचा सिनेमा के पास रहता था। अमर वर्मा ने बताया, “मुशर्रफ के पिता का कोताना में एक घर था जिसे बाद में स्थानीय लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया। उनके चाचा हुमायूँ जो कोताना में रहे, उन्होंने बाद में अपनी ज़मीन स्थानीय लोगों को बेच दी और देश छोड़ दिया लेकिन इस जमीन को भारत सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया और शत्रु संपत्ति (Enemy Property) घोषित कर दिया।”
शत्रु संपत्ति को भारत में पाकिस्तानी नागरिकों के स्वामित्व वाली संपत्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। ऐसी संपत्तियों का स्वामित्व भारत के शत्रु संपत्ति संरक्षक (Custodian of Enemy Property for India) को दे दिया जाता है।
ग्रामीण मुशर्रफ की जमीन पर गेंदा, गेहूं और धान की खेती करते थे
ग्राम प्रधान मुदीन खान ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “पिछले 10 सालों से इसे स्थानीय लोगों को तीन-तीन साल की अवधि के लिए पट्टे पर दिया गया था।” खान ने कहा कि ग्रामीण इस जमीन पर गेंदा, गेहूं और धान की खेती करते रहे हैं। उन्होंने कहा, “लेकिन पिछले साल, उन्होंने इसे पट्टे पर नहीं दिया। हमें इसका कारण नहीं पता था, 15 दिन पहले हमने कुछ अधिकारियों को जमीन की बिक्री की घोषणा करते हुए पोस्टर लगाते देखा था।”
मुदीन खान ने कहा कि गांव के लोगों को पहले यह नहीं पता था कि जमीन मुशर्रफ के परिवार की है। गांव के केवल कुछ बूढ़े ही कभी-कभी इसके बारे में बात करते थे। ग्रामीणों का दावा है कि यह बस्ती कम से कम 200 साल पुरानी है। बारादरी दरवाजा (पैगंबर लक्खी बंजारा द्वारा बनवाए गए 12 दरवाजे) की लोककथाओं से लेकर एक पुराने कुएं तक, जिसका उपयोग विभाजन के दौरान लोगों द्वारा किया जाता था, जब एक बड़े समूह में लोग पाकिस्तान के लिए रवाना हुए थे।

एक स्थानीय इदरीस खान ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “बहुत से लोग चले गए, उनकी ज़मीनें अभी भी यहाँ हैं। कुछ इमारतें समय के साथ नष्ट हो गईं और कुछ जिनका कोई खरीदार नहीं था, उन्हें सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया।”
कोताना में कपड़ा विक्रेता के रूप में काम करने वाले इद्दू खान ने कहा, “इस बात की पुष्टि करने के लिए बहुत से लोग नहीं बचे हैं कि मुशर्रफ यहां रुके थे या कभी यहां आए थे।” उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि गांव के किसी व्यक्ति ने पाकिस्तान में बड़ा नाम कमाया।