खर्च और जनजीवन में खलल घटाने के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ करने की एक संसदीय पैनल की सिफारिश पर राजनीतिक दलों ने मिली-जुली प्रतिक्रिया जताई है। जबकि चुनाव आयोग ने प्रस्ताव स्वीकार करने में अनेक दिक्कतें बताईं। कानून व कार्मिक संबंधी संसदीय स्थाई समिति ने देश भर में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की जोरदार वकालत की है।
समिति ने संसद में इसी हफ्ते पेश की गई अपनी रिपोर्ट ‘लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की व्यवहार्यता’ में कहा है-समिति ऐसा महसूस नहीं करती कि निकट भविष्य में हर पांच साल पर साथ साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। धीरे धीरे चरणबद्ध तरीके से ऐसी स्थिति पर पहुंचने के लिए कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल घटाया या बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार अन्नाद्रमुक, अगप, आइयूएमएल, डीएमडीके और शिअद ने कुछ सुझावों के साथ इस विचार की हिमायत की है। जबकि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, भाकपा, एआईएमआईएम और राकांपा ने इस विचार को खारिज कर दिया है। रिपोर्ट में इसका उल्लेख नहीं है कि भाजपा और अन्य पार्टियों का इसपर क्या रुख है।
अन्नाद्रमुक ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ कराने के विचार की हिमायत उसूली तौर पर की है। अन्नाद्रमुक ने कहा है कि भारत में एक साथ चुनाव होने का मतलब होगा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को एक नियत कार्यकाल देना होगा। नियत कार्यकाल, मतदान और मतगणना की नियत तारीख की भी घोषणा उसी तरह करनी चाहिए जिस तरह अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव के मामले में होता है।
अगप ने कहा है कि वह साथ साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन करती है क्योंकि इससे छोटी पार्टियों पर वित्तीय बोझ घटेगा। इससे आदर्श चुनावी आचार संहिता का काल घटेगा। जिसके बार-बार लागू होने से नीतिगत फैसले लेने की प्रक्रिया अक्सर ठप्प पड़ जाती है और विकास कार्यक्रम का क्रियान्वयन सुस्त पड़ जाता है। मुसलिम लीग ने भी विचार का समर्थन किया और कहा कि इससे देश के समय, ऊर्जा और संसाधनों की बचत होगी।