बिहार में बीते कुछ सालों में करीब 9 पत्रकारों की हत्या की गई है। यह आंकड़ा पुलिस रिकार्ड खंगालने पर सामने आया है। पत्रकारों की हत्या का यह आंकड़ा ज्यादा भी हो सकता है, लेकिन कोई भी सरकार मामले को गंभीरता से नहीं लेती। जानकारी के मुताबिक, जिन पत्रकारों को मौत के घाट उतारा गया है, उनमें डेयरी ओन सोन के विजय बहादुर सिंह, सीतामढ़ी के अजय विद्रोही, गया के महेंद्र पांडेय, रोहतास के सिराजुद्दीन व रामजतन पांडेय और सीवान के मणिशंकर सिंह शामिल हैं। यहीं के श्रीकांत राय की भी बीते महीने हत्या कर दी गई थी।
ये सीवान के सांसद ओमप्रकाश के मीडिया प्रभारी थे। इस महीने सीवान में एक दैनिक अखबार के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन और झारखंड के चतरा में एक टीवी पत्रकार इंद्रदेव यादव को निशाना बनाया गया। पत्रकार समुदाय इन दोनों हत्याओं को लेकर गुस्से में है। बिहार के विभिन्न जिलों से धरना प्रदर्शन की खबरें मिल रही हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने इनके परिजनों से मिलकर भरोसा दिलाया है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ के एक शोध के मुताबिक देश में 1992 से अब तक 91 पत्रकारों की हत्या की गई है, लेकिन केवल 4 फीसद मामलों में ही न्याय मिल सका। जिन पत्रकारों की हत्या की गई उनमें 88 फीसद प्रिंट मीडिया से जुड़े थे और 12 फीसद टीवी पत्रकार थे। भारतीय प्रेस परिषद ने भी पत्रकारों की हत्या पर दुख जताते हुए फौरन कार्रवाई की मांग की है और केंद्र व राज्य सरकारों से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक विशेष कानून बनाने की मांग की है।
इस बीच जिला प्रशासन ने सीवान जेल में दो बार छापा मारकर कई आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद कीं। इसी जेल में बंद पूर्व राजद सांसद शहाबुद्दीन को भागलपुर जेल भेज दिया गया है। प्रशासन ने पुलिस के अफसरों को शहाबुद्दीन से मिलने वालों पर कड़ी नजर रखने की हिदायत भी दी है। शहाबुद्दीन के सात गुर्गों को भी सीवान से बिहार की किसी दूसरे जेल में शिफ्ट कर दिया गया है।
पत्रकार राजदेव रंजन और इंद्रदेव यादव की हत्या के खिलाफ भागलपुर और आसपास के शहरों के पत्रकारों और राजनीतिक दलों में बेहद गुस्सा है। पत्रकारों ने इस बारे में डीएम को मांगपत्र दिया है मांग की है कि पत्रकारों के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए और उनके परिजनों को उचित मुआवजा व सुरक्षा दी जाए।
