बिहार की सियासत में कुछ तो बड़ा होने वाला है। इसके संकेत सीएम नीतीश कुमार ने खुद दे दिए हैं। जिस तरह से उनकी तरफ से बयानबाजी हो रही है, जिस तरह से वे सोशल मीडिया पर पीएम का आभार जता रहे हैं, जिस तरह से वे अपनी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रहे हैं, एक और पलटी की अटकलें तेज हो गई हैं। ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन हवा उसी ओर बहती दिख रही है।
अब इस समय हर तरफ नीतीश कुमार की चर्चा चल रही है। उनके अगले कदम पर नजर है, लेकिन लालू प्रसाद यादव को नजरअंदाज कर देना भी बड़ी भूल साबित होगा। अगर नीतीश सियासत में महारत रखते हैं तो लालू भी पीएचडी करके बैठे हैं। वे भी दो कदम आगे ही सोचते हैं। इसी वजह से एक नया विकल्प भी लालू के लिए खुल रहा है, अगर किसी तरह जेडीयू को तोड़ लिया गया तो सत्ता में बने रहने का मौका आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन के पास रहेगा।
अब ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि बिहार विधानसभा की जो वर्तमान स्थिति है, उसके मुताबिक बिना जेडीयू के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए आरजेडी गठबंधन को सिर्फ 8 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। इस समय बिहार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में आरजेडी खड़ी है जिसके खाते में 75 सीटें हैं, बीजेपी के पास 74 का आंकड़ा है, वहीं जेडीयू तो 50 से नीचे सिमट गई थी। लेकिन 2020 के चुनाव के वक्त नीतीश-बीजेपी साथ थे, ऐसे में उनका सीटों का कुल आंकड़ा 125 बैठा, ऐसे में वे सरकार बनाने में सफल हो गए।
अब हो ये रहा है कि अगर नीतीश फिर पलटी मारते हैं बीजेपी के साथ चले जाते हैं, उस स्थिति में विधानसभा में एनडीए के पास पूरे 127 विधायकों का समर्थन रहेगा, यानी कि जादुई आंकड़े 122 से पांच सीटें ज्यादा। वहीं आरजेडी गठबंधन के पास रह जाएंगी 114 सीटें, यानी कि बहुमत से आठ कम। अब 8 कोई बहुत बड़ा नंबर नहीं है जिसे हासिल ना किया जा सके। देश की तो ऐसी सियासत रही है जहां पर अगर बहुमत से 20-30 सीटें भी कम रह जाएं तो सरकार बना ली जाए।
इसी वजह से लालू प्रसाद यादव भी पूरी तरह मैदान में सक्रिय दिख रहे हैं। उन्होंने गुरुवार को ही स्पीकर अवध बिहारी चौधरी से बात कर ली है, क्या चर्चा हुई स्पष्ट नहीं, लेकिन वर्तमान सियासी हलचल के इर्द-गिर्द ही रही होगी, ऐसी अटकलें जरूर हैं। ये समझना जरूरी है कि स्पीकर आरजेडी नेता ही हैं, ऐसे में मुश्किल स्थिति में लालू की नाव को धक्का लगाने का काम किया जा सकता है।
अब यहां पर लालू को ज्यादा कुछ नहीं करना है, अगर वे बीजेपी की ही रणनीति पर अमल करते हैं तो बिहार में इस बार नीतीश नहीं, उनके द्वारा सबसे बड़ा सियासी खेला किया जा सकता है। असल में बीजेपी मध्य प्रदेश में जब कमलनाथ की सरकार गिरा खुद सत्ता पर काबिज हुई थी, तब उसमें एक रणनीति बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। असल में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सिर्फ अपने साथी विधायकों का समर्थन सरकार से वापस नहीं लिया था, बल्कि उनकी तरफ से विधानसभा से उन सभी का इस्तीफा दिलवा दिया गया था। उस वजह से विधानसभा में जो बहुमत का आंकड़ा था, वो काफी कम हो गया और बीजेपी ने इसका पूरा फायदा उठाया।
इसी तरह बिहार में अभी जरूर 122 का जादुई आंकड़ा है, लेकिन जरूरी नहीं कि ये यहीं पर टिका रहे। अगर रणनीति के तहत कुछ विधायक इस्तीफा दे दें तो विधानसभा छोटी हो जाएगी और तब नंबर गेम में लालू प्रसाद यादव पूरी टक्कर दे पाएंगे। लालू की स्थिति इसलिए भी मजबूत हो सकती है क्योंकि कुछ समय पहले ही ऐसी खबरें चली थीं कि जेडीयू में एक दर्जन से ज्यादा विधायक बागी हो सकते हैं, उसमें भी कुछ तो आरजेडी के पुराने सदस्य रह चुके हैं। ऐसे में नीतीश की पलटी को बेअसर करने के लिए अगर विधायकों को अपने पाले में कर लिया गया तो बिहार में महागठबंधन की सरकार कायम रहेगी, बस जेडीयू उससे आउट हो जाएगी।