केंद्र के तीन नए कृषि बिलों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन जारी है। पिछले महीने की 26 तारीख से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने सरकार से तत्काल इन बिलों को वापस लेने की मांग की है। कृषि बिलों के विरोध में आज यानी 9 दिसंबर को किसान संगठनों ने देशभर में बंद बुलाया है। इधर टीवी चैनलों की डिबेट में भी किसानों का मुद्दा प्रमुखता से छाया हुआ है। ऐसे ही टीवी चैनल न्यूज18 इंडिया के डिबेट शो ‘आर पार’ में पैनलिस्ट किसान प्रदर्शन के मुद्दे पर आपस में भिड़ गए।
दरअसल डिबेट शो में इंडियन मुस्लिम फाउंडेशन के अध्यक्ष शोएब जमई से एंकर अमिश देवगन ने पूछा कि वो किसान आंदोलन को समर्थन देकर क्या अपना एजेंडा आगे नहीं बढ़ा रहे हैं। जमई ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और इसका एक बड़ा हिस्सा किसानों के साथ जुड़ा है। किसान आंदोलन में हमने अपने किसी एजेंडे की बात नहीं की है। सिर्फ उन्हें अपना समर्थन दिया है क्योंकि हम उनका अनाज खाते हैं। उन्होंने कहा जब भाजपा विपक्ष थी तब आंदोलन में गैस सिलिंडर लेकर सड़कों पर उतर जाती थी। उन्होंने कहा कि ये जनता का प्रदर्शन है और धीरे-धीरे सरकार के खिलाफ बढ़ रहा है।
#आर_पार
शोएब जमई- किसान के आंदोलन को हमारा पूरा समर्थन है, हम किसान का अनाज खाते हैं तो हम उनके समर्थन में हैं@AMISHDEVGAN pic.twitter.com/7FKCdBBtrM— News18 India (@News18India) December 7, 2020
उन्होंने पैनल में मौजूद भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा पर निशाना साधते हुए कहा कि मोदी सरकार ने सर्दी के मौसम किसानों पर पानी की बौछारे करवा दीं, जबकि भाजपा किसानों को भगवान मानती है। पात्रा ने इसका जवाब दिया। उन्होंने कहा कि इनके अनुसार 2014 के बाद कोई सफेद कानून नहीं है। सभी काले कानून हैं। सारे कानून काले हैं तो क्या भाजपा को वोट मंगल गृह से मिल रहा है? क्या मंगल गृह के निवासी हमें वोट देकर जाते हैं?
#आर_पार
BJP के संबित पात्रा ने कहा- बिहार में भी तो 60 प्रतिशत किसान हैं, अगर वो खुश नहीं होते तो वोट क्यों देते@AMISHDEVGAN pic.twitter.com/AtWJu63cg1— News18 India (@News18India) December 7, 2020
बकौल पात्रा शोएब जमई के हिसाब से मंदिर गिरा देना चाहिए। सीएए लागू नहीं होना चाहिए, किसानों का सुधार ना हो। कोई कानून काला नहीं है जमई का दिल काला है। एक अन्य पैनलिस्ट के सवाल पर भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘अगर इस कानून से लोग खुश नहीं है तो बिहार में भी 60 फीसदी किसान हैं। अगर वो खुश नहीं होते तो वोट क्यों देते।’

