दिल्ली विधानसभा का बीता मानसून सत्र इस साल भी ‘छोटा मानसून सत्र’ होने के मिथक को नहीं तोड़ सका। यह सत्र अब तक का सबसे छोटा मानसून सत्रों में शुमार रहा। आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के आने के बाद न केवल सदन की बैठकों के हिसाब से बीते मानसून सत्र छोटा रहा बल्कि इस सत्र से भी शून्य काल व प्रश्न काल भी नदारत रहा। शून्य काल व प्रश्न काल न होने के मसले को विपक्ष मुद्दा बना चुकी है। संविधान के विशेषज्ञों ने प्रश्न काल को विधायी कार्यवाही की आत्मा बताया है।

जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2016, 2017, 2018, 2019 में मानसून सत्र की बैठकें लंबी चली। लेकिन पिछले और उसके पिछले साल मानसून सत्र हल्के में निपटा दिया गया। माना जा रहा था कि इस बार यह परिपाटी टूटेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 2022 का मानसून सत्र भी 20 और 21 की तरह केवल दो बैठकों में संपन्न हो गया। हालांकि विशेष उल्लेख (नियम 280) के तहत सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष को भी अपने विधानसभा की समस्या उठाने का मौका जरूर मिला, लेकिन वे अन्य समस्याओं को नहीं उठा सके।

बहरहाल, जनता के हित के नजरिए से देखें इस सत्र की एक उपलब्धि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रपट का पटल पर रखा जाना माना जा सकता है। इसके अलावा यह सत्र विधायकों, मंत्रियों के वेतन एवं भत्तों में 66 फीसद बढ़ोतरी होने के बाबत याद किया जाएगा। इस सत्र की एक कार्यवाही विशेष प्रस्ताव (नियम-280) को स्थगित कर उसकी जगह पहले सीबीआइ के ‘आप’ विधायकों पर कथित तौर पर चुनिंदा तरीके से निशाना बनाने के खिलाफ चर्चा के लिए भी जाना जाएगा। ऐसा आम तौर पर नहीं होता।

अखबार में छपी खबर को आधार बनाकर सदन में चर्चा हुई। इस मुद्दे पर चर्चा का विरोध करने पर भाजपा विधायकों को मार्शल से बाहर कराकर सदन से निंदा प्रस्ताव पारित किया। एक महत्त्वपूर्ण चर्चा इस बार उपराज्यपाल की कार्यकारी शक्तिों को लेकर भी हुई। हालांकि यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में अपील में हैं। न्यायिक समीक्षा आने के पहले इसपर सदन ने चर्चा की और उपराज्यपाल की ओर से किए जा रहे कई कार्यों को दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप बताया गया।

सिर्फ सत्ता पक्ष की गूंजी आवाज

इस सत्र में नियम-55 के तहत अल्पकालीन चर्चा में विपक्ष को मौका महीं मिला। दो दिनों के इस सत्र में विभिन्न मुद्दों पर सत्ता पक्ष के नौ विधायकों को नियम-55 के तहत सदन में बोलने का मौका मिला, लेकिन विपक्ष को यह मौका नहीं दिया गया। नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी की मानें तो विपक्ष ने इसकी इजाजत मांगी थी। उन्होंने कहा-सदन शुरू होने से तीन चार दिन पहले ‘बिजनेस एडवाइजरी कमेटी’ की बैठक बुलाने और उसमें सबकी बात सुनने की जो परंपरा थी उसका भी पालन नहीं हो रहा। इस सत्र में तो नेता प्रतिपक्ष तक को बोलने के लिए पांच मिनट की समय सीमा तय की गई।