दिल्ली सरकार के अधिसूचना जारी नहीं करने से नगर निगमों के काम ठप हैं। स्थायी समिति का गठन नहीं होने से वार्ड नहीं बन रहे। परिसीमन के बाद का निगमों का स्वरूप तय नहीं है। निगम पार्षदों के कोटे से विकास कार्य नहीं होने से इलाके में काम नहीं हो पा रहे हैं। तीन महीने बीतने को हैं पर दिल्ली सरकार इस दिशा में पूरी तरह आंखें मूंदे हुए है। निगमों में सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस इसे केजरीवाल की सोची समझी राजनीति बता रही है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम की मेयर प्रीति अग्रवाल और कांग्रेस के पार्षद मुकेश गोयल इसे जनता के साथ विश्वासघात बता रहे हैं। इनका कहना है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि को जब अधिकार नहीं मिलेगा तो सिवाए सड़क पर उतरने के और कोई विकल्प नहीं है। दिल्ली में इन दिनों जलजनित बीमारियां डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ ज्यादा होने के कारण रोगी निजी अस्पतालों में जाने को विवश हो रहे हैं। दवाइयों का छिड़काव भी पूरी तरह से नहीं हो पा रहा है। निगमों की महत्वपूर्ण वैधानिक समितियां नहीं बनने से कोई बड़े फैसले नहीं लिए जा सकते। वृक्षारोपण नहीं होने से पार्क खस्ताहाल हो गए हैं। जनजनित बीमारियां रुके इसके लिए मलेरिया समिति ही नहीं है। निगमों के पार्षदों का बजट का समय भी बीतता जा रहा है। जो चुनाव के बाद मात्र औपचारिकता का काम रह जाता है उसके लिए दिल्ली सरकार ने तीन महीने लगा दिए हैं।

पांच जून को नवगठित निगमों की दूसरी बैठक मे विशेष और तदर्थ समितियों के गठन के संबंध मे प्रस्ताव पारित किया जा चुका है। इन समितियों में नियुक्तियां, पदोन्नतियां, अनुशासनात्मक और संबद्ध मामले समिति, निर्माण समिति, चिकित्सा सहायता एवं जन स्वास्थय समिति, पर्यावरण प्रबंधन सेवा समिति, उद्यान समिति, विधि एंव सामान्य मामले समिति, पार्षदों के लिए आचार संहिता समिति, उच्चाधिकार प्राप्त संपत्ति-कर समिति, हिंदी समिति, खेलकूद प्रोत्साहन एंव संबद्ध मामले समिति, निगमों लेखा समिति, आश्वासन समिति विशेष समितियों में है जबकि तदर्थ समितियों में लाइसेंसिंग एवं तहबाजारी समिति, सामुदायिक सेवा समिति, अनुसूचित जाति कल्याण तथा उनके कोटे के प्रत्याशियों का कार्यान्वयन समिति, महिला कल्याण एंव बाल विकास समिति, लाभकारी परियोजना समिति, मलेरिया निरोधक उपाय समिति, शिकायत निवारण समिति, बाढ़ नियंत्रण उपाय समिति, राष्ट्रीय त्यौहार मेला एंव संबद्ध मामले समिति, गलियों आदि का नामकरण और नामकरण समिति, सहायता अनुदान समिति का गठन निगमों एकट की धारा-40 के तहत किया जाना है। गठन नहीं होने से निगमों के संबंधित विभाग पूरी तरह हाथ पर हाथ धरे हुए बैठा है। अधिकारी हाजिरी लगा रहे हैं तो कर्मचारी दिन काट रहे हैं। जब तक समितियां नहीं बनेगी दिल्ली नगर निगमों के इन सभी मूलभूत विभागों का काम शुरू नहीं होगा।

मुकेश गोयल ने कहा कि समितियों का गठन न हो पाना सत्तारूढ़ भाजपा की नाकामियों को दर्शाता है। उन्होंने मांग की कि उपराज्यपाल को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करके समितियों के शीघ्र गठन का निर्देश देना चाहिए। उन्होंने भाजपा और आम आदमी पार्टी पर दिल्लीवासियों के हितों की अनदेखी कर सिर्फ राजनीति करने का आरोप लगाया गोयल ने कहा कि अगर यही हालत रही तो कांग्रेस इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगी और सड़क पर उतरकर भाजपा और आप के खिलाफ आंदोलन करेगी। उन्होंने इसे भाजपा और आप के बीच चल रही राजनीतिक लड़ाई का खामियाजा दिल्ली की जनता के भुगतने के रूप में बताया। दक्षिणी निगमों के मध्य जोन के अध्यक्ष रहे खविंद्र सिंह कैप्टन ने इसे केजरी सरकार के एल्डरमेन को समितियों में पद देने की राजनीति बताई है। दिल्ली सरकार चाहती है कि उपराज्यपाल एल्डरमेन की नियुक्ति में हां कर दें जिससे समितियां बनने से पहले वे अपने कार्यकर्ताओं को यहां बैठाने में सफल हो जाएं। एल्डरमेन को उपाध्यक्ष और मतदान करने का अधिकार मिलता है। यह भाजपा को निगमों में कमजोर करने के रूप में भी होगा।
इस मामले में मेयर प्रीति अग्रवाल ने कहा कि वे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और शहरी विकास मंत्री सत्येंद्र जैन से मिलकर यह अनुरोध कर चुकी है कि राजनीति में दिल्ली की जनता को क्यों परेशान किया जाए। ग्रवाल ने कहा कि जिस प्रकार आप को दिल्ली की जनता से सरकार में भेजा है उसी प्रकार हमें भी निगमों में मौका दिया है। मेरा मानना है कि इन छोटी-छोटी बातों पर राजनीति छोड़कर जनता में विश्वास कायम करने की पहली जरूरत है। चुनने के बाद भी जब जनता का काम नहीं होगा तब मेरा यहां रहने का क्या औचित्य है? मुख्यमंत्री और शहरी विकास मंत्री ने जल्द होने का आश्वासन तो दिया पर अभी तक उस दिशा में कुछ सकारात्मक होते दिख नहीं रहा है।