मनोज कुमार मिश्र
केंद्र की भाजपा की अगुआई वाली सरकार ने दिल्ली नगर निगम (संशोधन), 2022 विधेयक संसद में पारित कराकर फिर से तीनों निगमों को मिलाकर एक निगम बनाने का फैसला करा लिया। इस संशोधन के कारण अप्रैल में होने वाले निगम चुनाव लंबे समय के लिए टाल गए। दिल्ली में नगर निगम 1957 में संसद ने विधेयक लाकर बनाया गया था। तब से अब तक उसमें कई संशोधन हुए, लेकिन चुनाव दूसरी बार ही टाले गए हैं। 1983 में पुराने विधान के हिसाब से चुनाव हुए थे। उसे 1990 तक विस्तार देकर भंग किया गया।
स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों के लिए संसद में हुए 73 वे और 74 वे संशोधनों के बाद नए विधान से 1997 में चुनाव हुए। उस चुनाव में भाजपा को जीत मिली। कांग्रेस के कमजोर होने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) इस बार पूरी तैयारी से निगम चुनाव लड़ने की तैयारी में थी। नए विधेयक में जो संशोधन हुए हैं उसके हिसाब से अब दिल्ली में तीन निगमों के स्थान पर एक ही निगम रहेगा लेकिन निगम की सीटें 272 से कम करके अधिकतम 250 होंगी।
यानी हर चुनाव से पहले होने वाले परिसीमन में सीटों की संख्या कम होने से उसमें काफी समय लगेगा। आबादी के हिसाब से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण होने के साथ-साथ आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी। दिल्ली में विधानसभा की 70 सीटें हैं। पहले उसमें से गोल मार्केट और सरोजनी नगर विधानसभा का इलाका नई दिल्ली नगर पालिका क्षेत्र में और दिल्ली छावनी सीट छावनी बोर्ड के अधीन होने से निगम से बाहर थी। तब हर विधानसभा के नीचे दो-दो निगम सीटें थी तो निगम सीटों की संख्या 134 थी। 2006 के परिसीमन में नगर पालिका क्षेत्र को पूरी तरह से नई दिल्ली निधान सभा के अधीन कर दिया गया। छावनी सीट वैसे ही रही। तब हर विधानसभा के नीचे औसत चार सीटें बनाई गईं तो सीटों की संख्या 272 हो गई।
नए संशोधन में निगम का कार्यकाल समाप्त होने पर केंद्र सरकार एक प्रशासक नियुक्त करेगी। इतना ही नहीं, इस संशोधन में सरकार का मतलब केंद्र सरकार है, पहले की तरह राज्य सरकार नहीं। अब नगर निगम पूरी तरह से दिल्ली सरकार से मुक्त करके केंद्र सरकार के अधीन कर दिया गया। दिल्ली की लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के हर संभव प्रयास के बाद ही दिल्ली की निगमें दिल्ली सरकार के अधीन स्वशासी बनाई गई थीं। अब निगम के कामकाज में दिल्ली सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होने वाला है। विधेयक में निगम के अधिकार बढ़ाने या उसके वित्तीय संसाधन बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। सरकार से निगमों के विवाद का कारण पैसे की देनदारी ही रहा है।
22 सीटें कम की जाएंगी
जिस तरह से संशोधित विधेयक में 22 सीटें कम करने का प्रावधान किया गया है, उससे तो तय है कि नए परिसीमन होने आदि में लंबा समय लगेगा। दिल्ली सरकार की तरह दिल्ली के नगर निगमें भी स्वशासी हैं। दिल्ली की 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को स्वशासित नगर निगम शुरू से ही खलता रहा। वे दिल्ली नगर निगम को उसी तरह दिल्ली सरकार के अधीन लाना चाहती थीं जैसे अन्य राज्यों में राज्य सरकार के अधीन वहां के निगम होते हैं। दिल्ली के 87 फीसद इलाकों में दिल्ली सरकार के समानांतर दिल्ली के नगर निगमों की सत्ता चलती है।
दिल्ली में विधानसभा बनने से पहले निगम के पास ही दिल्ली की असली सत्ता थी ,बाद में बिजली, फिर पानी, फिर फायर सर्विस, होमगार्ड, फिर सीवर, बड़ी सड़कें आदि अपने अधीन करके दिल्ली सरकार ताकतवर बनी। बावजूद इसके आज भी गृह कर, लाइसेंस, प्राथमिक स्वास्थ्य समेत कुछ बड़े अस्पताल, प्राथमिक स्कूल, पार्क, पार्किंग आदि निगमों के अधीन हैं। तीन निगमों में से दो (पूर्वी और उत्तरी) अपने खर्चे का बोझ नहीं उठा पा रहे थे। आए दिन उसका दिल्ली सरकार से टकराव होता रहता था। अब नई व्यवस्था में कब निगम चुनाव होंगे, यह तय नहीं है और न ही यह तय है कि उसके बाद निगम की हालत क्या होने वाली है।