रूबी कुमारी
दिल्ली की सर्दी इस बार कई मायनों में असामान्य रही, चाहे सात फरवरी की ओलावृष्टि हो जब दिल्ली और आस पास के क्षेत्रों की तुलना शिमला से की जाने लगी या 1 मार्च को 118 साल का सबसे ठंडा मार्च का दिन या फिर एक के बाद एक पश्चिमी विक्षोभ व बारिश का दौर या फिर घने कोहरे से मुक्ति। भारतीय मौसम विभाग (आइएमडी) के महानिदेशक डॉ केजे रमेश का कहना है कि दिल्ली सहित पूरे पश्चिमोत्तर भारत में इस बार सर्दी के मिजाज में जो बदलाव देखने को मिला वह जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले समय में मौसम के ऐसे असामान्य मिजाज से अक्सर सामना हो सकता है।
दिल्ली की सर्दी (आधिकारिक रूप से नवंबर से फरवरी तक सर्दी का मौसम माना जाता है) ने इस बार कई नए रंग दिखाए। दिल्ली सहित पूरे पश्चिमोत्तर भारत के सर्दी के मौसम पर आइएमडी के महानिदेशक डॉ केजे रमेश ने कहा कि यह जलवायु परिवर्तन का असर कहा जा सकता है। डॉ केजे रमेश ने कहा, ‘इस बार न्यूनतम तापमान नीचे से नीचे गया और पश्चिमी विक्षोभों की संख्या काफी ज्यादा रही। जलवायु परिवर्तन का सर्दी के मिजाज पर असर के मायने हैं न्यूनतम तापमान का नीचे से नीचे हो जाना और बर्फबारी ज्यादा से ज्यादा होना’। उन्होंने कहा कि न केवल भारत बल्कि अमेरिका, यूरोप, रूस सहित पूरे उत्तरी गोलार्द्ध में इस बार सर्दी अपने चरम पर महसूस की गई।’।
निजी मौसम एजंसी स्काईमेट के वरिष्ठ वैज्ञानिक महेश पलावत ने कहा, ‘यह एक असामान्य सर्दी रही। लगातार बारिश और पश्चिमी विक्षोभ का दौर बना रहा। जनवरी में सात और फरवरी में पांच पश्चिमी विझोभ देखे गए और मार्च में भी सिलसिला जारी है’। पलावत ने कहा कि सामान्यत: फरवरी में पश्चिमी विक्षोभ धीरे धीरे ऊपरी अक्षांश की तरफ जाना शुरू हो जाते हैं जिससे भारतीय क्षेत्र प्रभावित नहीं होता। लेकिन इस बार पश्चिमी विक्षोभ दक्षिण की तरफ ही रहे हैं यानि भारत के ऊपर प्रभावी हैं। पलावत ने कहा कि एक बार तो इसे पोलर वर्टेक्स से जोड़ कर देखा जा रहा था।
यह कहा जा रहा था कि जो आर्कटिक विंड (हवा) आई थी, उसके कारण भी जनवरी में पश्चिमी विक्षोभ या जितने मौसम तंत्र रहे वह दक्षिण की तरफ धकेले जाते रहे, लेकिन अब यह हवा नहीं है और अभी भी पश्चिमी विक्षोभ प्रभावी साबित हो रहे हैं और भारी बर्फबारी दे रहे हैं। स्काईमेट वैज्ञानिक ने कहा कि यह एक अपवाद है जो पिछले सालों में नहीं देखा गया। जैसे ही पश्चिमी विक्षोभ आता है तो हवा पूर्वा हो जाती है, तापमान बढ़ता है, पश्चिमी विक्षोभ के जाते ही हवा उत्तरी हो जाती है और तापमान में गिरावट देखने को मिलती है। महेश पलावत ने कहा कि कोल्ड डे यानि कंपाने वाले ठंडे दिनों का गायब रहना भी अपवाद है। उन्होंने कहा कि कोहरा न होने की वजह से यह हुआ।