जिंदगी व मौत के बीच जूझता, राजधानी दिल्ली की सड़कों की खाक छानने के बाद नवजात निराश लौट गया। एक हफ्ते के इस नवजात को एंबुलेंस में एक शहर से दूसरे शहर भटकते हुए रविवार को तीन दिन हो गए। दिल्ली के अस्पतालों में एनआइसीयू नहीं मिलने से निराश बच्चे के परिजन उसे लखनऊ लेकर भागे हैं कि क्या पता वहीं कोई चमत्कार हो जाए। बेबस मां-बाप उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहते।
बेबस उपासना पांडेय अपने एक हफ्ते की उम्र वाले बच्चे को लेकर शुक्रवार से एंबुलेंस में एक शहर से दूसरे शहर, एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल की खाक छान रही। गोरखपुर की मूल निवासी उपासना अपने भाई के साथ पहले इलाबाद के डॉक्टरों के पास बच्चे को बचाने की गुहार लगाती रही। वहां विशेषज्ञ नहीं मिले। हारकर दिल्ली आर्इं। एम्स सहित दिल्ली सरकार के अस्पतालों तक में एक से अधिक बार चक्कर लगाया। लेकिन कहीं बाल गहन चिकित्सा इकाई (एनआइसीयू) के बिस्तर खाली नहीं होने से भर्ती नहीं किया जा सका। एम्स, सफदरजंग, आरएमएल कलावती सरन जैसे अस्पतालों में बिस्तर न मिलने या विशेषज्ञ न होने पर हार कर दिल्ली सरकार के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल जीबी पंत में भी गए। लेकिन निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा।
उपासना के भाई अंचल द्विवेदी ने बताया कि कलावती शरन बाल चिकित्सालय में गए तो वहां बताया गया कि बड़े डाक्टर दो दिन की छुट्टी पर हैं। अस्पताल में इतने एनआइसीयू के विस्तर नहीं हैं। एक विस्तर पर तीन से चार बच्चों का इलाज किया जाता है। इस बच्चे को अलग एक विस्तर चाहिए जो हमारे पास नहीं है। अंचल बताते है कि दिल्ली सरकार के पंत अस्पताल में हमें डॉक्टरों ने बताया कि यहां भी केवल छह एनआइसीयू के विस्तर हैं।
उसमें भी इतनी सुविधा नहीं है कि इस बच्चे की धड़कन चेक कर सकें। इस लिए ऐसी जगह जाइए जहां इसे बेहतर सुविधा वाला एनआइसीयू विस्तर मिल सके। दिल में सुराख व सिकुड़े वाल्व के कारण वह सही से सांस तक नहीं ले पा रहा है। शनिवार पूरा दिन व रविवार दोपहर तक दिल्ली के एक से दूसरे अस्पताल भटकने के बाद वे बच्चे को लेकर लखनऊ गए हैं कि क्या पता वहीं किसी अस्पताल में जगह व इलाज मिल सके। टूटती सांसों व बढ़ते संक्रमण से जूझते इस नौनिहाल को भान भी नहीं है इसका कि वह बीमारी के साथ-साथ कितनी निरीह व पंगु व्यवस्था से भी जूझ रहा है।
