सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (10 मई) को निर्देश दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में डीजल से चलने वाली टैक्सियों का कोई नया पंजीकरण नहीं होगा। लेकिन ऑॅल इंडिया टूरिस्ट परमिट वाले कैबों को उनके परमिट के समापन तक राष्ट्रीय राजधानी में चलने देने की राहत दी गई। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की अगुआई वाले एक पीठ ने कहा- दिल्ली में नई डीजल टैक्सियों का पंजीकरण नहीं होगा। सिटी टैक्सियों के सारे पंजीकरण केवल तभी होंगे जब वे वाहन द्वैध ईंधन (सीएनजी-पेट्रोल) या विशुद्ध सीएनजी या पेट्रोल पर चलेंगे। हम यह स्पष्ट करते हैं कि नए डीजल वाहनों का सिटी टैक्सियों के तौर पर पंजीकरण नहीं हो सकता।
शीर्ष अदालत ने वर्तमान ऑल इंडिया टूरिस्ट परमिट (एआइटीपी) वाली डीजल टैक्सियों को उनके परमिट, जो पांच सालों के लिए जारी किया गया है, के समापन तक राष्ट्रीय राजधानी में चलने की इजाजत दी और कहा कि उनका कोई नवीकरण नहीं होगा। अदालत ने कहा कि नए एआइटीपी परमिट को एआइटीपी-एन के नाम से जाना जाएगा। उसके धारक एनसीआर में पाइंट टू पाइंट सेवाओं के लिए अधिकृत नहीं होंगे जबकि वर्तमान एआइटीपी को एनसीआर में पाइंट टू पाइंट सेवा के लिए ‘एआइटीपी-ओ’ परमिट के रूप में बदला जाएगा जैसा कि बीपीओ कंपिनयों में उपयोग में आने वाले परमिट वाहन हैं।
हालांकि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि डीजल कैब, जिन्हें चलने की इजाजत दी जा रही है, उन पर सक्षम अधिकारियों द्वारा प्रदत्त संरक्षा, सुरक्षा, मूल्य निर्धारण संबंधी और अन्य अनापत्तियां लागू होंगी। संरक्षा और सुरक्षा एक महत्वपूर्ण पहलू है जैसा कि आपने अवश्य ही हाल की कुछ घटनाओं में देखा होगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि एआइटीपी टैक्सी को एनसीटी के अंदर ही पाइंट टू पाइंट सेवा चलाने की इजाजत होगी।
पीठ ने अपने पिछले आदेशों में संशोधन किया। जिसमें एनसीआर में डीजल टैक्सियों के चलने पर रोक लगा दी गई थी। इस पीठ में न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति आर भानुमति भी हैं। शीर्ष अदालत का नया आदेश इस मामले में अदालत मित्र के रूप में नियुक्त वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे के पीठ से यह कहने के बाद आया कि प्रतिबंध आदेश से 64,500 टैक्सियों को सड़कों से हटना पड़ा जिससे रातोंरात संकट पैदा हो गया।
साल्वे ने सुझाव दिया कि केंद्र को ऑल इंडिया परमिट वाली टैक्सियों के विनियमन के लिए नियम बनाना चाहिए व उसे गैर डीजल कैब के वास्ते आगे का रास्ता तय करना चाहिए। केंद्र को नया पर्यटन परमिट देना चाहिए और टैक्सियों को एनसीआर के अंदर पाइंट टू पाइंट यात्रा सेवाएं देने की अनुमति देनी चाहिए। इसी बीच वर्तमान स्थिति को तबतक चलने देना चाहिए जब तक केंद्र उनके विनियमन के लिए नया नियम लेकर आता है। महान्यायवादी रंजीत कुमार ने दलील दी कि एनसीआर आधारित नियम बनाना मुश्किल होगा क्योंकि एआइटीपी नियम पूरे देश के लिए हैं।
आइटी उद्योग निकाय नेशनल एसोसिएशन सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज ने अदालत को आश्वासन दिया कि उनके सारे भावी अनुबंध सुनिश्चित करेंगे कि कैब केवल गैर डीजल चालित कैब हों। तीस अप्रैल को शीर्ष अदालत ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ओला और उबेर जैसे बड़ी कैब कंपनियों समेत डीजल टैक्सियों के लिए कम प्रदूषणकारी सीएनजी में तब्दील करने की निर्धारित समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया था। पीठ ने यह दलील ठुकरा दी थी कि इससे गरीब ड्राइवरों की आजीविका प्रभावित होगी और कहा था कि वह समय बढ़ाते नहीं रह सकती है जबकि तब्दीली के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है।
पिछले साल 16 दिसंबर को अदालत ने साल्वे की इस दलील पर गौर किया था कि सभी डीजल टैक्सियों को तर्कसंगत समय सीमा के अंदर सीएनजी ईंधन अपनाने दिया जाए। लेकिन वह एक मार्च, 2016 के बाद का समय न हो। शीर्ष अदालत के जजों ने कहा था-हम निर्देश देते हैं कि दिल्ली के एनसीटी में ओला और उबेर जैसी कैब कंपनियों समेत सिटी परमिट के तहत चलने वाली सभी टैक्सियां सीएनजी की ओर बढ़ेंगी लेकिन एक मार्च से बाद की तारीख न हो। बाद में शीर्ष अदालत ने समय सीमा 30 अप्रैल तक बढ़ा दी थी।