कभी पानी में नाव कभी नाव में पानी! कभी मनमानी के लिए मशहूर कई निजी स्कूलों का कोरोना के बाद जो हाल हुआ है उसपर यह बात सटीक है। दिल्ली वालों के पास दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों से आ रहे फोन इन दिनों चर्चा का विषय बने हैं। कोई सालाना शुल्क में 50 फीसद छूट दे रहा है तो कोई दाखिला शुल्क फ्री की बात कर रहा है। पहले इन्हीं स्कूलों के प्रबंधकों की नाक इतनी लंबी थी कि किसी की नहीं सुनी जाती थी।
लगातार फीस बढ़ोतरी, स्कूल विकास शुल्क, किताब-कापी, ड्रेस के तामझाम अखबारों की सुर्खियां बना करती थी। लेकिन कोरोना काल ने यह बता दिया कि निजी स्कूल के तानाशाही रवैए से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा दिल्ली में सरकारी स्कूल की बेहतरी की खबरों ने भी दिल्ली के गली-मुहल्ले वाले निजी स्कूलों के भाव गिरा दिए हैं। बेचारे अब वे बच्चे ढूंढ रहे हैं जो केजरीवाल के स्कूलों में पढ़ रहे हैं। कहना न होगा कि अब अभिभावकों की बारी है!
चैन की चिंता
पुलिस मुखिया जबसे विभाग की जिम्मेदारी संभालने बैठे हैं एक से एक फरमान पुलिस अधिकारी अब चैन से नहीं बैठ पाएंगे। कारण पुलिस कप्तान ने साफ कर दिया है कि जिनके इलाके में आपराधिक वारदातें बढ़ी उनकी शामत तय है। यह शामत किसी भी रुप में हो सकती है। उनका स्थानांतरण हो सकता है। उन्हें ऐसे असंवेदनश्ीाल यूनिट में भेजा जा सकता है जहां कोई जाने से कतराते हैं। बेदिल की एक आला अधिकारी से बातें हो रही थी तो उन्होंने कहा कि अब चैन खत्म हो गया है। आयुक्त के फरमान से हमारे काम में तेजी आ गई है।
जुर्माने पर जोर
कोरोना काल की पाबंदियों में छूट मिलने और लोगों का जनजीवन सामान्य होने के बाद औद्योगिक महानगर में इन दिनों चौराहों पर सुबह- शाम जाम की समस्या आम होती जा रही है। यह स्थिति तब है जब सभी बड़े या व्यस्त चौराहों पर दो से तीन यातायात पुलिसकर्मी दिखते हैं। हालांकि इनका काम जाम खुलवाना नहीं बल्कि चालान काटना है। ये हाथों में चालान काटने वाला ऐप युक्त मोबाइल लेकर तैनात रहते हैं।
यहां जाम का बड़ा कारण आवारा पशु हंै। इनके झुंड लगाकर खड़े होने से यातायात अवरूद्ध होता है और जाम लगता है। यह सब होने पर भी वहां तैनात यातायात पुलिस के सिपाही या सब इंस्पेक्टर पशुओं के झुंड को हटाने के बजाए वाहनों के मोबाइल ऐप से लालबत्ती में पार करने के चालान करने में मशरूफ रहते हैं।
हाथ आई मायूसी
दिल्ली नगर निगम के चुनाव टलने के बाद कई पार्षदों में मायूसी छाई हुई है। इन पार्षदों को कई तरह का मलाल है। एक तो लंबे समय से जिस पार्टी में रहे उसे सबसे पहले बदला, फिर रोटेशन में सीट बदल गई और इंतहा तो तब हो गई जब काफी मान मनौव्वल के बाद पड़ोसी सीट पर काम शुरू किया तो अब चुनाव ही टल गया। बेदिल को रास्ते में एक वरिष्ठ पार्षद मिल गए, बात शुरू करते ही बेचारे अपना दुखड़ा सुनाने लगे। उन्होंने कहा कि अब क्या बताऊं, हाथ आई सीट जा रही है। लगता है अब घर बैठना पड़ेगा। केंद्र ने निगम का एकीकरण क्या किया हम सब का समीकरण ही बदल दिया।
–बेदिल