जनसत्ता संवाददाता
राजधानी के बीमार अस्पतालों की सेहत सुधारने की मांग पर सुनवाई न होने से नाराज रेजीडेंट डाक्टर सोमवार से बेमियादी हड़ताल पर चले गए। केंद्र और दिल्ली सरकार के अलावा नगर निगम के अस्पतालों के करीब 15 हजार डॉक्टर हड़ताल पर हैं। इससे राजधानी की स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह चरमरा गई हैं। दो मरीजों की मौत होने की खबर है।
हालांकि डाक्टरों ने इसे बीमारी की वजह से हुई मौत बताया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने डाक्टरों की मांगों को जायज ठहराया है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने लोकनायक अस्पताल का दौरा कर हालात का जायजा लिया। दिल्ली सचिवालय में सरकार और हड़ताली डॉक्टरों की बैठक हुई। सरकार ने हड़ताली डॉक्टरों की सभी 19 मांगें मान ली हैं। सरकार ने कहा कि अगर डॉक्टर काम पर नहीं लौटे उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
केंद्र सरकार के सफदरजंग, राममनोहर लोहिया, लेडी हार्डिंग, सुचेता कृपलानी अस्पताल, कलावती सरन बाल चिकित्सालय और दिल्ली सरकार के जीबी पंत, जीटीबी, लाल बहादुर शास्त्री, संजय गांधी, डॉक्टर आंबेडकर, डॉक्टर हेडगेवार, सत्यवादी हरिश्चंद्र सहित करीब 42 अस्पतालों के सीनियर और जूनियर रेजीडेंट डॉक्टर हड़ताल में शामिल हैं।
जीवनरक्षक दवाओं, जांच और इलाज के लिए जरूरी तमाम उपकरणों व काटन पट्टी का अभाव झेल रहे इन अस्पतालों में बिस्तरों, डाक्टरों, नर्सों और कर्मचारियों की संख्या भी जरूरत से काफी कम है। अस्पतालों में सुरक्षा इंतजाम, पीने के पानी और खाने के समुचित व्यवस्था, समय पर वेतन, डॉक्टरों और कर्मचारियों संख्या जैसी तमाम लंबित मांगों को लेकर डॉक्टर समय-समय पर आंदोलन करते रहे हैं। इन्हीं मांगों पर डॉक्टरों ने 27 फरवरी को एक दिन की सांकेतिक हड़ताल की थी। समाधान के आश्वासन के बावजूद अब तक सुनवाई नहीं हुई। इसलिए फेडरेशन आफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के बैनर तले करीब 15 हजार डॉक्टर सोमवार को बेमियादी हड़ताल पर चले गए। डॉक्टरों के मुताबिक सरकार उनकी मांगों को पूरा करने में नाकाम रही है। इस संबंध में वे पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिख चुके हैं।
दिल्ली सरकार ने दिल्ली सचिवालय में करीब दो घंटे तक चली बैठक में हड़ताली डॉक्टरों की सभी 19 मांगें स्वीकार कर लीं। बैठक में करीब 25 रेजीडेंट डॉक्टर शरीक हुए। हालांकि, प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने हड़ताल नहीं तोड़ी और दावा किया कि आखिरी फैसला तभी किया जाएगा जब सरकार बैठक का विवरण सार्वजनिक करेगी। बैठक में शरीक हुए एक हड़ताली डॉक्टर ने बताया, ‘हमे बैठक का विवरण अभी नहीं मिला है। इसकी समीक्षा करने के बाद ही कोई आखिरी फैसला किया जाएगा।’
हालांकि एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हड़ताल उचित नहीं है जब हम सभी मांगों पर राजी हो गए हैं। यदि वे (डॉक्टर) कल सुबह से काम पर नहीं लौटे तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर मोहित गर्ग ने कहा,‘हम एक एक बिस्तर पर दो-दो,तीन-तीन मरीजों का इलाज करते हैं। काफी मेहनत के बावजूद हमें समय पर वेतन या दूसरी जरूरी चीजें नहीं मिल पातीं। सुरक्षा राम भरोसे है।’ उन्होंने कहा कि सरकार ने हमें कई बार आश्वासन दिया। लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं की। इसलिए हम मजबूर होकर हड़ताल पर गए हैं।
हड़ताल की वजह से दूरदराज से आए मरीजों को बिना इलाज के ही जाना पड़ा। गुरु तेग बहादुर अस्पताल में लोनी, बागपत, सीलमपुर जैसे दूर-दराज के इलाकों से मरीजों ने ओपीडी नहीं चलने पर हंगामा किया। सफदरजंग अस्पताल में हड़ताल होने से एम्स में मरीजों की भीड़ बढ़ गई। मेरठ से आए एक मरीज नरेश ने कहा कि अगर पता होता कि हड़ताल है तो वह किराए की गाड़ी कर के यहां तक नहीं आते। यहां आकर पता चला कि हड़ताल है। हड़ताल कब तक चलेगी यह भी नहीं मालूम।
हड़ताल की वजह से अस्पतालों की इमरजेंसी में केवल प्राथमिक उपचार ही मिला। ओपीडी, आपरेशन थिएटर, जांच और दूसरी सेवाएं पूरी तरह ठप रहीं। एलएनजेपी में आपरेशन के लिए आई एक मरीज ने बताया कि उनको आज सुबह से खाली पेट रहना था कि आपरेशन होगा लेकिन काफी इंतजार के बाद मालूम हुआ कि आज कुछ भी नहीं होगा। एलएनजेपी सहित दो अस्पतलों में एक-एक मरीज की मौत की भी खबर है। हड़ताल की वजह से मरीजों को निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ी।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे पर ट्वीट कर कहा, ‘हड़ताली डॉक्टरों की ज्यादातर मांगें सही हैं। मैंने स्वास्थ्य विभाग को इन्हें लागू करने का निर्देश दिया है। स्वास्थ्य विभाग को इसे पहले ही सुलझा लेना चाहिए था।’
वहीं, कांग्रेस ने हड़ताली डॉक्टरों का समर्थन करते हुए कहा कि दिल्ली सकरार को उनकी मांगों का फौरन हल करना चाहिए क्योंकि मॉनसून आने से रोगियों की संख्या बढ़ेगी।