कभी आरएसएस और बीजेपी के कद्दावर नेता रहे यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार चुना है। राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार पर फैसला करने के लिए आयोजित बैठक में विपक्षी नेताओं ने उनके नाम पर सहमति जताई। सिन्हा का नाम पवार, गोपालकृष्ण गांधी और फारूख अब्दुल्ला के राष्ट्रपति पद के चुनाव की दौड़ से बाहर होने के बाद सामने आया।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने संयुक्त विपक्ष की तरफ से कहा कि मोदी सरकार ने राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। इस वजह से संयुक्त विपक्ष यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बना रहा है।
कांग्रेस, टीएमसी और सपा समेत 13 विपक्षी दलों ने विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पावर फुल मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमति जताई। संयुक्त बयान में कहा गया कि यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति चुनाव के लिए सर्वसम्मति से विपक्षी दलों का उम्मीदवार चुना गया है। इस दौरान कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, जयराम रमेश, तृणमूल के अभिषेक बनर्जी, डीएमके के तिरुचि शिवा, माकपा के सीताराम येचुरी और भाकपा के डी राजा मौजूद थे।
बैठक में राकांपा, भाकपा, माकपा, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एआईएमआईएम, राजद और एआईयूडीएफ भी शामिल रहीं। टीआरएस, बीजेडी, आप, शिरोमण अकाली दल और वाईएसआरसीपी समेत पांच क्षेत्रीय दल इस बैठक से दूर रहे। इन पार्टियों को किसी भी धड़े (विपक्ष और बीजेपी) में नहीं माना जा रहा। ये पार्टियां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा बुलाई गई 15 जून की बैठक से भी दूर रही थीं।
IAS से कद्दावर राजनेता बनने का सफर
यशवंत सिन्हा तृणमूल के नेता थे। अब वो वहां से इस्तीफा दे चुके हैं। वो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कद्दावर मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने विदेश और वित्त जैसे अहम मंत्रालय संभाले थे। यशवंत सिन्हा आईएएस रह चुके हैं। मूल रूप से बिहार के रहने वाले सिन्हा ने 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा को ज्वाईन किया था। उन्होंने 1984 में नौकरी से इस्तीफा दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए।
1989 में जब जनता दल का गठन हुआ तो उन्हें इसका महासचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने नवंबर 1990 से जून 1991 तक चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में भी वित्त मंत्री के रूप में काम किया। यशवंत सिन्हा जून 1996 में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। मार्च 1998 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वायपेजी ने उन्हें वित्त मंत्री बनाया। लोकसभा में वो बिहार के हजारीबाग से चुने जाते रहे।
बीजेपी से उनका मोहभंग तब हुआ जब नरेंद्र मोदी युग की शुरुआत में उन्हें हाशिए पर डाल दिय़ा गया। 70 पार की उम्र का हवाला दे उन्हें लोकसभा का टिकट नहीं दिया गया। उनकी परंपरागत सीट हजारीबाग से बेटे जयंत सिन्हा को उतारा गया। मोदी की पहली सरकार में जयंत को केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया। लेकिन इस बार वो ड्राप कर दिए गए। काफी समय तक मोदी सरकार की मुखर आलोचना के बाद वो पश्चिम बंगाल असेंबली चुनाव से पहले ममता बनर्जी के साथ हो लिए थे। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव का प्रत्याशी बने तो तृणमूल से त्यागपत्र दे दिया। अब वो बड़े मिशन के लिए तैयार हैं।