सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेना के जवान केवल तभी विकलांग पेंशन के हकदार होंगे, जब विकलांगता सर्विस के कारण हुई हो या फिर नौकरी की वजह से समस्या और ज्यादा बढ़ गई हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक विकलांगता 20 फीसदी से अधिक न हो सैन्य कर्मी विकलांगता पेंशन के हकदार नहीं होंगे।

जस्टिस अभय एस ओका और एमएम सुंदरेश की बेंच आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र की उस अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सेना के जवानों को विकलांगता पेंशन दी गई थी। कोर्ट ने एएसजी केएम नटराज की उस दलील से सहमति जताई जिसमें कहा गया था कि जवान को लगी चोटों का संबंध उसकी नौकरी से होना चाहिए। बेंच ने जवान को लगी चोट पर कहा कि ये हादसा उसके साथ अवकाश के दौरान हुआ था, लिहाजा उसके दावे को खारिज कर दिया गया।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जवान छुट्टी स्टेशन पर पहुंचने के दो दिन बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जवान को लगी चोटों का नौकरी से कोई संबंध नहीं है। ट्रिब्यूनल ने इस पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है, इसलिए प्रतिवादी विकलांगता पेंशन का हकदार नहीं है।

जवान 1965 को सेना में भरती किया गया था। नवंबर 1999 को उसे सालाना अवकाश मिला। अवकाश के दौरान वो हादसे का शिकार बना। मेडिकल बोर्ड ने उसे 80 फीसदी तक विकलांग माना था। उसे 28 सितंबर 2000 से सेवा से बाहर कर दिया गया था। नौकरी से बाहर जाने के बाद उसने आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल से विकलांगता पेंशन देने की गुहार की।

ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि यदि किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की अधिकृत छुट्टी की अवधि के दौरान चोट लगती है और उसका कार्य सैन्य सेवा के साथ असंगत नहीं था तो वो विकलांगता पेंशन लेने का हकदार है।