पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुनाथ झा ने दक्षिण दिल्ली की सात सरकारी आवासीय कॉलोनियों को गिराए जाने पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया में 1.86 लाख पेड़ नष्ट हो जाएंगे। जिस पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने केंद्र और इस मामले से जुड़े दूसरे पक्षों की राय मांगी है। एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार के अध्यक्षता वाले पीठ ने इस मुद्दे पर पर्यावरण मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और सरकारी निर्माण कंपनी नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनबीसीसी) को नोटिस जारी किया है। राजद के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुनाथ झा के 12 सितंबर को लिखे गए पत्र का संज्ञान लेने के बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने इस मामले की जांच के लिए वकील समीर सोढ़ी को न्यायमित्र के रूप में नियुक्त किया गया है।

पीठ ने कहा कि यह भारत सरकार के पूर्व भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री की ओर से दायर आवेदन है। हम इसे एक ऐसा उपयुक्त मामला मानते हैं, जहां पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और एनबीसीसी को नोटिस जारी किया जाना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई दो नवंबर को होगी। झा ने अपने पत्र में यह आरोप लगाया है कि संपदा निदेशालय सरोजिनीनगर, नेताजीनगर, नौरोजीनगर, कस्तूरबानगर, त्यागराजनगर, श्रीनिवासपुरी और मोहम्मदपुर में सात सरकारी आवासीय कॉलोनियों को इस माह से गिरा रहा है। इन स्थानों पर टाइप एक-चार के फ्लैट हैं।

पत्र में कहा गया है कि ये कॉलोनियां नई दिल्ली नगर परिषद इलाके के लुटियंस जोन की हरित पट्टी के तहत आती हैं, जिसे स्वच्छ एवं हरित शहर की सूची में पहला स्थान दिया गया है और भारत की स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए भी चुना गया है। इन सात कालोनियों में भरपूर हरियाली है और यहां पुराने आयुर्वेदिक पेड़ और कीमती पौधे हैं। इन कालोनियों के पुनर्विकास के लिए ऐसे 1,86,378 पेड़ों और पौधों को काटना होगा, जो कि भारत में ग्लोबल वार्मिंग की एक बड़ी वजह होगा। गिराए गए पेड़ों की संख्या के दोगुने पेड़ लगाने की एनबीसीसी की दलील पूरी तरह झूठी है क्योंकि पेड़ों को विकसित होने में 40 से 50 साल का समय लगेगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एनबीसीसी के माध्यम से सरोजिनीनगर, नेताजीनगर, नौरोजीनगर के और केंद्रीय लोकनिर्माण विभाग द्वारा कस्तूरबानगर, त्यागराजनगर, श्रीनिवासपुरी और मोहम्मदपुर की कुल सात आवासीय कालोनियों के पुनर्विकास के काम को मंजूरी दी थी। इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 32,835 करोड़ रुपए है, जिसमें 30 साल तक रख रखाव एवं संचालन लागत भी शामिल है। यह परियोजना चरणबद्ध तरीके से पांच साल में पूरी हो जाएगी।