दिल्ली की नौकरशाही पर कंट्रोल लेफ्टिनेंट गवर्नर का हो या फिर केजरीवाल सरकार का, इस बात का फैसला संवैधानिक बेंच के हवाले किया गया है। सीजेआई एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने शुक्रवार को कहा कि आर्टिकल 239AA पर विस्तार से चर्चा की जरूरत है। जो मामले संवैधानिक बेंच ने सुलझाए थे, हम उन पर नहीं जाना चाहते लेकिन नौकरशाही के कंट्रोल से जुड़े मामले को फिर से संवैधानिक बेंच के हवाले किया जा रहा है।
हालांकि, बीते सप्ताह ही सुप्रीम कोर्ट ने इशारा दिया था कि ये मामला बड़ी बेंच को सौंपा जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कोर्ट की राय से सहमति जताते हुए कहा था कि मामला पेंचीदा है। लिहाजा बड़ी बेंच के पास ही इसे विचार के लिए भेजना सही कदम है। दिल्ली सरकार का आरोप है कि सारे अफसर उनके बजाए एलजी के इशारे पर काम कर रहे हैं।
दिल्ली के एलजी और अरविंद केजरीवाल की सरकार के बीच लंबे अरसे से राजधानी पर कंट्रोल को लेकर तनातनी चलती रहती है। अरविंद केजरीवाल सरकार का यह आरोप है कि एलजी एक चुनी हुई सरकार के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करते हैं। ये दिल्ली की जनता के साथ धोखा है। 2019 में संवैधानिक बेंच ने दिल्ली बनाम उपराज्यपाल विवाद में सिर्फ संविधान से जुड़े प्रावधानों की व्याख्या की थी। बेंच ने कहा था कि कानून व्यवस्था, पुलिस और जमीन को छोड़कर उपराज्यपाल स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते। फैसले में कहा गया था कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करना होगा। किसी मसले पर सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद हो जाए तो उपराज्यपाल उसे राष्ट्रपति को रेफर करेंगे।
हालांकि, नौकरशाही को लेकर उस दौरान भी फैसला नहीं हो सका था। 2019 में इस मुद्दे पर दो जजों की राय अलग अलग थी। जस्टिस एके सीकरी ने तब कहा कि सेक्रेटरी, विभाग प्रमुख और उससे ऊपर के अधिकारियों के तबादले-नियुक्ति का अधिकार केंद्र के पास रहेगा। उससे नीचे के अधिकारियों के बारे में दिल्ली को अधिकार होगा। लेकिन इसके लिए बोर्ड गठित होगा। जस्टिस अशोक भूषण इस फैसले से असहमत थे। उसके बाद से ही इस मसले पर विवाद की सुनवाई हो रही है।
संवैधानिक बेंच के फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने कहा था कि अभी भी कई मसलों पर गतिरोध कायम है। लेकिन आप के तमाम विरोध के बावजूद अप्रैल 2021 में मोदी सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपाल की ताकत बढ़ा दी थी। केंद्र ने राष्ट्रपति के राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 को मंजूरी दिए जाने बाद इसे लेकर अधिसूचना जारी की थी। इसके मुताबिक दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 अप्रैल से प्रभाव में आ गया था। संशोधन के बाद अब सरकार को उपराज्यपाल के पास विधायी प्रस्ताव कम से कम 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव कम से कम 7 दिन पहले भेजने होंगे।
केंद्र के इस फैसले के बाद दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल हो गया है। यानी बगैर एलजी के मंजूरी के कार्यकारी कोई कदम नहीं उठाया जा सकता। इन तमाम मसलों पर दिल्ली सरकार के साथ केंद्र का गतिरोध कायम ही है कि इसी बीच तीनों निगमों को एक करके केंद्र ने केजरीवाल सरकार पर और ज्यादा अंकुश लगा दिया। आप इस फैसले से बुरी तरह बौखला गई है। उसका कहना है कि निगम चुनावों में हार को देखते हुए केंद्र इन्हें टालने की जुगत भिड़ा रहा है।