एक तरफ नगर निगम की सीटों के परिसीमन के बाद सीटों के आरक्षण के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर हो गई। कई और याचिका दायर किए जाने की तैयारी है। दूसरी तरफ दिल्ली के तीनों प्रमुख दलों चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कांग्रेस में तो पिछले कई दिनों से आवेदन लिए जा रहे हैं। बुधवार को आवेदन करने की आखिरी तारीख होने पर प्रदेश दफ्तर में दावेदारों का भारी मजमा लगा हुई था। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता कि यह पार्टी पिछले दो विधान सभा चुनावों में हासिए पर पहुंच गई है। भाजपा में हर स्तर पर उम्मीदवार तय करने के लिए समिति बनाने का काम पूरा कर लिया है। दिल्ली सरकार में काबिज आम आदमी पार्टी(आप) पहली बार निगम चुनाव में हाथ अजमाएगी। पिछले साल निगमों के 13 सीटों के उप चुनाव में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसलिए वह पूरी तैयारी से चुनाव मैदान में उतरने जा रही है। अप्रैल में तीनों निगमों के चुनाव के लिए अधिसूचना मार्च में जारी हो सकते हैं। लेकिन अगर अदालत में मामला जाने पर अदालत के फैसले के मुताबिक ही अधिसूचना जारी होगी।
तीनों नगर निगमों में आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाने के प्रावधान है और आबादी के हिसाब से उत्तरी नगर निगम में 20, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में 15 और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 11 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण किए गए हैं। इन सीटों में भी आधी सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है। दिल्ली की 70 में से दो विधानसभा-नई दिल्ली और दिल्ली छावनी का इलाका निगमों के अधीन नहीं है बाकी 68 सीटों के नीचे 2007 से चार-चार सीटें बनाई गई थी। आबादी का औसत बढ़ने के बाद एस बार का परिसीमन में पहले यह विवाद हुआ कि इस बार एक विधान सभा के नीचे सात तो तीन के नीचे छह-छह और 21 के नीचे तीन-तीन सीटें और बाकी 31 के नीचे चार-चार सीटें बनी। इस पर तो कम विवाद हुआ, असली विवाद तो सीटों के आरक्षण पर हो रहा है। विधान के मुताबिक आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होती है।संविधान के 74 वें संविधान संशोधन के तहत हर पांच साल के बाद सामान्य, महिला, अनुसूचित जाति व अनुसूचित महिला हेतु नियमित रोटेशन किए जाने की व्यवस्था की गई थी। इसके पीछे की मंशा यह थी कि हर क्षेत्र में बारी-बारी से सामान्य, महिलाए,अनुसूचित जाति व अनुसूचित महिला को मौका मिलता रहे । इसके लिए एक स्थाई व्यवस्था बनाने का हलफनामा भी दिल्ली चुनाव आयोग दिल्ली हाई कोर्ट में 2012 में दे चुका था।
बावजूद इसके सुल्तान पुर माजरा, गोकुलपुर, त्रिलोकपुरी, मंगोलपुरी के चारों वार्ड आरक्षित कर दिए गए हैं। करोलबाग,तुगलकाबाद के तीनों आरक्षित कर दिए गए हैं। दूसरी तरफ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधान सभा सीट बवाना के छह में से एक भी सीट आरक्षित नहीं है और दूसरी आरक्षित विधान सभा सीट पटेल नगर में एक सीट आरक्षित है। निगमों का मौजूदा स्वरूप बनने यानि संविधान में संशोधन के बाद 1997 में भाजपा जीती, और 2002 में कांग्रेस को निगम में सफलता मिली। तब निगम के वार्ड 13 ही ही थे। उसे 2006 के परिसीमन के बाद शीला दीक्षित की सरकार ने बढ़ाकर 272 किया। 2012 के चुनाव के पहले निगम का विभाजन करके तीन निगम बनाए गए लेकिन सीटें 272 ही रही।निगम के विधान के मुताबिक हर नई जनगणना यानि दस साल पर निगम की साटों का परिसीमन किया जाना अनिवार्य है। उसी के आधार पर निगम का नया चुनाव होता है। 2015 के विधान सभा चुनाव में आप को मिले प्रचंड बहुमत के बाद पिछले साल नगर निगमों के 13 सीटों के उप चुनाव में आप को वैसा सफलता नहीं मिली जैसी विधान सभा चुनाव में मिली थी। उसके बाद दिल्ली की पहला बड़ा चुनाव इस साल अप्रैल में निगमों का ही होना है। माना जा रहा है कि पंजाब चुनाव के परिणामों का असर इस चुनाव पर होने वाले हैं।
आरक्षण पर बवाल के कई कारण हैं। एक तो ज्यादा आरक्षित वार्डों नेताओं को इस बार निगम में हिस्सेदारी नहीं मिलने की बेचैनी है दूसरे माना जाता है कि दिल्ली में राजनीति करने का पहला पायदान निगम के चुनाव हैं। निगम पार्षद बन कर आसानी से नेता अपनी पार्टी में विधान सभा चुनाव की दावेदारी करते हैं। एक तरफ कई लोग आरक्षण को अदालत में चुनौती दे रहे हैं वहां दिल्ली की सभी प्रमुख पार्टियां निगम चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं। दस साल से निगम की सत्ता से बाहर और लगातार दो विधान सभा चुनाव में हाशिए पर पहुंच गई कांग्रेस के नेता पिछले साल निगम उप चुनाव में पार्टी की जीत से उत्साहित टिकट पाने के लिए बड़ी संख्या में प्रदेश कांग्रेस दफ्तर में आवेदन करते देखे गए। आवेदकों की भीड़ के चलते आवेदन करने की अंतिम तारीख बुधवार 15 फरवरी से बढ़ाकर 19 फरवरी रविवार तक कर दी गई है। भाजपा और आप में भी उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया शुरू हुई है।

