दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय सेना के जज एडवोकेट जनरल (जेएजी) विभाग में कार्यरत पुरुषों की तर्ज पर विवाहित महिला विधि स्नातकों की भर्ती किए जाने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ के पीठ ने रक्षा मंत्रालय और सेना में नियुक्ति के महानिदेशक को नोटिस जारी कर 10 अगस्त तक जवाब मांगा है। हाई कोर्ट ने इस मामले पर गौर किए जाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि सरकार याचिका में उठाए गए मुद्दों के संदर्भ अपना रुख स्पष्ट करे। याचिका में दावा किया गया है कि इस समय, भारतीय सेना का जज एडवोकेट जनरल विभाग भारतीय सेना में सेवा के लिए पुरुषों (विवाहित-अविवाहित) और महिलाओं (केवल अविवाहित) की भर्ती करता है।
कुश कालरा द्वारा दायर इस याचिका में दावा किया गया, ‘इस संस्थागत भेदभाव के चलते, विधि स्नातक विवाहित महिला उम्मीदवारों को भारतीय सेना के जेएजी विभाग में सेवाएं देने के उनके अधिकार से वंचित रखा जा रहा है।’ याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि लैंगिक आधार पर यह भेदभाव कानून के समक्ष समानता के मौलिक अधिकार का, लैंगिक आधार पर भेदभाव न किए जाने का, सार्वजनिक रोजगार में समान अवसरों का, किसी भी पेशे या व्यवसाय को अपनाने के मौलिक अधिकार का और महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। वकील ज्योतिका कालरा के माध्यम से दायर की गई याचिका में यह भी कहा गया कि जेएजी विभाग में विवाहित महिला उम्मीदवारों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने वाली योग्यता संबंधी शर्तों को असंवैधानिक करार दिया जाना चाहिए।
याचिका में यह भी कहा गया कि महिलाओं के साथ भेदभाव से दुखी याचिकाकर्ता ने 19 सितंबर 2015 को सेना को एक पत्र लिखकर उससे जेएजी विभाग में विवाहित महिला उम्मीदवारों की भर्ती करने का अनुरोध किया था मगर उन्हें इसका कोई जवाब नहीं मिला। इसमें यह भी आरोप लगाया गया कि जेएजी की विज्ञापित रिक्तियों में ‘महिलाओं के लिए सीटों का असमान वितरण-आवंटन’ था। इसमें पुरुषों के लिए 10 और महिलाओं के लिए महज चार सीटें थीं।