आम आदमी का नाम होने से कोई ‘आम’ नहीं बन जाता। मौजूदा समय में महंगाई आम लोगों की जेब काटे ले रही है, लेकिन इसका दंश आम आदमी से नेताजी बने लोगों को क्यों होने लगा। उन्होंने इसकी जड़ी-बूड़ी जन के सबसे बड़े भवन में जो तैयार कर ली है। तो महंगाई भला क्यों डरे नेताजी से! बीते दिनों दिल्ली के सबसे बड़े सदन में बीच बहस में एक जनप्रतिनिधि की व्यथा सुनकर प्रेस दीर्घा में यह बात बलवती होती दिखी।

दरअसल, चर्चा ‘जनप्रतिनिधियों के वेतन बढ़ोतरी बिल’ पर हो रही थी। जनप्रतिनिधि ने सदन को बताया कि कई नेताओं ने अपनी शादी इसलिए टाल रखी थी कि यह बिल पास हो जाए। वे भी महंगाई से त्रस्त हैं। जो वेतन है वह बताने लायक नहीं है। लिहाजा वेतन बढ़ोतरी वाली सिफारिश के लागू होने की बाट जोह रहे थे। लेकिन लंबा इंतजार भी काम नहीं आया।

बिल, सिफारिश के सात साल बाद आया! और थक हार कर उनके कई साथियों को शादी कर लेनी पड़ी! बहरहाल बिल के पास हो जाने से उन्हें थोड़ी हिम्मत महंगाई के खिलाफ जरूर मिली है, क्योकि मंहगाई डायन किसी से नहीं डरती! किसी का लिहाज नहीं करती! किसी ने चुस्की ली, कहा- महंगाई को क्या पता जनप्रतिनिधि जी भी त्रस्त थे, वो भी आम आदमी पार्टी के जनप्रतिनिधि!

खबरों से दोस्ती

दिल्ली पुलिस की खबरनवीसों से दोस्ती तो आम है लेकिन अब वे खबरों से भी दोस्ती करने लगे हैं। कैसी खबर देकर खबरों में रहना है उनको आ गया है। पिछले कई दिनों से पुलिस वाले संगठित अपराध के बाबत कड़ी कार्रवाई का दावा करते दिख रहे हैं। इसमें संगठित अपराध के नाम पर जुएबाजी, आबकारी, आर्म्स एक्ट और अन्य के तहत गिरफ्तारी और कार्रवाई का दावा किया गया है। बेदिल ने जब एक बड़े पुलिस अधिकारी से इस बाबत पूछा कि क्या पहले इस तरह के अभियान नहीं चलाए जाते थे? तो उनका उत्तर सुन हंसी न रोक सका। उनका जवाब था कि आप साथी खबरनवीसों से पूछे कि उन्हें सुबह उठते ही कैसी खबर चाहिए। यानी साहब भी समझ गए कि संगठित अपराध के नाम पर खबरों में रहने की तरकीब क्या है।

दक्षिण पर दरियादिली

निगमों का एकीकरण हुए कई दिन हो गए लेकिन निगम के अधिकारी और पूर्व पदाधिकारी अभी भी क्षेत्रवाद में बंटे दिख रहे हैं। बंटवारे से पहले पूर्वी दिल्ली में कार्यरत एक अधिकारी ने बताया कि चूंकि एकीकृत निगम के एक आला अधिकारी दक्षिण की भी बड़ी कुर्सी संभाल चुके हैं और अब एकीकृत निगम के भी बड़े अफसर बना दिए गए हैं। अलबत्ता लोग बाते कर रहे हैं कि वे दक्षिणी निगम को तरजीह देने से बाज नहीं आ रहे। बेदिल ने जब पूछा कि यह कैसे? तो अधिकारी का जवाब था कि एकीकरण के बाद भी इस समय दक्षिणी निगम को छोड़कर अन्य दोनों निगमों उत्तरी और पूर्वी के कर्मचारियों को लंबे समय से वेतन नहीं मिल रहा। इसके बावजूद बड़े अधिकारी का ध्यान इस ओर कम है।

तबादले की वजह

वैसे तो दिल्ली में गंदगी मिलना आम है। इलाकों में भी कचरे का निस्तारण न होने से परेशानी होती है। यह गंदगी जिंदगी में कैसे-कैसे परेशानियां खड़ी कर सकती है इसकी नजीर एक थाने में तैनात महिला पुलिसकर्मी की फरियाद से पता चली। दरअसल, महिला कर्मी की एक ऐसे थाने में तैनाती है जहां आसपास गंदगी का अंबार है। शहर को अपराध की गंदगी से मुक्त करने वाली पुलिस के थाने के बाहर लगी गंदगी समझ से परे हैं।

सुबह से लेकर शाम तक आसपास से उठती दुर्गंध से महिला कर्मी इस कदर परेशान हो गईं कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से तबादले को लेकर अर्जी लगाना शुरू कर दी है। हालांकि उनकी मंशा पूरी होती दिख नहीं रही है। बेदिल को उसी थाने से जुड़े एक कर्मी ने बताया कि गंदगी से परेशान तभी तक होते हैं जब तक आदत नहीं होती, बाद में तो यही गंदगी जिंदगी का हिस्सा बन जाती है और पता ही नहीं चलता कि गंदगी थाने के पास है या थाना गंदगी में।

बिन मेहनत नतीजा

औद्योगिक महानगर में यातायात प्रबंधन को लेकर संबंधित पुलिस ने एक ऐसी ‘कार्रवाई’ की है जिसे देखकर ही विश्वास किया जा सकता है। दरअसल, चौराहों पर पेड़ों के नीचे आराम फरमाते पुलिसकर्मी सिर्फ चालान काटने में मगन दिखती है, वह न तो यातायात व्यवस्था संभालना चाहते हैं और न ही जाम हटवाना। ऐेसे में अब यातायात व्यवस्था की जिम्मेदारी किसे दी जाए।

बेदिल को पता चला कि चौराहों पर लगने वाले जाम की बढ़ती शिकायत के बाद यातायात पुलिस के आला अधिकारियों ने वहां तैनात होने वाले पुलिस कांस्टेबल और सब इंस्पेक्टरों की इसके बाबत जिम्मेदारी तय कर दी है। अब इनसे तो मेहनत होने से रही तो यह काम चौराहों पर अप्रशिक्षित निजी सुरक्षाकर्मियों पर डाल दिया गया है। वे लोगों को डंडे से लाइन पर लाते देखे जा सकते हैं, हालांकि इनको इसकी अनुमति किसने दी यह अंदर की बात है। लेकिन इससे पुलिस वालों की मेहनत भी कम हो गई और शहर की यातायात व्यवस्था भी सुधरी दिख रही है।

बरस पड़ा विभाग

दिल्ली में बादलों की बेरूखी से परेशान दिल्ली वालों को राहत नहीं मिल रही है, लेकिन मौसम विभाग ने बारिश का पूर्वानुमान जारी रखा और बीते एक हफ्ते में विभाग ने कभी नहीं कहा कि बारिश नहीं आएगी। पिछले एक सप्ताह से विभाग को लेकर शहर में मजाक चल रहा है, लोग पसीना पोंछ रहे हैं और मौसम विभाग की भविष्यवाणी पर चुटकी ले रहे हैं।

यह मजाक शहर से चलकर मौसम विभाग के वाट्सऐप ग्रुप तक आ गया। कुछ खबरनवीसों ने इस बाबत मौसम विभाग के वाट्सऐप ग्रुप पर भी मजाक शेयर किया तो मौसम विभाग भी बादलों की तरह बुरा मान गया। जैसे ही मालूम चला कि खबरनवीस दिल्ली से है तो फरमान जारी कर दिया कि दिल्ली के खबरनवीसों को इस ग्रुप से अलग कर दिया जाएगा। बेदिल को किसी ने बताया कि बादल से ज्यादा तो विभाग बरस पड़ा।
-बेदिल