करीब साढ़े चार साल बाद निर्भया गैंगरेप कांड में आज (5 मई को) सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए चारों दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखी है। कोर्ट ने इस कांड को सदमे की सुनामी बताते हुए कहा कि इस गैंगरेप कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। कोर्ट ने टिप्पणी की कि मामले में अमीकस क्यूरी द्वारा दी गई दलीलें पर्याप्त नहीं थीं इसलिए दोषियों को कुछ भी रियायत नहीं दी जा सकती है। जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस अशोक भूषण की खंडपीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए जस्टिस भानुमति ने स्वामी विवेकानंद को कोट करते हुए लिखा, “किसी देश की तरक्की को नापने का सबसे अच्छा पैमाना उस देश की महिलाओं के साथ होने वाला व्यवहार है।” जस्टिस भानुमति ने लिखा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध न केवल महिलाओं की इज्जत और मान-सम्मान को ठेस पहुंचाती है बल्कि वह समाज की शांति व्यवस्था और विकास को भी प्रभावित करता है। उन्होंने टिप्पणी की कि समाज में महिलाओं की प्रतिष्ठा सुनिश्चित कराने के लिए बच्चों को एक खास प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए।

जस्टिस भानुमति ने आगे लिखा, “मैं उम्मीद करती हूं कि देश की राजधानी में घटी ये घटना और पीड़ित युवती की मौत समाज के लिए महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध, महिलाओं की इज्जत सुनिश्चित कराने और लैंगिक समानता की दिशा में आंखें खोलने का काम करेगी।” उन्होंने लिखा कि समाज में लैंगिक समानता बरकरार रखने, उसके लिए संघर्ष करने और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी समाज के हरेक नागरिक की है।

निर्भया केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पूरी कॉपी

जस्टिस भानुमति ने यह भी लिखा कि समाज में जेंडर जस्टिस की लड़ाई तभी जीती जा सकती है जब लोगों को संवेदनशील बनाया जाएगा, विधायी प्रावधानों का तर्कसंगत और सही तरीके से पालन होगा और महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए आगे बढ़कर हर स्तर पर कदम उठाए जाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने समाज के माइंड सेट में बदलाव लाने की बात भी कही।

क्या है मामला: 16 दिसंबर, 2012 की रात 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा के साथ दक्षिणी दिल्ली में एक चलती बस में जघन्य तरीके से सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके गुप्तांगों से छेड़छाड़ की गई थी। बाद में उसे उसके एक दोस्त के साथ चलती बस से बाहर फेंक दिया गया था। उसी साल 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान पीड़ित युवती की मौत हो गयी थी। इस मामले में कुल 6 लोग आरोपी थे। उनमें से एक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी जबकि एक आरोपी के किशोर होने की वजह से उसे जुवेनाइल कोर्ट ने तीन साल के लिए सुधार गृह भेज दिया था। अब वो रिहा हो चुका है। बाकी चार दोषियों मुकेश, पवन, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह की फांसी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी है। साकेत कोर्ट के फैसले के बाद 13 मार्च, 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। उसके खिलाफ इन चारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इन चारों दोषियों के पास अब राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजने का विकल्प है। वहां से याचिका ठुकराए जाने के बाद ही फांसी की तारीख पर फैसला हो सकेगा।