कहने के लिए दिल्ली और आसपास के इलाकों में होने वाले हजारों निर्माण के लिए बालू हरियाणा, उत्तर प्रदेश लाई जाती है, लेकिन पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से दिल्ली में अवैध खनन आज भी जारी है। अलबत्ता हरियाणा के सूरजकुंड से लगे भाटी माइंस के इलाके में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से वन्यजीव अभयारण्य बनने के बाद से पत्थरों की खुदाई करीब-करीब बंद हो गई है। सुप्रीम कोर्ट 1996 में एमसी मेहता बनाम केंद्र सरकार मामले में न केवल अभयारण्य बनाने का आदेश दिया था, बल्कि दक्षिणी दिल्ली के उन तमाम गांवों की जमीन को इसके लिए अधिसूचित कर दिया था जहां से भारी मात्रा में अवैध खनन हो रहा था। बड़े पैमाने पर पूरे इलाके में पेड़ लगाए गए। अब पेड़ बड़े हो गए हैं तो सही मायने में पूरा इलाका अभयारण्य दिख रहा है। फिर भी हरियाणा और दिल्ली की सीमा होने का लाभ उठाकर खनन माफिया अवैध खनन कर रहे हैं। भाटी माइंस में खनन पर रोक लगने से पहले तो दिल्ली में यह सबसे बड़ा कमाई का जरिया था। सालों खुदाई करके खनन माफिया ने अरावली पर्वत शृंख्रला के एक हिस्से को खोखला ही कर दिया था।
1996 में भाटी माइंस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली राज्य खनन विकास निगम (डीएमआईडीसी) को दिल्ली राज्य औद्योगिक विकास निगम (डीएसआईडीसी) के साथ जोड़ दिया गया। तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट के एक और आदेश से यमुना के बालू के खनन पर रोक लगने तक मामूली शुल्क देकर किसानों को अपने खेतों से बालू हटाने की इजाजत दी जाती थी। वजीराबाद और ओखला में बैरियर लगाकर डीएसएमडीसी के लोग रायल्टी वसूलते थे। लेकिन पुलिस, माफिया और प्रशासन के लोगों में साठगांठ होने से नाममात्र का शुल्क ही सरकार को मिल पाता था। सुप्रीम कोर्ट से यमुना से बालू निकालने पर रोक लगने के बाद तो डीएमआईडीसी को खत्म कर दिया गया। अब बालू खनन पर रोक की जिम्मेदारी स्थानीय एसडीएम और डीसी(उपायुक्त) को सौंप दी गई है। दिल्ली सरकार के एक अधिकारी बताते हैं कि कायदे से बरसात के बाद अपने खेत में पड़ी बालू को हटाने की प्रक्रिया पहले जैसी ही है लेकिन अब विशेष परिस्थिति में बालू हटाने की अनुमति एसडीएम और डीसी देते हैं लेकिन वास्तव में गिनती के लोग ही विधिवत अनुमति मांगते हैं।
कायदे से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद न तो भाटी माइंस इलाके में खुदाई होनी चाहिए और न ही दिल्ली में वजीराबाद से लेकर बदरपुर तक 22 किलोमीटर बहने वाली यमुना की तलहटी से बालू निकाली जानी चाहिए। अगर खेत को बाढ़ से आई बालू से नुकसान हो रहा है तो उसके समाधान के लिए ठोस इंतजाम होने चाहिए। कहने के लिए यमुना से बालू निकालने पर तो रोक लगी है लेकिन वास्तव में हर रोज बालू निकालना जारी है। बरसात के बाद जब बालू बड़े पैमाने पर यमुना के खादर में फैल जाता है तब तो लाखों-करोड़ों की लूट होने लगती है। यह सभी को पता है कि यमुना से अवैध बालू निकालने के लिए पूरा संगठित गिरोह काम करता है और ऐसा सरकारी संरक्षण के बिना संभव नहीं है।

