कोरोना को लेकर जब देशव्यापी लॉकडाउन घोषित किया गया तो हर्ष मंदर जैसे कई सोशल वर्कर लोगों की सहूलियत के लिए बिना खुद की परवाह किए मैदान में कूद पड़े। लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ी। हर्ष मंदर लोगों को खाना बांटते रहे, हर संभव मदद करते हुए वह गरीबों के साथ खड़ रहे। एक साक्षात्कार में उन्होंने अपने उस अनुभव को साझा किया जब उन्होंने मौत को करीब से देखा। दरअसल खुद कोविड पॉजिटिव होने के बाद वह दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती थे।

मंदर ने कहा, ‘जब मैं गलियों में लोगों को खाना खिला रहा था तो मुझे लग रहा था कि जल्द ही कोविड का शिकार हो जाऊंगा। मैं पूरी सावधानी बरत रहा था। मेरे पिता की उम्र 95 साल है इसलिए मैंने उनके पास जाना भी छोड़ दिया। मैं रोज शाम को पिता से वीडियो कॉल के जरिए बात करता था। मेरी सास भी मेरे ही साथ रहती हैं और उनकी उम्र 85 साल है।’

हर्ष मंदर ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें कोरोना नहीं हुआ लेकिन अक्टूबर के महीने में वह संक्रमित हो गए। उन्होंने कहा, ‘मैंने सास की देखभाल के लिए एक ट्रेनी नर्स को हायर किया। लेकिन लोगों ने कहा कि घर पर रहना ठीक नहीं है इसलिए अस्पताल में भर्ती हो जाओ। मैं एक बड़े सरकारी अस्पताल के जनरल अस्पताल में भर्ती हो गया। वहां मैंने अपने आप को नरक के बहुत करीब महसूस किया। यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है।’

अनुभव साझा करते हुए मंदर ने कहा, ‘ज्यादातर वॉर्ड बॉय नौसिखिए थे। वे सब किसी होटल में काम करते थे और नौकरी चले जाने के बाद वहां चले आए थे। एक वॉर्ड में करीब 50 मरीज थे। किसी ने मेरे कपड़े नहीं बदलवाए। घर पर सब लोग ऑक्सीजन चेक कर लेते थे लेकिन यहां कोई बात करने को तैयार नहीं था। शोर-शराबा बहुत था। कोई आराम नहीं कर सकता था। नर्स और वॉर्ड बॉय मरीजों पर चिल्लाया करते थे। मॉनिटर 24 घंटे बीप करते रहते थे। मेरे बगल वाला मॉनिटर काम नहीं करता था लेकिन बीप करता रहता था। कोई टॉइलट भी नहीं जाने देता था।आप उनके सामने गिड़गिड़ाते रहिए लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था।’

उन्होंने कहा, ‘दो दिन बाद मैंने नहाने की रिक्वेस्ट की। बड़ी मुश्किल से जाने दिया गया। इसके बाद मुझे 10 दिन का कुछ याद नहीं है। मैं बेहोश हो गया। मेरे परिवार ने बताया कि अचानक मेरा फोन बंद हो गया। उसने मुझे बताया कि मैं डिप्रेशन में चला गया था। किसी तरह पत्नी मुझे डिसचार्ज करवाकर घर लाई। मैं घर आया तो खा पी नहीं सकता था बस लगातार सिरदर्द होता रहता था। मैं पत्नी और बेटी का नाम तक भूल गया था। मेरी एमआरआई हुई तो डॉक्टरों ने बताया कि सिर में गहरी चोट लगी है औऱ अंदरूनी ब्लीडिंग भी हुई है। फिर मैं तीसरे अस्पताल में गया। वहां धीरे-धीरे ठीक होने लगा और फिर मेरी याददाश्त किसी तरह से वापस आई।’