कृषि कानूनों के मसले पर केंद्र के नेशनल डेमोक्रेटिक रिलायंस (एनडीए) से शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अलग होने के बाद सत्तारूढ़ भाजपा से मिले पदों को छोड़ने का दबाव दिल्ली की भाजपा शासित नगर निगमों में शामिल उनके पार्षदों पर बेअसर है। बता दें तीनों नगर निगमों में शिरोमणि अकाली दल (बादल) के पांच पार्षद हैं। इनमें से कम से कम दो ने बगावती तेवर अख्तियार कर लिया है। वे अपने आलाकमान के दिशानिर्देश नहीं मानने की घोषणा कभी भी कर सकते हैं। वे निगम की पार्षदी से इस्तीफा देने के पक्ष में नहीं है।

सूत्रों की माने तो उनके आलाकमान का भी सुझाव उन पर बेअसर है। इसकी भनक आलाकमान को भी है। यही वजह है कि शिरोमणि अकाली दल (बादल) का प्रदेश नेतृत्व भी अपनी लाज बचाने के लिए निगम पार्षदों के सत्तारुढ़ भाजपा से इस्तीफे का मुद्दा उन्हीं पार्षदों पर ही छोड़ दिया है। सूत्रों के मुताबिक दोनों निगम पार्षद फिलहाल ‘अज्ञातवास’ में हंै। इसके लिए कोरोना संक्रमण से बचाओ का तर्क गढ़ा जा रहा है। इस बारे में शिरोमणि अकाली दल (बादल) के दिल्ली इकाई के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने कहा कि इस्तीफे का फैसला उन्होंने पार्षदों पर ही छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि पार्टी अपना स्टैंड पहले ही साफ कर चुकी है। पार्टी अब भाजपा की सहयोगी नहीं रही। हम किसी भी गठबंधन का हिस्सा नही हैं।

बता दें कि भाजपा और अकाली ने गठबंधन के साथ 2017 में निगम चुनाव लड़ा था। इसमें तीनों निगम में पांच पार्षद अकाली कोटे से भाजपा के चुनाव चिह्न पर जीतकर आए थे। शिरोमणि अकाली दल (बादल) के एनडीए से अलग होने के बाद अब दिल्ली नगर निगम से इस्तीफे का नैतिक दबाव बन रहा है।

उत्तरी निगम में जीटीबी नगर से पार्षद के राजा इकबाल सिंह, राजेंद्र नगर से पार्षद परमजीत सिंह राणा, दक्षिणी निगम में कालकाजी से पार्षद मनप्रीत कौर कालका, पूर्वी दिल्ली में गुरजीत कौर व दक्षिणी निगम में अमरजीत सिंह पप्पू पार्षद हैं। भाजपा और शिरोमणि अकाली दल (बादल) के बीच गठबंधन खत्म होने का असर दिल्ली की सिख सियासत और खासकर दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के आगामी चुनाव की पंथक पार्टियों पर भी दिखने लगा है। दिल्ली कमेटी में पूर्व अध्यक्ष परमिंदर सिंह सरना और शिअद (दिल्ली) के महासचिव हरविंदर सिंह सरना ने इसे बादल खेमे की गुटबाजी करार देते हुए दावा किया है कि दिल्ली वालों को गुमराह किया जा रहा है।