दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति योगेश त्यागी ने यहां दाखिला लेने वाले छात्रों के आवास की समस्या खत्म करने के लिए दिल्ली की सीमा से सटे राज्यों से सहयोग मांगा है। त्यागी ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर इन राज्यों में डीयू के लिए छात्रावास की सुविधा मुहैया कराने की अपील की है। गौरतलब है कि देश भर के युवा डीयू में दाखिले की चाहत रखते हैं। इसके 150 से ज्यादा कॉलेजों, विभागों और संकायों में देश के कोने-कोने से युवा दाखिला लेने आते हैं। विश्वविद्यालय में हर साल दाखिले के लिए पांच लाख आवेदन आते हैं। इनमें से एक लाख युवाओं को डीयू में दाखिला मिलता है। लेकिन जो छात्र दाखिला पा जाते हैं वे महंगे और असुरक्षित आवास की समस्या से भी जूझते हैं।
त्यागी ने खट्टर को लिखे पत्र में कहा है कि डीयू में देश भर से जितने आवेदन आते हैं उनमें एक तिहाई हरियाणा के छात्र होते हैं। संस्थान में छात्रावासों की उल्लेखनीय कमी का जिक्र करते हुए त्यागी ने लिखा है कि विश्वविद्यालय के पास इसके छात्रों की तुलना में पर्याप्त छात्रावास नहीं हैं। और दिल्ली में निजी आवास बहुत ही महंगे होते हैं जो छात्रों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा करते हैं। और इसका सबसे बुरा पक्ष यह है कि समाज के कमजोर तबके के लोग देश के इस अहम संस्थान में प्रवेश से हतोत्साहित होते हैं।
त्यागी ने पत्र में लिखा है कि देश का अहम केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के नाते हम अपने विद्यार्थियों के लिए छात्रावास की जगहों के लिए विकल्प तलाश रहे हैं। और इसके लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि वे डीयू के अनुसूचित जाति/जनजाति और पिछड़ी जातियों के अलावा विशेष शारीरिक चुनौती झेलने वाले और पूर्वोत्तर के छात्रों के लिए छात्रावास मुहैया करवाने में मदद करें। डीयू चाहता है कि हरियाणा सरकार सोनीपत या दिल्ली से सटी वैसी जगहों पर छात्रावास मुहैया कराए जहां मेट्रो ट्रेन की सुविधा आ चुकी है या आने वाली है। डीयू ने कहा है कि हरियाणा सरकार की जमीन और उसकी मदद से बने छात्रावासों में हरियाणा के विद्यार्थियों को प्राथमिकता दी जाएगी। हॉस्टल के प्रबंधन के लिए राज्य सरकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के बीच करार किया जा सकता है। कुलपति त्यागी का कहना है कि इस तरह की पहल से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को एक नया आयाम मिल सकता है।
इसके पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में हॉस्टलों की समस्या को लेकर पिंजड़ा तोड़ अभियान भी चल चुका है। विश्वविद्यालय परिसर या इसके बाहर के हॉस्टलों में रहने वाली छात्राओं के मत्थे गैरजरूरी पाबंदियां भी मढ़ दी जाती हैं। डीयू की छात्राओं का आरोप है कि हिफाजत और सुरक्षा के नाम पर उन्हें गैरजरूरी पाबंदियों का सामना करना पड़ता है। पिंजड़ा तोड़ मुहिम में भागीदारी कर रहीं विदिता प्रियदर्शिनी का कहना था कि कई हॉस्टलों में नियम हैं कि लड़कियों को सात बजे तक हॉस्टल आ जाना है। अगर आपको देर से आना है तो कई तरह की इजाजत लेनी होती है। पार्ट टाइम नौकरी करने वालीं या ट्यूशन पढ़ाने वालीं लड़कियों को इससे खासी दिक्कत होती है। सबसे ज्यादा मुश्किल उन लड़कियों को होती है जो निजी हॉस्टलों में रहती हैं। निजी जगहों पर लड़कों को कम किराए में मिल जाती है। लेकिन लड़कियों से सुरक्षा के नाम पर दुगुना किराया वसूला जाता है।
उसके बाद हजार तरह की बंदिशें, जैसे कि कितने बजे आना है, इससे क्यों बात की, ऐसे कपड़े क्यों पहने। इसके साथ ही सबसे अहम बात यह है कि हर छोटी शिकायत के लिए आपको पुलिस के पास जाना होता है। निजी हॉस्टलों में तो शाम के बाद लड़कियों के लिए अघोषित कर्फ्यू जैसा माहौल रहता है। इन दिनों जेएनयू में भी छात्रावासों की कमी को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहा है और छात्र विश्वविद्यालर परिसर में टेंटों में रहकर छात्रावास मुहैया करवाने की मांग कर रहे हैं।

