घरेलू हिंसाओं को रोकने के लिए सत्र अदालत ने एक अहम फैसला लिया है। इस फैसले में अदालत की ओर से कहा गया है कि घरेलू हिंसा में पति और उसके रिश्तेदारों को भगोड़ा घोषित करना और उनकी सम्पत्ति जब्त करना गैरकानूनी है। घरेलू हिंसा के मामले पर अदालत ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि घरेलू हिंसा के मामले पारिवारिक विवाद के होते हैं। इन मामलों को गंभीर अपराध की प्रकृति में नहीं रखा जाता। इसलिए घरेलू हिंसा के मामलों में संपत्ति कुर्की और भगोड़ा घोषित करने जैसी कारवाई के लिए कोई स्थान नहीं है। दिल्ली के कड़कड़डूमा स्थित सत्र न्यायाधीश की अदालत ने निचली अदालतों द्वारा कानूनी प्रक्रिया को नजरअंदाज करके लिए जा रहे फैसलों को गंभीरता से लिया है। साथ ही सत्र न्यायाधीश की अदालत ने आदेश में कहा है कि घरेलू विवाद के किसी भी मामले में किसी भी लेवल पर समझौते की गुंजाइश होती है।
हिन्दुस्तान के मुताबिक घरेलू हिंसा के मामलों में दर्ज होने वाले मुकदमों को अर्द्ध आपराधिक मुकदमों की श्रेणी में रखा जाता है, जिससे कि ससुराल पक्ष पर नियंत्रण के लिए कुछ विशेष आधिकार न्यायिक आधिकारियों के पास होते हैं, बावजूद इसके न्यायिक अधिकारी घरेलू हिंसा के अपराधों को गंभीर अपराधों की श्रेणी में नहीं रख सकते। सत्र अदालत ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को इसकी प्रति भेजी है। साथ ही कहा है कि अगर संबंधित अदालतें इस विशेष कानून की जानकारी नहीं रखती हैं तो उन्हें इसको पढ़ना चाहिए। साथ ही अदालत ने कहा है कि पति अथवा अन्य पक्षकार संबंधित अदालत के आदेश का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कराया जा सकता है। गुजारा भत्ता नहीं देने पर वसूली का अधिकार न्यायिक अधिकारियों के पास सुरक्षित है।
अदालत ने यह फैसला घरेलू हिंसा के एक मामले में भगोड़ा घोषित किए गए युवक की याचिक पर दिया था। सत्र अदालत ने कहा था कि भगोड़ा घोषित करने की प्रक्रिया गंभीर अपराधियों के खिलाफ होती है न कि घरेलू हिंसा के मामले में। वहीं पीड़िता के वकील का कहना था कि आरोपी पीड़िता को गुजारा भत्ते के लिए 7 लाख रुपए नहीं दे रहा है।