दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि बाल अधिकार से कोई भी समझौता नहीं हो सकता भले ही किशोर किसी जघन्य अपराध में ही लिप्त क्यों न हों। उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले से निपटने के सत्र अदालत के तरीके पर अफसोस जताते हुए यह टिप्पणी की। मामले में एक किशोर को नौ साल से अधिक समय ‘जेल में रखा गया था।’ उच्च न्यायालय ने कहा कि किशोरों से जुड़े कानून को लेकर निचली अदालत के न्यायाधीशों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है और सत्र अदालतों ने मामले से निपटते समय किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम के तहत नाबालिगों को मिले महत्वपूर्ण अधिकारियों पर ‘कोई ध्यान नहीं दिया।’

न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति पी एस तेजी की पीठ ने नाबालिग लड़के को बरी करते हुए किशोर न्याय पर विशेष पाठ्यक्रम तैयार करने एवं इसके लिए सामग्री का संकलन करने के लिये उच्च न्यायालय रजिस्ट्री को इस आदेश की प्रति दिल्ली न्यायिक अकादमी के निदेशक (अकादमिक) को भेजने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा, ‘पाठ्यक्रम का डिजाइन हर जिला न्यायाधीश के पास भेजना होगा जो संभव होने पर तेजी लाने के लिए और न्यायाधीशों का समय बचाने के लिए जिला अदालत परिसरों में प्रशिक्षण का आयोजन एवं कार्यान्वयन करेंगे। प्रशिक्षण के कार्यान्वयन का समय आगे पीछे किया जा सकता है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कार्यक्रम को तेजी से अपनाया जाए और न्यायिक सेवा के हर सदस्य उसे अपनाए।’ पीठ ने कहा कि नाबालिग को 13 जनवरी, 2007 को गिरफ्तार किया गया था और वह तब से जेल में बंद है। उसे नौ साल से अधिक समय तक जेल में रखा गया जो किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के तहत स्वीकृत अधिकतम सजा से कहीं ज्यादा है।