एशिया की सबसे बड़ी फल-सब्जी मंडी आजादपुर के व्यापारियों की पहल दो साल से कम समय में ही एक सामाजिक अभियान जैसी बनती जा रही है। व्यापारी राजकुमार भाटिया बताते हैं कि हमारी दिनचर्या हर रोज अमूमन अंधेरे में ही चौथे पहर से शुरू होती है। कुछ व्यापारी तो तभी दिन का खाना लेकर आते हैं और ज्यादातर का खाना दिन चढ़ते घरों से आता है। इस मंडी में हर रोज करीब एक लाख लोगों का आना-जाना लगा रहता है। खाने-पीने की स्थाई और अस्थाई व्यवस्था होने के बावजूद मंडी में कूड़ा बीनने वाले, बचे हुए फल-सब्जी इकट्ठे करके अपना पेट भरने वालों का एक बड़ा वर्ग वहां हर रोज दिखता था जिनके लिए पेट भरने का साधन नहीं है। कुछ लोगों ने पहले अपने खाने में से कुछ हिस्सा ऐसे लोगों को देना शुरू किया। रोटी बैंक की शुरुआत 2015 के जून में पहले दिन सात पैकेट रोटी से हुई। अलमुनियम फॉइल में हर सहयोगी ने तीन-तीन रोटी, अचार या सूखी सब्जी लाकर इसकी शुरुआत की। महज छह सौ दिन में करीब बीस हजार से ज्यादा रोटी के पैकेट जरूरतमंदों को दिए जा चुके हैं।
दिल्ली और देश में करीब तीस शाखाएं रोटी बैंक की काम कर रही हैं। दिल्ली के सिविल लाइंस के शाह आॅडिटोरियम में एक समारोह आयोजित करके मां अन्नपूर्णा का स्तृति वंदन कथा वाचक भाई अजय जी ने किया। रोटी बैंक के संचालक टीम के सदस्य कामेश्वर गुंबर ने मंच का संचालन किया और संस्था के बारे में बताया। इसमें दिल्ली की अनेक संस्थाओं ने शामिल होकर संकल्प किया कि भूख के खिलाफ संघर्ष जारी रखेंगे। भाटिया ने बताया कि कूड़ा बीनने वाले बच्चों, कुपोषित महिलाएं और निराश्रित बुजुर्गों को सबसे पहले रोटियां दी जाती हैं। अब कई सामाजिक संगठन खास करके शालीमार बाग का मॉडर्न स्कूल और आरडब्लूए इसमें सहयोग कर रहे हैं। संस्था ने अभी तक न तो सरकार से और नहीं किसी संस्था से आर्थिक अनुदान लिया है। इतना ही नहीं, दिल्ली और देश के विभिन्न इलाकों में शुरू हो रही रोटी बैंक की शाखाओं से भी इसका आग्रह किया जा रहा है। बैंक में केवल ताजा रोटी का सहयोग लेते हैं। बासी या बची हुई रोटी नहीं लेते हैं। आजादपुर मंडी में जाड़े के दिनों में लोहे के डिब्बे में रोटी इकट्ठी की जाती है ताकि गरम रहे और गर्मी में दूसरे डिब्बों में ताकि वह जल्द खराब न हो जाए। एक तय समय तक रोटी इकट्ठा करके उसे जरूरतमंदों में बांटा जाता है। जैसे-जैसे रोटी के पैकेट बढ़ने लगे शुरुआत करने वालों के हौसले भी बढ़ने लगे फिर तो रोटी बैंक का वेबसाइट बन गया, वह फेसबुक पर आ गया। दिल्ली के दूसरे इलाकों के कई उत्साही लोग सक्रिय हो गए और रोटी बैंक का विस्तार होने लगा। दिल्ली के विभिन्न इलाकों के अलावा पानीपत, यमुनानगर, ग्वालियर, नोएडा में भी रोटी बैंक की शाखाएं शुरू हो गर्इं। राज कुमार भाटिया बताते हैं कि रोटी बैंक के प्रचार-प्रसार के लिए न तो अतिरिक्त धन लगाया गया न ही प्रयास किया गया फिर भी मीडिया का समय-समय पर सहयोग मिला और एफएम चैनलों पर इसे प्रसारित करने से इसकी प्रसिद्धी बढ़ी और लोग जुड़ते गए। बिना सरकारी सहायता के यह बड़ा अभियान बन रहा है। पहले तो इस अभियान में व्यापारी पुरुष शामिल थे। अब बड़ी संख्या में सीधे महिलाएं इससे जुड़ गई हैं। बैंक के संचालकों का मानना है कि आने वाले दिनों में यह अभियान आंदोलन बनेगा।

