सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रधान न्यायाधीश के अलावा दूसरे नेताओं के चित्रों के प्रकाशन पर पाबंदी लगाने वाले सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय पर पुनर्विचार का अनुरोध कर रही राज्य सरकारों के साथ केंद्र ने भी सुर मिला लिया है।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति पीसी घोष का पीठ केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और असम की ऐसी ही याचिकाओं के साथ 12 जनवरी को सुनवाई के लिए सहमत है। ये राज्य चाहते हैं कि उन्हें अपने विज्ञापनों मे मुख्यमंत्रियों की तस्वीरों के इस्तेमाल की अनुमति दी जाए।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, अटार्नी जनरल का कहना है कि 13 मई के न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार के लिए केंद्र सरकार की ओर से भी याचिका दायर की गई है और इस पर भी सुनवाई की जानी चाहिए। हमने मामले पर विचार किया है और इस पर अन्य याचिकाओं के साथ 12 जनवरी, 2016 को सुनवाई का आदेश देते हैं। इन मामलों की अलग-अलग सुनवाई करने से कोई लाभ नहीं होगा।

अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने न्यायालय को सूचित किया कि केंद्र ने 13 मई के फैसले पर पूरी तरह पुनर्विचार का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की है। उन्होंने इस मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। अटार्नी जनरल ने कहा कि नागरिकों को सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है और ऐसी स्थिति में पूरे फैसले पर फिर से गौर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विज्ञापनों और होर्डिंग्स पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होना चाहिए क्योंकि सरकार की नीतियों के बारे में जनता तक संदेश पहुंचाने का यह एक माध्यम है।

गैर सरकारी संगठन कामन काज का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कुछ राज्य सरकारें शीर्ष अदालत के आदेशों का उल्लंघन कर रही हैं। इसी संगठन की जनहित याचिका पर न्यायालय ने फैसला सुनाया था और अब राज्य सरकारों ने इस पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है।

सुनवाई स्थगित करने के अनुरोध का विरोध करते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि केंद्र सरकार ने न्यायालय के फैसले के छह महीने बाद पुनर्विचार याचिका दायर की है और इसमें किसी भी प्रकार का विलंब एक तरह से न्यायालय के आदेश के मकसद को ही विफल कर देगा। भूषण ने कहा कि सरकारी विज्ञापनों को नियंत्रित करने संबंधी दिशा-निर्देशों पर अमल की प्रक्रिया की निगरानी के लिए शीर्ष अदालत ने तीन सदस्यीय लोक प्रहरी नियुक्त करने का निर्देश दिया था। लेकिन सरकार ने अभी तक इसका गठन नहीं किया है।

शीर्ष अदालत ने हाल ही में केंद्र सरकार से जानना चाहा था कि क्या विभिन्न सरकारों और प्राधिकारियों द्वारा जारी विज्ञापनों को नियंत्रित करने के लिए तीन सदस्यीय लोक प्रहरी का गठन किया गया है। न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस की अर्जी पर नोटिस जारी किया था। इस अर्जी में आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक सरकार के खिलाफ सार्वजनिक विज्ञापनों के मामले में शीर्ष अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करने के मामले में अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है। शीर्ष अदालत ने 13 मई को सरकारी विज्ञापनों के मामले में अनेक निर्देश जारी किए थे।

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