कोरोनाकाल में भी राशन की दुकानों पर लंबी-लंबी कतार लगी थी। इन कतारों को खत्म करने के लिए पहली बार दिल्ली वालों को घर-घर राशन पहुंचाने की सेवा का तोहफा मिलने जा रहा था। लेकिन यह तोहफा दो बिल्लियों केंद्र और राज्य सरकार की लड़ाई में बंदर यानी जनता को फायदा नहीं पहुंचा सका। बेदिल ने कहीं सुना कि कुछ योजनाएं जो केंद्र चाहती है वह दिल्ली में लागू नहीं होती और कुछ योजनाएं जो राज्य सरकार चाहती है उन्हें केंद्र सरकार दिल्ली में लागू होने से रोक देती है।
दोनों पार्टियों के झगड़े में दिल्ली एक बड़ा राजनीतिक अखाड़ा बन गया है। खैर इस वाली दो बिल्ली की लड़ाई में बंदर को फायदा नहीं मिल रहा, बल्कि नुकसान हो रहा है। अब चुनावी माहौल में सरकारी योजनाओं पर यह पेच आने वाले दिनों में तकरार को और कितना बढ़ाएगा, यह देखना लाजमी है। इसमें नुकसान दिल्ली सरकार का होगा, या दिल्ली वालों का। यह देखना बाकी है।
पुराना सौ दिन
कोरोना से बड़ा संकट काल इन दिनों कांगे्रस में है। हालत यह है कि विधानसभा में पार्टी का एक भी चेहरा नहीं है और जो कुछ चेहरे निगमों में हैं उन चेहरों को बड़ा चेहरा बनाने की कोई कोशिश नहीं हो रही है। इस गतिरोध के बाद अब दिल्ली के पुराने सधे हुए नेताओं की वापसी शुरू हो गई है। क्या करें! अब बाजार में नया वाला कुछ आ भी नहीं रहा न, और जो हैं वो भी काफी सुस्त नजर आ रहे हैं। इसलिए पार्टी आलाकमान ऐसे सक्रिय नेताओं को मैदान में ला रही है जो 15 साल के शासन में बड़े चेहरों के तौर पर जाने जाते रहे हैं। ऐसा करके पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस के सक्रिय नेताओं की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने की भी कोशिश की है।
रौ में अध्यक्ष जी
दिल्ली में पार्टी की कुर्सी संभालते हुए जैसे ही एक साल का वक्त पूरा हुआ अध्यक्ष जी पूरे रौ में नजर आने लगे हैं। हो भी क्यों नहीं, उनके कुर्सी संभालने के बाद पार्टी ने एक सीट पर जीत जो हासिल कर ली है। पर यह बात पार्टी के कुछ नेताओं को हजम नहीं हो रही है। यही कारण है कि उनके पदभार संभालते ही प्रदेश कार्यालय से कुछ नेताओं ने दूरियां बना ली थीं, जो कि अभी तक बनी हुई है। अब दूरियां तो बना लीं, मगर एक सीट पर जीत के बाद उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि अब दोबारा नजदीकियां कैसे बढ़ाई जाएं। वहीं, अध्यक्ष जिस प्रकार से रौ में दिख रहे हैं मानों उन्होंने पार्टी में जान फूंक दी हो। पार्टी कार्याकर्ताओं को भी उनसे बेहतरी की उम्मीद है।
बेदिल ने सुना कि भले ही पार्टी ने एक सीट पर जीत दर्ज की हो, पर बीते दिनों से पार्टी कार्यायल में चहल-पहल बढ़ गई है। नेताओं और कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि आगामी चुनावों में पार्टी और अध्यक्ष उन पर भी भरोसा जता सकते हैं। वहीं, अध्यक्ष जी इस फेरे में हैं कि एक सीट ही सही पर आलाकमान को एक सकारात्मक संदेश तो जरूर चला गया है कि पार्टी ने एक सीट जीत ली है।
होली के बहाने
वैसे तो दिवाली के मौके पर घरों की सफाई कर कूड़ा करकट बाहर किया जाता है लेकिन नोएडा में तो लोग होली के बहाने ही अपने घरों की सफाई में जुट गए हैं। चौराहों पर लगने वाली होलिका में लोगों ने घरों के टूटे दरवाजे, खिड़की, कूड़ा, गन्ने के अवशेष काफी लापरवाही से फेंक दिए हैं। लोग होली के बहाने अपने घरों का कूड़ा भी जला देना चाहते हैं। लेकिन लोगों का यह रवैया नोएडा के सफाई स्वच्छता सर्वेक्षण में अव्वल आने की मुहिम को पलीता लगा सकता है। क्योंकि कई महीनों से स्वच्छता को लेकर करोड़ों रुपए खर्च करने के चलते हुई साफ- सफाई का बेड़ा गर्क हो गया है। बेदिल ने पाया कि पूरे नोएडा के चौराहों का यही हाल है।
खासतौर पर औद्योगिक खंडों में रखी गई होली में सीमेंट और प्लास्टिक के खाली थैले भी लोगों ने बेतरतीब ढंग से फेंक दिए हैं। अब 31 मार्च तक स्वच्छता को लेकर सर्वेक्षण होना है और इसी बीच 28 मार्च को होलिका दहन है। स्वच्छता सर्वेक्षण में लगी टीम भी गोपनीय ढंग से शहर में घूमकर हालचाल ले रही है। इससे प्राधिकरण के जन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों समेत आम लोगों को दहन के लिए रखी गई होलिका के आसपास गंदगी से सर्वेक्षण में पिछड़ जाने का डर सताने लगा है।
रूठे डॉक्टर
निगम अस्पताल में रूठे डॉक्टरों के मान मनौव्वल का खेल जारी है। महापौर कहते हैं कि अभी एक महीने का वेतन ले लो और हड़ताल की घोषणा वापस कर काम पर लग जाओ। डॉक्टरों का कहना है कि आश्वासन से पेट नहीं भरता। बच्चे की स्कूल फीस जमा नहीं हो पा रही और घर के बुजुर्गों का इलाज नहीं हो सकता, लिहाजा खाते में वेतन डाल दें, फिर कोई मान मनौव्वल काम आएगा। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि अब डॉक्टर बातचीत नहीं बल्कि कागजी कार्रवाई पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं। क्योंकि ऐसा पहली बार तो हो नहीं रहा। अब देखना ये होगा कि इस बीच जो मरीज हैं वे कहां तक बर्दाश्त कर पाएंगे।
हम तो बोलेंगे!
दिल्ली पुलिस रिटायर्ड अराजपत्रित कर्मचारी संघ अपनी मान्यता के लिए सालों से लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन उन्हें विभाग से मान्यता नहीं मिल पा रही है। बावजूद इसके संघ वाले सक्रिय दिखने में चूकते नहीं हैं। पुलिस की किसी भी गतिविधियों पर बयान और सक्रियता का आलम यह है कि एक भी मौका गंवाना नहीं चाहते। अब 26 जनवरी को लालकिले पर हुई हिंसा के मामले को ही लें या फिर बटला हाऊस मुठभेड़ में मारे गए इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के कातिल को कोर्ट से मिली फांसी की सजा को, दोनों मामलों पर संघ ने ऐसा बयान जारी किया जैसे आधिकारिक तौर पर कोई प्रशस्ति पत्र जारी कर रहे हो। इस दौरान वे बल का गुणगान करते नहीं थके। बेदिल ने जब पुलिस के एक अधिकारी से इस बाबत पूछा तो उनका जवाब था कि सालों बाद अभी तक इस संघ को मान्यता नहीं मिल पाई है लिहाजा उनकी स्थिति मान न मान मैं तेरा मेहमान वाली हो गई है।
जैसे लौटा बचपन
कोरोना काल में कई दिलचस्प चीजें सामने आई। अब ऐसा लग रहा जैसे टीकाकरण के दौरान बुजुर्गों का बचपन लौट आया हो। जिस तरह मां-बाप जैसे अपने रोते-बिलखते बच्चों को पुचकार कर टीका लगवाने ले जाते थे, उसी तरह से अब बच्चे अपने बुजुर्गों को कोरोना से बचाने के लिए टीका लगवाने ले जा रहे हैं। बेदिल ने देखा कि कुछ बुजुर्ग टीके को लेकर डरे हुए हैं और बच्चे उन्हें मना रहे हैं। इससे पहले कोरोना संक्रमण के के शुरुआती दौर में हमने इसी समाज में बुजुर्गों की अनदेखी और उनकी पीड़ा भी देखी है।
-बेदिल