दिल्ली के एक इलाके में बुलडोजर चला तो कई तरह के सवाल उठे। सवाल उठे कि आखिर हिंसा की आड़ में अतिक्रमण क्यों दिखाई दिया, जबकि अतिक्रमण तो 30 सालों से ज्यादा समय से है। हर नेता एक-दूसरे पर आरोप जड़ रहा है और आगे के चुनाव के लिए इसे एक मुद्दा बना लिया है। हालांकि चुनाव तो अभी दूर है लेकिन जिनके पास बुलडोजर है उनकी ताकत दोगुनी हो गई है।

बताया जा रहा है कि एक इलाके में बुलडोजर को सही बताने के लिए अब दूसरे इलाकों में भी अतिक्रमण की फाइल खोली जा रही है। लेकिन बेदिल को पता चला कि सत्ता में बैठे नेताओं के घर पर भी अवैध निर्माण के मसले उठने लगे हैं। ऐसे में उनकी भी दबी फाइल खुलने की संभावना बन रही है। अब देखिए ये बुलडोजर किस करवट बैठे।

चालबाजों की चाल

गौतमबुद्ध नगर में प्राधिकरण का क्षेत्र उद्योग ही नहीं बल्कि चाल चलने में भी आगे है। यहां के जमीनी मामले ऐसे पेचीदा हैं जैसे जलेबी। इनको समझना और चालबाजों की चाल को समझ पाना टेढ़ी खीर है। अब देखें, मंदी की मार और मानक के हिसाब से अगर मकान बनते हैं तो उनकी कीमत नियमों का पालन करते-करते ही बढ़ जाती है। नतीजा, मकान बिकता नहीं और बिल्डर कंपनी अपने आप को दिवाला कानून से बचाते हैं। लेकिन दूसरी तरफ गांवों में बेहिसाब बन रहे मकानों का कोई अता-पता और कानून नहीं है।

बिना किसी मानक और इजाजत के यहां ऊंचे मकान बन रहे हैं और अपनी ओर से कागज पक्का करने के लिए छोटे बिल्डर एक नक्शा पास कराने की चिट्ठी भी सरकारी दफ्तरों में बैठे सलाहकारों की सलाह से भेज देते हैं। जिसे नाटक के तहत ही नामंजूर किया जाता है। ऐसे में जब भी कोई कार्यवाही की बात होती है तो वे उसी नामंजूर चिट्ठी को लगाकर अपने आप को बचाते हैं और अपनी चाल को अंजाम देते हैं।

दावों का सच

हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और। यह कहावत सरकारों की तमाम योजनाओं में देखने को मिलती है। एक ऐसी ही बानगी बेदिल को दिल्ली सरकार क ी स्वास्थ्य योजना में देखने को मिली। मामला एक अस्पताल में सीटी स्कैन मशीन लगाने क ा वादा करने का था। यहां सरकार ने यह भी दावा किया कि इस मशीन के लग जाने से 22 लाख से भी ज्यादा लोगों को लाभ मिलेगा।

वहीं हकीकत यह है कि मशीनें जांच करते समय कुछ गिनती के मरीजों की ही जांच की जाती हैं। एक तो दिन में 12 बजे तक जमा फार्म क ो ही लिया जाता है मरीज को डाक्टर को दिखाने में एक बज गया तो जांच नहीं होती, क्योंकि समय खत्म हो चुका होता है। ऐसे मे मशीन से चाह कर भी 22 लाख लोगों की जांच नहीं की जा सकती। ऐसे में किसी ने बेदिल से कहा, दरअसल कहना 22 चाहिए था लेकिन दावा बड़ा करना है इसलिए उसमें लाख और हजार मंत्री खुद जोड़ देते हैं।

किस्तों में गैस

महंगाई की मार से लोग दबे जा रहे हैं। जहां देखो इसी की चर्चा है। लोगों की जेब पर फर्क पड़ा है तो उनका रहन-सहन का तरीका भी डगमगाया है। मध्यम वर्ग के नीचे वालों का तो पूरा बजट ही गडबड़ा गया। गैस सिलेंडर और पेट्रोल के मामले में सबसे ज्यादा बुरा हाल हुआ है। 14 किलो गैस वाला रसोई सिलेंडर भरवाने के लिए लोग हजार रुपए कहां से लाएं, इसके लिए वे दिमाग लगा रहे। क्योंकि अब सबसिडी भी नहीं मिलती तो जनता ने इसका भी तोड़ ढूंढ लिया है।

पिछले दिनों बेदिल को एक गैस सिलेंडर की आपूर्ति करने वाले ने बताया कि जबसे गैस की कीमत बढ़ी है बस्तियों में लोगों ने गैस सिलेंडर लेना ही छोड़ दिया। लोग बड़ा सिलेंडर भी किस्तों में भरा रहे हैं। बेदिल ने पड़ताल की तो पता चला कि जब सबसिडी नहीं आ रही तो लोग एक साथ हजार रुपए का सिलेंडर नहीं खरीदना चाहते। वे एक किलो गैस अपने 14 किलो के सिलेंडर में भराते हैं और महीना भर चलाते हैं। अब देश में महंगाई से बुरा हाल क्या होगा। चिंता तो इस बात की है कि लोग कहीं पेट्रोल भी गाड़ियों में ऐसे ही न डलवाने लगें।
-बेदिल