दक्षिणी दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी जी ने लोक सभा में नियम 377 के तहत सदन का ध्यान राजधानी दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन की अनुपलब्धता के कारण बढ़ रही समस्याओं की तरफ केंद्रित किया।
इस दौरान उन्होनें कहा कि दिल्ली राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में सन् 1908-09 में अंग्रेजो के शासन काल के दौरान जमीन की बंदोबस्ती की गई जिसके अनुसार गॉंवों की सीमा निर्धारित थी, जिसे ह्यलाल डोरे’ का नाम दिया गया, तथा लाल डोरे की परिधि में आने वाले लोगों को मालिकाना हक भी दिया गया, जिसके अनुसार उस क्षेत्र में भूसा डालने के कोठे बनाने व पशुपालन हेतु छप्पर डालने आदि की छूट दी गई, इसके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार एक-दो मंजिल मकान बनाने, व्यवसाय, धंधे आदि की भी छूट दी गई थी तथा इन सब पर हाउस टैक्स व प्रोपर्टी टैक्स नही लगाया गया।
इसके बाद 1952-53 में चकबंदी के लारा लाल डोरे को ग्रामीण क्षेत्रों की बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए बढ़ाया गया। 1963 में बिल्ड़िंग बाई-लॉज के अनुसार लालडोरा/विस्तारित लाल डोरे के प्लॉटों के अन्दर की कुछ छूट दी गई।
आज यह चिंता का विषय है कि जिस तरह से दिल्ली की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, उसके अनुसार दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को विस्तार हेतु पर्याप्त जमीन नही मिल पा रही है, परिवार बढ़ रहे हैं और जमीन की अनुपलब्धता ग्रामीणों में भारी असंतोष का कारण बन रही है।
इस समस्या के समाधान हेतु भारत सरकार ने तेजेन्द्र खन्ना समिति का गठन किया गया था, जिसने 13 मई, 2006 को अपनी रिपोर्ट में ग्रामीण क्षेत्रों की बढ़ती हुई आबादी और लाल डोरे की व्यवस्था के कारण जमीन की अनुपलब्धता को स्वींकार किया तथा जन सुरक्षा एवं सुविधा को ध्यान में रखते हुए लाल डोरे/विस्तारित लाल डोरे में भविष्य के निर्माण के लिए उचित नियमन हेतु वहॉं किए गए विभिन्न निर्माणों को ध्यान में रखते हुए कई सुझाव दिए।
बिधूड़ी ने कहा कि वर्ष 2007 में पूर्व में रही सरकार ने भी इस समस्या के निदान के लिए कुछ कदम उठाए जाने की खबरे थीं, जिसके अनुसार लाल डोरा बढ़ाने हेतु पहला रास्ता चकबंदी करना अथवा भूमि सुधार अधिनियम की धारा-23(3) के द्वारा उपराज्यपाल की अनुमति लेना है, परन्तु अत्यंत खेद का विषय यह है की इस संबंध में ना ही तेजेन्द्र खन्ना रिपोर्ट के सुझावों पर किसी तरह की कारवाई हुई और ना ही पूर्ववर्ती सरकारों लारा भूमि सुधार अधिनियम के तहत कोई उचित कदम उठाया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि आज इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है, पर्याप्त भूमि ना होने के कारण दिल्ली में ग्रामीण जन-जीवन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है।