सत्ता के गलियारे में अगर पत्रकारों की चहलकदमी न हो तो गलियारा सूना माना जाता है, क्योंकि इन्हीं गलियारों से कभी बड़ी तो कभी छोटी खबरें निकलती हैं। और कभी-कभी तो कानाफूसी भी खबर बन जाती है। ऐसे ही राजनीतिक दलों के नेता होते हैं। उनमें खबर बनने का चाव पहले नंबर पर और खबरनवीसों से दोस्ती का चाव दूसरे नंबर पर आता है। लेकिन हाल में एक अलग ही वाकया दिखा।

एक स्थानीय नेता अपने साथ वालों को नसीहत दे रहे थे कि मीडिया वालों से बचकर रहो, सिर्फ अपने मतलब की बात उन्हें समझ आती है। बेदिल ने जब नेताजी की नाराजगी का कारण जानने की कोशिश की तो पता चला कि नेताजी मीडिया से बचने की सलाह तो दे रहे हैं और क्यों दे रहे हैं इसके पीछे वह अपनी आपबीती भी बता रहे हैं।

तबादले की बेला

नोएडा समेत ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के इंजीनियरों और अधिकारियों को उनका तबादला होने का भय दिखाने और सूची में से नाम हटवाने का दावा करने वाले सत्ताधारी दल से जुड़े कुछ स्थानीय नेताओं का गुट सक्रिय हो गया है। कुछ साल पहले भले ही प्रदेश में किसी भी दल की सरकार हो, प्राधिकरण में तैनात कर्मचारियों और अधिकारियों का तबादला नहीं होता था।

इस वजह से तबादला कराने के बात कहकर उन पर दबाव बनाना स्थानीय नेताओं के बस के बाहर था। मौजूदा सरकार ने पिछले कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के तमाम औद्योगिक विकास प्राधिकरणों के भीतर अधिकारियों का तबादला किए जाने का नियम बना दिया। लिहाजन स्थानीय नेताओं की इससे पूछ बढ़ गई। पार्टी पदाधिकारियों के स्तर पर तबादला होने वाले अधिकारियों, इंजीनियरों या कर्मचारियों की सूची में से नाम कटवाने की एवज में अपना कोई काम कराने को लेकर खुलकर सौदेबाजी का दौर इन दिनों जारी है।

दफ्तर की हलचल

दिल्ली में निगम चुनावों के टलने के बाद पार्टी कार्यालयों में चहल-पहल कम हो गई है। पहले आए दिन पार्टी कार्यालय में दूसरे दल को छोड़कर शामिल होने वालों की भीड़ देखी जाती थी, लेकिन चुनावों को लेकर जिस प्रकार से असमंजस की स्थिति बनी हुई है, तब से पार्टी कार्यालय में नए सदस्यों को पार्टी में शामिल नहीं करवाया जा रहा है। टिकट कटने की आशंका को भांपते हुए नेता अपने समर्थकों के साथ दूसरी पार्टियों में शामिल हो रहे थे। चुनाव टलने के बाद सभी नेता चुप्पी साधे हुए हैं। ऐसे नेताओं का लग रहा है कि चुनाव टलने के बाद दल-बदलने से उनकी छवि को नुकसान हो सकता है। हालांकि, वक्त ही बताएगा कि टिकट की आस लगाने दल बदलने वाले नेताओं पर पार्टी कितना भरोसा जताती है।

खबर की भनक

राजधानी में एक चिकित्सा अधिकारी को राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार दिए जाने के लिए सूची में नामित किया गया। इसकी भनक लगते ही उनके विरोधी खेमे में हड़कंप मच गया। हर कोई उनके भारी जुगाड़ की परते उधेड़ने में लगा हुआ था, लेकिन इन सब के बीच अधिकारी की कारस्तानियों से वाकिफ एक वरिष्ठ अधिकारी दत्तचित्त बैठे रहे। यह देख औरों ने पूछा कि उन्हें कोई हैरानी क्यों नहीं हो रही। इन अधिकारी ने बड़े मजे में कहा, देखते जाओ… और कुछ दिनों बाद पता चला कि पुरस्कार से पहले होने वाली खूफिया जांच रिपोर्ट में अफसर खरे नहीं पाए गए और सूची में से नाम हटा दिया गया।
भीख भी महंगी

महंगाई इतनी बढ़ गई है कि अब भीख देना भी महंगा हो गया है। राह चलते अगर आप से कोई भिखारी टकरा जाए तो एक बार उसे कुछ देने से पहले अपनी जेब जरूर टटोल लें । पिछले दिनों कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन पर बेदिल को कुछ ऐसा देखने को मिला जिससे उसे एक सबक मिल गया । हुआ यूं कि शनिवार को एक सज्जन से जब भिखारी ने उनसे पैसे की मांगे तो उन्होंने देने से मना कर दिया।

अचानक से उनका दिल पलटा तो लौटकर वह उसके पास आए और जेब से दो रुपये का सिक्का निकाला और उसे दे दिया। सिक्का देखते ही भीखारी आगबबूला हो गया। उसने त्यौरियां चढाते हुए बोला साहब आप इतना महंगा का जूता पहने हैं और दे रहे हैं दो रुपये। साहब ठंडा पानी का गिलास भी अब पांच रुपये में मिलता है और चाय तो दूर उसका कप भी नहीं मिलता। यह सुनते ही साहब झेप गए और एक नजर अपने वुडलैंड के जूते पर मारते हुए जेब से दस रुपए का नोट निकाल कर दे दिया।
-बेदिल