राजधानी के एक चिकित्सा संस्थान में डाक्टरों को पद के पीछे भागते हुए देखना कोई खास बात नहीं है। यहां ऐसी नूराकुश्ती होती रहती है। अभी हाल में वरिष्ठता क्रम में आगे बढ़ने की कोशिश करते एक महानुभाव दिखे। लेकिन उन्हें उस वक्त करारा झटका लगा जब उनके वरिष्ठता क्रम में उनके एक साथी का भी जन्मदिन का साल भी वही निकला जो उनका था।

घबराए से बेचारे डाक्टर साहब लगे पड़ताल में कि किस तरह से यह तसल्ली पाया जाए कि अमूक साथी उनसे जूनियर है। इसके लिए उन्होंने अपने मातहतों को लगाया और जिम्मा दिया कि पता किया जाए कि भाई साहब ने तैनाती कब ली है। अगर तैनाती में उनसे एक तिथि भी पीछे हुए तो उनका काम बन जाएगा। हालांकि अभी वह अपनी उम्मीद की लौ काफी अच्छे से जलाए हुए हैं।

खाकी का खेल

देश में इस समय हर राज्य में खाकी का खेल देखने को मिल जाता है। कभी असम-गुजरात के बीच तो कभी मुंबई-दिल्ली के बीच। हाल ही में इसमें तीन राज्य की टीम शामिल हो गई। दिल्ली-हरियाणा और पंजाब। दिन भरे चले इस खेल ने मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक सभी पार्टियों के नेताओं को उलझाए रखा। चारों तरफ से पुलिस के कामकाज पर सवाल उठाए गए।

लेकिन इन सब के बीच राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था में लगी खाकी के लिए एक दूसरा खेल ज्यादा महत्त्वपूर्ण निकला। बेदिल को पता चला कि जब तीन राज्यों की खाकी चूहा-बिल्ली के खेल में लगी थीं, तभी राजधानी में विभाग के मुखिया एक दूसरे खेल में व्यस्त थे। खबरनवीसों के बीच चर्चा आम हुई तो पता चला कि इतने संवेदनशील राज्य में इतना ‘कूल’ रह पाना भी आसान बात नहीं है। यह ‘खेल’ समझना सबके बस की बात नहीं।

खबर जो फैली

दिल्ली से सटे यूपी के औद्योगिक महानगर की एक प्रमुख अधिकारी को अदालत से हिरासत में लेने का आदेश दिया गया। प्राधिकरण से जुड़े रहने वालों को जब यह खबर मिली तो चर्चा का विषय बन गई। अमूमन देखा जाता है कि प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ आवाज उठाने से पहले लोग दस बार सोचते हैं, लेकिन जब मौका और दस्तूर मिला तो खबर को हर एंगल से फैलने में देर नहीं लगी। क्या मीडिया और क्या सोशल मीडिया, हर तरफ इसे खूब चलाया गया।

खबर ऐसी फैली कि कई जगह तबादलों की जानकारी और कई जगह बिल्डरों के बीच मिठाई बांटने की जानकारी भी सामने आने लगी। बेदिल ने जब फैली खबरों की खबर जानने की कोशिश की तो पता चला कि अधिकारी पर अदालत का डंडा चलते ही उनसे जुड़े लोगों की नाराजगी सामने आने लगी। मिठाई चुपके से बंट गई और खबर फैल गई। अब भले ही इसे फर्जी बताते रहें।

गेंद और गोली

खाकी के खेल की चर्चा अभी रुकी नहीं है। राजधानी दिल्ली की सड़कों पर फिल्मी अंदाज में हुई गोलीबारी ने एक बार फिर दिल्ली पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाने का मौका दिया। और इन सवालों के घेरे में आ गए पुलिस महकमे के अगुआ। दरअसल, हुआ यूं कि गोलीबारी के ठीक एक दिन पहले विभाग के मुखिया गेंदबाजी-बल्लेबाजी में व्यस्त रहे थे।

मुखिया का क्रिकेट कप में बल्ला लहराने की तस्वीर पर लोग चुस्की ले रहे हैं। पुलिस बल्ला लहराती है तो अपराधी तमंचे लहराते हैं। किसी ने ठीक ही कहा कि पुलिस की पहली प्राथमिकता क्रिकेटबाजी की जगह गोलीबारी रोकने की होनी चाहिए।

दिल्ली में चिंता

क्षेत्रीय पार्टी से राष्ट्रीय पार्टी की ओर से बढ़ रहे एक राजनीतिक दल के लिए पूरे देश की चिंता दिल्ली के मंच से दिख रही है। यह चिंता भी समय के हिसाब से होती है। जिस राज्य में चुनाव उस राज्य की चिंता पर प्रेस कांफ्रेंस। खबरनवीसों के लिए यह रोज-रोज और एक दिन में छह से सात मुद्दों पर अलग-अलग प्रेस कांफ्रेंस का बोझ उठाना भारी दिख रहा है।

बेदिल ने पार्टी कार्यालय के बाहर चल रही चर्चा पर कान लगाया तो एक को कहते सुना, ये एक दिन में छह सात प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर कौन सा चुनाव जीता जाता है। मुद्दे भी ऐसे होते हैं कि सबको एक में समेट पाना मुश्किल। चर्चा में शामिल एक अन्य बोल पडेÞ, कह नहीं सकते। हो सकता है कि दो राज्यों में सफलता भी इन्हीं प्रेस कांफ्रेंस की बदौलत मिली हो।
-बेदिल