जेएनयू से दिखा उच्च शिक्षा का चेहरा

उच्च शिक्षा के नजरिए से बीता साल कई मामलों में अहम रहा। विश्वविद्यालयों के कुलपतियों में नए मानव संशाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर के फैसलों को लागू कराने की होड़ दिखी। यूजीसी के कई फैसले आंतरिक विरोध के बावजूद लागू कराए गए। दिल्ली में शीर्ष के तीनों केंद्रीय विश्वविद्यालय अपनी कई गतिविधियों को लेकर चर्चा में रहे।

बहरहाल, कैंपस की गतिविधियों के नजरिए से बीता साल कई मामलों में अहम माना जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) पूरे साल धरना प्रदर्शन में उलझा रहा। इस साल फरवरी से कन्हैया कुमार का मामला छाया रहा तो साल के अंत तक छात्र नजीब की गुमशुदगी सवालों के घेरे में है। कुलपति को बंधक बनाने जैसी घटना ने जेएनयू की ओर सबका ध्यान खींचा। यह कैंपस बार-बार चर्चा के केंद्र में रहा। इस साल नजीब के मुद्दे पर जेएनयू कैंपस ‘लाल’ और ‘भगवा’ में बंटा रहा। इस साल भी पिछले साल की तरह पुलिस अरावली की पड़ाड़ियों व यहां के ‘लाल भवनों’ में छापेमारी करती रही। इससे पहले पहली बार ऐसा हुआ जब जेएनयू के कुलपति एम जगदीश कुमार और 12 अन्य अधिकारियों को छात्रों ने नजीब मुद्दे पर बंधक बना डाला। इसने जेएनयू को एक बार फिर बीच बहस में ला खड़ा कर दिया है। पुलिस मुख्यालय से लेकर गृह मंत्रालय तक जाग उठा। हालांकि नजीब का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका। एसके अलावा इस बार यहां की कांग्रेस नीत वाली एनएसयूआइ ने दशहरे के दिन रावण की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा व उनकी विचारधारा से जुड़े दशानन का पूतला फूंक नई बहस छेड़ दी। इस साल दशहरे के दिन जेएनयू कैंपस में जो दस सिर वाला पुतला जलाया, उसमें मुख्य सिर की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोटो लगाया। बाकी नौ सिरों की जगह अमित शाह, नाथूराम गोडसे, रामदेव, महंत आदित्यनाथ, आसाराम, साध्वी प्राची के अलावा जेएनयू के कुलपति आदि के चेहरे लगाए गए थे।

आॅनलाइन हुआ डीयू

दिल्ली विश्वविद्यालय में बीता साल नए प्रयोगों और नियमों को लेकर याद रहेगा। पहली बार डीयू-दाखिला पूरी तरह आॅनलाइन हुआ। शिक्षक भर्ती के नियम बदले, तदर्थ शिक्षकों का मुद्दा कैंपस में छाया रहा। कुलपति ने यूजीसी के नियमों को विरोध के बावजूद लागू कराया। डीयू में तदर्थ शिक्षकों को स्थायी करने या नई भर्ती करने के लिए नए नियम लागू किए गए। भारी विरोध के बावजूद यूजीसी के नियम को डीयू ने लागू किया। इस साल दिल्ली विश्वविद्यालय का मौजूदा दाखिला सत्र कैंपस के परंपरागत चहल-पहल से दूर रहा। आॅनलाइन व्यवस्था ने आवेदन प्रक्रिया के दौरान कैंपस को सूना कर। इस साल भी कटआॅफ के ‘न घटने की जिद’ पर विश्वविद्यालय विवश रहा। डीयू ने पहली बार रेडियो में पाठ्यक्रम की शुरुआत की। छात्र राजनीति के नजरिए से देखें तो डूसू चुनाव में इस साल कांग्रेसी छात्र संगठन एनएसयूआइ ने संयुक्त सचिव की एक सीट जीतकर दो साल बाद वापसी की। परिषद के हैट्रिक बनाने का सपना पूरा नहीं हुआ लेकिन उसने अध्यक्ष पद पर लगातार चौथे साल जीत दर्ज कराई। हालांकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने तीन सीटोंं पर जीत दर्ज कर सत्ता पा ली। डीयू में इस साल विधि विभाग अपने सेमेस्टर की परीक्षाओं में 50 फीसद से अधिक विद्यार्थियों के फेल होने पर भी चर्चा में रहा।
नए प्रयोगों से जूझता रहा जामिया

उधर, जामिया में इस साल तमाम फैसले किए गए हैं। कई नए प्रयोग हुए। लेकिन एक फैसला जामिया के छात्रों की कसौटी पर खरा नहीं उतरा। ‘चांद छूने’ की हसरत में जामिया के ‘तारे’ जमीं पर आ गिरे। नए पाठ्यक्रमों को शुरू करने से लेकर समूची प्रक्रिया आॅनलाइन करने, एनएएसी एक्रीडीशन (ग्रेड ए) और सेंटर आॅफ एक्सीलेंस का तमगा पाने, देश-विदेश के उम्दा संस्थानों से 60 समझौते किए जाने, प्लेसमेंट व इंफ्रास्ट्रकचर को दुरुस्त करने के फैसले को शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा जामिया ने एअरफोर्स और नेवी के उच्चअधिकारियों से समझौता कर एक ऐसा मसौदा तैयार किया जो सराहनीय रहा। इसके तहत जामिया ने देश के उन जवानों की सुध ली है जो रिटायर्ड होने पर डिग्री के अभाव में हाशिए पर चले जाते हैं। पहली बार भारतीय वायु सेना और भारतीय जल सेना (नेवी)के हजारों जवान एक साल में जामिया से स्नातक की डिग्री पा सकेंगे। लेकिन एक फैसले ने जिसने जामिया की फजीहत कराई, वो था, ‘जेईई-मेंस’ पर जामिया का फैसला। चोटी के विश्वविद्यालयों में शुमार होने की दौड़ में अपने करीब सौ साल की परंपरा को पलटते हुए विश्वविद्यालय ने इस साल अपने सभी बीटेक और बी आर्क पाठ्यक्रमों में दाखिला ‘जेईई-मेंस’ के जरिए लेने का फैसला किया था। लेकिन नतीजा सिफर रहा। इस फैसले को छात्रों ने पहली नजर में नकार दिया। बीटेक और बी आर्क पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए ‘जेईई-मेंस’ की तरह उत्तीर्ण उम्मीदवारों में से दो तिहाई ने जामिया की जगह किसी दूसरे संस्थान को तरजीह दी।