प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करने पर गुरुवार को बल दिया। उन्होंने कहा कि अगर हम एक दशक में अपनी रक्षा जरूरतों का 50 फीसद खुद पूरा कर लेते हैं तो उससे बचने वाली राशि को शिक्षा पर खर्च किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने यहां राष्ट्रपति भवन में आयोजित विजिटर सम्मेलन में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करने पर जोर देते हुए कहा कि विज्ञान सार्वभौम है लेकिन प्रौद्योगिकी स्थानीय होती है, इसलिए हमें अनुसंधान व नवोन्मेष के महत्त्व को समझते हुए वहनीय, व्यवहार्य प्रौद्योगिकी व कौशल युक्त प्रतिभाओं को तैयार करने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री ने कहा- हम अपनी जरूरतों के अनुसार प्रौद्योगिकी को तैयार करें। अगर दूसरों की व्यवस्था या प्रौद्योगिकी लेंगे, तब समस्याएं बनी रहेंगीं। इस दिशा में अपने समाज और जीवन की स्वाभाविक आवश्कताओं को ध्यान में रखने की जरूरत है। हमारा देश बड़ी मात्रा में रक्षा उपकरणों का आयात करता है। क्या हमारे देश की संस्थाएं रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और नवोन्मेष के जरिए प्रतिभाएं तैयार नहीं कर सकतीं? ऐसे प्रतिभाशाली मानव संसाधन जो सस्ते हों और बाहर की कंपनियां भी उन्हें अपनाएं।

मोदी ने कहा कि अगर हमारी संस्थाएं यह तय कर लें कि वे हमारे देश के रक्षा उपकरणों की जरूरतों का 50 फीसद अगले 10 वर्ष में पूरा कर लेंगी तब रक्षा क्षेत्र के आबंटन से जो पैसा बचेगा, उसे हम शिक्षा पर खर्च करेंगे। उन्होंने कहा- कितना फायदा होगा, हम आत्मनिर्भर बनेंगे और इस दृष्टि से हमें अपनी जरूरतों के बारे में सोचने और उस संदर्भ में आगे बढ़ने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने ‘इंप्रिंट इंडिया’ पुस्तिका जारी की और इसकी पहली प्रति राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सौंपी। इंप्रिंट इंडिया, आइआइटी और आइआइएससी की संयुक्त पहल है। जो इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों के समाधान का खाका तैयार करती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा व्यक्ति के विकास का आधार होती है जबकि उच्च शिक्षा राष्ट्र निर्माण का आधार बनती है। राष्ट्र की शक्ति कैसे आगे बढ़े, इसका खाका इसी कालखंड में तैयार होता है। इस अर्थ में शैक्षणिक संस्थाओं का काफी महत्व है। राष्ट्र निर्माण कैसे आगे बढ़े, वह समयानुकूल हो, इस संदर्भ में अनुसंधान और नवोन्मेष का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

मोदी ने कहा कि आज एक प्रकार से हमारा पूरा सामाजिक जीवन प्रौद्योगिकी आधारित हो गया है । लेकिन जब हमारा मस्तिष्क नवोन्मेष के साथ नहीं जुड़ता और अगर वह सिर्फ उपभोक्ता बना रहता है तो मैं नहीं मानता कि हम इतने सारे मस्तिष्क को खुराक दे पाएंगे। इनको जो दिमागी खुराक चाहिए वो भी नहीं दे पाएंगे। हमारे पास अरब से ज्यादा मस्तिष्क हैं लेकिन जब तक वे नवोन्मेष से लैस नहीं होंगे, जब तक हम इसके लिए तंत्र विकसित नहीं करेंगे, संसाधनों को नहीं लगाएंगे, तब तक सभी विचार धरे के धरे रह जाएंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सपनों को साकार करने का एक मार्ग नवोन्मेष है और इस दिशा में हमें देखना है कि हमारे संस्थान नवोन्मेष को प्राथमिकता देने में कितने कामयाब हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘इस्तेमाल करो और फेंको’ की संस्कृति के कारण आज दुनिया के समक्ष संकट पैदा हो गया है। अब इसके कारण पुनरचक्रण और नवीनीकरण की बात होने लगी है। कचरे को संपत्ति में कैसे बदला जाए, इस पर चर्चा हो रही है। कचरे का कैसे उपयोग करें, इसको आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारी योजना 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की है। इसके लिए हम सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की दिशा में पहल कर रहे हैं। इन सबके बीच हमें यह देखना होगा कि क्या हम बहुउपयोगी प्रौद्योगिकी का विकास कर पा रहे हैं या नहीं। इस दिशा में कारपोरेट क्षेत्र का योगदान भी अहम होगा क्योंकि सभी के सहयोग से ही नवोन्मेष का रास्ता आगे बढ़ेगा।

मेक इन इंडिया का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि हम नहीं कहते कि हमारे पास पर्याप्त कच्चा माल है लेकिन हमारे पास विपुल मानव संसाधन हैं। क्या हमारी संस्थाएं बड़े से लेकर छोटे छोटे कार्यों के लिए कुशल मानव संसाधन तैयार नहीं कर सकती हैं, ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करके दक्ष मानव कार्य बल नहीं बना सकते? कोई भी काम टुकड़ों में नहीं चल सकता। दुनिया कहां जा रही है, उसे सही दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। हम इसके लिए पांच या दस वर्षों का कार्यक्रम तैयार करके आगे बढ़ सकते हैं। हमारे समक्ष लाखों चुनौतियां हैं लेकिन हमारे पास एक अरब से ज्यादा दिमाग हैं।