कोरोना वायरस महामारी के दौर में पिछले कई दशकों से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर रहे अब्दुल रहमान मलबारी सुर्खियों में हैं। कोरोना काल में जहां लोग अपने ही परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए आगे आने से कतराते हैं वहीं मलबारी उल्लेखनीय रूप से ऐसे लोगों का अंतिम संस्कार करा रहे हैं।
साल 1998 में गुजरात में आए चक्रवात से लेकर सूरत में 2006 में आई बाढ़, 2001 में आया भुज भूकंप और मुंबई व केंदारनाथ में क्रमश: 2005 अथवा 2013 में आई बाढ़ में अब्दुल रहमान वहां मौजूद रहे हैं। इस दौरान उन्होंने कई पीड़ितों को अंतिम विदाई दी। किसी को दफनाना हो या विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार उनका दाह संस्कार करना हो… यहां तक किसी की राख को गंगा में बहाना हो… उन्होंने किसी भी व्यक्ति की अंतिम यात्रा को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिनके लिए कोई आगे नहीं आता।
बताया जाता है कि देश में कोरोना संकट के बाद उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को अधिक महत्वपूर्ण रूप से निभाया। उन्होंने गुजरात के सूरत में कोविड के चलते मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार के लिए प्रशासन की भरपूर मदद की। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सूरत नगर निगम ने उनके संगठन एकता ट्र्स्ट को कोविड-19 पीड़ितों के शवों का दाह संस्कार और दफनाने का काम सौंपा है।
द प्रिंट में छपी एक खबर के अनुसार मार्च से अब्दुल रहमान 1200 से अधिक कोरोना संक्रमित मरीजों के शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। इनमें आठ सौ करीब हिंदू थे। संक्रमितों के अंतिम संस्कार के दौरान वो हर संभव सावधानी भी बरत रहे हैं। मार्च के आखिर में वो खुद संक्रमण के संपर्क में आ गए थे हालांकि ठीक होने के बाद एक बार अपने काम में जुट गए।
बता दें कि भारत में कोविड-19 के एक दिन में रिकॉर्ड 64,399 नए मामले आने के साथ ही रविवार (9 अगस्त, 2020) को संक्रमण के कुल मामले 21 लाख का आंकड़ा पार कर गए जबकि 861 और लोगों की मौत होने से मृतकों की संख्या 43,379 हो गई।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि पिछले 24 घंटे में 53,879 और लोगों के इस वैश्विक महामारी से उबरने के बाद स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 14,80,884 हो गई। इसके साथ ही स्वस्थ होने वाले मरीजों की दर 68.78 फीसदी हो गई है। मृतकों की दर गिरकर 2.01 फीसदी रह गई है।