अशोक बंसल 

मथुरा संग्रहालय में 40 साल तक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर नौकरी करने वाले मूलचंद की पिछले दिनों एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इस संग्रहालय में एक अकेले मूलचंद ही थे जो प्राचीन कलाकृतियों पर खुदी ब्राह्मी लिपि को पढ़ सकते थे। वह प्राचीन कलाकृतियों पर खुदी ब्राह्मी लिपि की इबादत ऐसे पढ़ते थे, जैसे हिंदी में लिखी गई चिट्ठी जबकि वह सिर्फ पांचवीं ही पास थे।

छठी शताब्दी के गुप्त काल तक बनी मूर्तियों, सिक्कों और शिलालेखों पर ब्राह्मी लिपि का ही इस्तेमाल किया गया। सम्राट अशोक के सभी 14 शिला लेखों पर खुदी इबारत ब्राह्मी लिपि में है। इस 2300 साल पुरानी लिपि को सबसे पहले 1839 में जेम्स प्रिंसेप नाम के अंग्रेज ने पढ़ा था। मूलचंद ने ब्राह्मी लिपि को पढ़ने में कैसे महारत हासिल की, इसकी कहानी काफी दिलचस्प है। मूलचंद ने एक बार बताया था कि शुरुआती दौर में उनकी ड्यूटी संग्रहालय की वीथिका में लगाई गई थी। तब बर्लिन विश्वविद्यालय की एक महिला प्रोफेसर संग्रहालय की मूर्तियों का बारीक अध्ययन करने आती थीं। साल में पंद्रह दिन वह मथुरा संग्रहालय में अध्ययन के लिए रुकती थीं। मूलचंद मूर्तियों पर खुदी इबारत पर चढ़ी धूल हटाते थे। प्रोफेसर टार्च की रोशनी में ब्राह्मी लिपि की इबारतें पढ़ती थीं।

मूलचंद की दिलचस्पी बढ़ी तो उन्होंने एक कॉपी बनाकर ब्राह्मी लिपि की वर्णमाला के आगे हिंदी वर्णमाला लिख ली। धीरे-धीरे वह मूर्तियों पर लिखी इबादत को तेजी से पढ़ना सीख गए। मूलचंद इस प्राचीन ब्राह्मी लिपि को लिखने भी लगे। मूलचंद की प्रतिभा की हमेशा उपेक्षा हुई। 2006 में ‘ब्राह्मी लिपि का उद्भव और विकास’ पर राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डॉक्टर आरसी शर्मा भाषण देने मथुरा संग्राहलय आए। वे मूलचंद जैसे अशिक्षित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की प्रतिभा देखकर चौंक गए। संग्रहालय में एक भी अधिकारी ऐसा नहीं था जो इस इबारत को पढ़ सके। उन्होंने मूलचंद के पदोन्नति की बात कही लेकिन स्थानीय अधिकारियों के निम्न सोच के कारण मूलचंद किसी भी पुरस्कार और सम्मान वंचित रहे। चंद दिनों बाद मूलचंद सेवानिवृत्त हो गए पर उनका मूर्ति प्रेम उन्हें रोजाना संग्रहालय खींच लाता था।