साल था 1991, बिहार में लालू यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार थी। उस समय लालू यादव प्रदेश के सभी हिस्सों में अपने लोगों को तैयार कर रहे थे। ऐसे में ही एक नाम आता है दुलारचंद यादव का।

दुलारचंद यादव पर कई गम्भीर मामलों में पुलिस केस दर्ज थे। यादव स्थानीय राजनीति में भी रुचि रखते थे। उस समय मोकामा विधान सभा से जनता दल के दिलीप सिंह विधायक थे। दिलीप सिंह अनंत सिंह के बड़े भाई थे।

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अपने ही दल के विधायक के खिलाफ अपना आदमी तैयार करने के लिए लालू यादव ने दुलारचंद यादव को बढ़ावा दिया जिससे इलाके में उनका कद पहले से काफी अधिक बढ़ गया।

नवंबर 1991 में देश की 16 लोक सभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे थे। बिहार की बाढ़ लोक सभा सीट पर भी उपचुनाव होना था। बाढ़ सीट से जनता दल ने नीतीश कुमार को उम्मीदवार बनाया था। नीतीश कुमार का सीधा मुकाबला कांग्रेस के उम्मीदवार से माना जा रहा था। स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि दुलारचंद यादव ने लालू यादव के कहने पर चुनाव में नीतीश कुमार के समर्थन में प्रचार किया था। दिलीप सिंह जनता दल के विधायक होने के नाते नीतीश का प्रचार कर रहे थे।

मतदान के दिन ही एक पोलिंग बूथ पर स्थानीय प्रभावशाली नेता और कांग्रेस समर्थक सीताराम सिंह का जनता दल के नेताओं से विवाद हो गया। सीताराम सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गयी। सीताराम सिंह के भाई ने दावा किया कि हत्या करने वालों में नीतीश कुमार भी शामिल थे।

सीताराम सिंह के भाई राधाकृष्ण सिंह ने घटना के करीब दो दशक बाद बीबीसी न्यूज से बातचीत में दावा किया था कि “घटना के समय वे सीताराम सिंह के साथ थे। उसी दौरान नीतीश कुमार मौके पर पहुंचे और पूछा कि किसको वोट दिए हो। हम दोनों भाइयों ने कहा कि कांग्रेस को वोट दिया है। इसके बाद नीतीश कुमार ने गोली चला दी और चले गए।”

बाढ़ के सीताराम सिंह हत्या मामले के अन्य अभियुक्त

सीताराम सिंह की हत्या के मामले में सांसद उम्मीदवार नीतीश कुमार के अलावा मोकामा विधायक दिलीप सिंह, दुलारचंद यादव, योगेंद्र प्रसाद और बौधु यादव को भी आरोपी बनाया गया था।

स्थानीय पुलिस ने प्राथमिक जाँच में नीतीश कुमार को क्लीन-चिट दे दी मगर घटना के 17 साल सीताराम सिंह के एक रिश्तेदार ने नीतीश कुमार को केस में अभियुक्त बनाए जाने की याचिका दायर की। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए बाढ़ के तत्कालीन एसीजेएम रंजन कुमार ने नीतीश कुमार को भी अभियुक्त बनाने का निर्देश दिया। नीतीश कुमार ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने नीतीश कुमार को राहत दी।

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हाईकोर्ट ने उस वक्त कहा था कि केवल शक के आधार पर नीतीश कुमार को अभियुक्त बनाया गया। बाढ़ के एसीजेएम ने नीतीश के खिलाफ केस चलाने का जो फैसला किया गया था वो पूरी तरह से गलत है।

हाईकोर्ट के बाद यह मामला सर्वोच्च अदालत में पहुँचा और सुप्रीम कोर्ट ने भी नीतीश कुमार को मिली राहत को उचित ठहराया।

लालू को सीएम बनाने में नीतीश की भूमिका

साल 1990 में लालू यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने में नीतीश कुमार का बड़ा सहयोग माना जाता है। क्योंकि फरवरी 1988 में जब कर्पूरी ठाकुर का निधन हुआ, तब लालू यादव, शिवानंद तिवारी, नीतीश कुमार, रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह और विजय कृष्ण जैसे नेता जनता दल में दूसरी पंक्ति के महत्वपूर्ण नेता थे। उस वक्त देश के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के करीबी शरद यादव 1989 में अनूप लाल यादव को विपक्ष का नेता बनवाने में लगभग कामयाब हो गए थे। लेकिन आखिरकार, शिवानंद तिवारी और नीतीश कुमार ने इस पद के लिए लालू का समर्थन किया और उनको नेता विपक्ष की कुर्सी मिली।

ऐसा ही 1990 के समय हुआ जब जनता पार्टी को बिहार विधानसभा चुनाव के बाद अपना मुख्यमंत्री चुनना था। उस समय भी नीतीश कुमार प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से लालू यादव की पैरवी कर रहे थे। इसके बाद साल 1994 में नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडीस जनता पार्टी से अलग होकर समता पार्टी का गठन किया। वहीं चारा घोटाला में नाम आने के बाद लालू यादव ने भी जनता दल का साथ छोड़ राजद का गठन किया और फिर राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया।

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मोकामा के पूर्व बाहुबली विधायक रहे दिलीप सिंह इस वजह से जनता दल के टिकट पर विधायक थे क्योंकि उनको उस वक्त के बाढ़ के तत्कालीन सांसद और वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संरक्षण प्राप्त था। मोकामा विधानसभा उस समय बाढ़ लोकसभा के अंतर्गत ही आती थी। बाद में परिसिमन के बाद बाढ़ को ही मुंगेर लोकसभा बना दिया गया जहां से अभी नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद सिपाही और केंद्र की मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री ललन सिंह सांसद हैं।