बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। दो चरणों में इस बार का चुनाव संपन्न किया जाएगा। पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर को होगी, वहीं दूसरे चरण की वोटिंग 11 नवंबर को होगी। नतीजे 14 नवंबर को आ जाएंगे। अब इस समय सभी पार्टियां अपने स्तर पर बड़ी जीत की बात कर रही हैं। एक तरफ एनडीए एक बार फिर सरकार बनाने की बात कर रहा है, तो महागठबंधन भी परिवर्तन की लहर पर सवार होकर इतिहास रचने के दावे कर रहा है।

जानकार मानते हैं कि इस बार का बिहार चुनाव एनडीए के लिए भी इतना आसान नहीं रहने वाला है। यहां भी सबसे ज्यादा चुनौती मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू की वजह से मिल सकती है।

असल में नीतीश कुमार ने अपनी सियासी सहूलियत को देखते हुए पाला कई बार बदला है, लेकिन उन घटनाक्रमों में एक चीज समान रही, वह थी नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू। ऐसे में इतने सालों बाद अब नीतीश कुमार और जदयू के खिलाफ एक एंटी इनकम्बेंसी भी बिहार चुनाव में देखने को मिल रही है।

इस एंटी इनकम्बेंसी से कैसे लड़ा जाए, इसी का जवाब इस समय एनडीए खोज रहा है। पिछले कुछ महीनों में ऐसे प्रयास भी देखने को मिले हैं, जिनको देख कहा जा सकता है कि सत्ता विरोधी लहर से लड़ने के लिए एनडीए ने अपनी रणनीति बना ली है।

नीतीश कुमार की योजनाएं

एनडीए के लिए एंटी इनकम्बेंसी से लड़ने में एक कारगर कदम कुछ ऐसी योजनाएं हैं, जिन्होंने जातिवाद से ऊपर उठकर समाज के निचले तबके तक सुविधाएं पहुंचाई हैं। उदाहरण के लिए बिहार में 125 यूनिट मुफ्त बिजली, ग्रामीण इलाकों तक पानी की पहुंच और एक करोड़ नौकरियां देने का वादा। यह तमाम ऐसी योजनाएं हैं, जिनका लोगों के जीवन पर सीधा असर पड़ेगा। इसके अलावा नीतीश सरकार ने ही अपनी पेंशन योजना को एक नया रूप दे दिया है। अब राज्य की 75 लाख महिलाओं को ₹10,000 तक की आर्थिक मदद मिलने जा रही है। अपनी योजनाओं के जरिए एनडीए बिहार चुनाव में एंटी इनकंबेंसी का समाधान खोज रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा

बात चाहे एनडीए की हो या फिर अकेले बीजेपी की, किसी भी राज्य में जब चुनाव होता है, तमाम मुद्दों से बड़ा पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरा बन जाता है। बीजेपी इतने सालों में रणनीति को समझ चुकी है। उन्हें भी एहसास है कि जनता के साथ प्रधानमंत्री मोदी का एक जबरदस्त कनेक्ट है। यह कनेक्ट ही कई बार किसी भी सरकार की एंटी इनकम्बेंसी को भी छिपा जाता है। हाल ही में संपन्न हरियाणा विधानसभा चुनाव में ऐसा देखने को मिल चुका है। ऐसे में पीएम मोदी का चुनावी प्रचार में उत्तर नहीं, इस बात का संकेत है कि भाजपा के साथ-साथ एनडीए उनकी लोकप्रियता का लाभ उठाना चाहते हैं। अगर वे ऐसा करने में सफल हुए, तो एंटी इनकंबेंसी पर जीत हासिल की जा सकती है।

विपक्ष की अंदरूनी लड़ाई से फायदा

एनडीए को इस बात की समझ आ चुकी है कि महागठबंधन में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। जब तेजस्वी यादव ने खुद को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया, तब कांग्रेस और राहुल गांधी देखते रह गए और उनकी तरफ से कोई आश्वासन नहीं मिला। इसके ऊपर कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग में भी तकरार चल रही है। अब इस अंदरूनी अनबन को ही एनडीए अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहा है। जनता के बीच में मैसेज दिया जा रहा है कि जो पार्टियां चुनाव से पहले एकजुट नहीं हो पा रही हैं, वे बिहार जैसे बड़े राज्य को कैसे संभालेंगी।

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