बसपा सुप्रीमो मायावती ने उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को समर्थन करने का ऐलान किया है। इससे पहले राष्ट्रपति चुनाव में मायावती ने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया था। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मायावती विपक्ष के बजाय बीजेपी के साथ क्यों खड़ी नजर आ रही हैं?

अब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में मायावती का NDA उम्मीदवार को समर्थन करना कई चर्चाओं को जन्म दे रहा है। मायावती ने उपराष्‍ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्‍मीदवार के समर्थन का ऐलान कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है।

जाटों को लुभाने की कोशिश: अगर इसके सियासी गणित को समझा जाए, तो जगदीप धनखड़ का समर्थन करके मायावती ने लोकसभा चुनाव से पहले जाटों को लुभाने की कोशिश की है। जगदीप धनखड़ राजस्थान से आते हैं। पिछले चुनाव में बीएसपी की स्थिति काफी मजबूत रही थी और अब राजस्थान विधानसभा चुनाव भी आ रहा है तो बीएसपी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी।

पार्टी के एक नेता ने कहा, “पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट ओबीसी हैं। राजस्थान में भी धनखड़ काफी संख्या में हैं, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। बसपा राजस्थान पर ध्यान केंद्रित कर रही है और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक और मायावती के भतीजे आकाश आनंद चुनाव की तैयारी के लिए वहां का दौरा कर रहे हैं।” 2018 के राजस्थान चुनावों में, बसपा ने छह सीटें और 4% वोट शेयर जीता था। पार्टी को उम्मीद है कि धनखड़ को समर्थन देने से उसे दोनों राज्य के चुनावों में और बाद में लोकसभा चुनावों में जाटों के अतिरिक्त वोट मिलेंगे।

मुस्लिम वोट साधने का प्रयास: मायावती दलित-मुस्लिम समीकरण पर काम कर रही हैं। ऐसे में धनखड़ समर्थन के पीछे दलित-मुस्लिम-जाट का समीकरण बनाकर सपा-आरएलडी गठबंधन के सामने चुनौती पेश करने की है। पश्चिमी यूपी एक जमाने में बसपा का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था। जाट, जाटव और मुस्लिम के सहारे बसपा सियासी बाजी मरती रही है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी और सपा ने इसमें सेंधमारी करने में कामयाब रही। मायावती पश्चिमी यूपी में अपने खोए हुए सियासी जनाधार वापस पाने की कवायद में है, जिसके लिए उन्होंने मुनकाद अली और नौशाद अली जैसे मुस्लिम नेताओं को लगा रखा है।

वंचित वर्ग का समर्थन: पार्टी के एक नेता ने कहा कि बसपा मतदाता समझते हैं कि वह मुर्मू और धनखड़ का समर्थन कर रही हैं क्योंकि दोनों समाज के वंचित वर्गों से हैं। बसपा वंचित वर्गों के प्रतिनिधियों के खिलाफ नकारात्मक रुख नहीं अपना सकती। द्रौपदी मुर्मू आदिवासी हैं और बसपा का मुख्य वोट बैंक दलित है।

बसपा की अलग पहचान: सूत्रों ने कहा कि मायावती यह संदेश भी देना चाहती थीं कि बसपा की राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान और मौजूदगी है। समाजवादी पार्टी के साथ खड़े रहना उत्तर प्रदेश में इसे पुनर्जीवित करने में मदद करने वाला नहीं है, क्योंकि सपा खुद यूपी में काफी हद तक सिमट गयी है। ऐसे में मायावती ने एनडीए के साथ जाने में अपने लिए ज्यादा फायदा देखा।